Mental Health Awareness : बचपन मस्ती में गुजर जाता है, लेकिन किशोरावस्था में कई बदलाव और चुनौतियां आती हैं। इस उम्र में बच्चों और उनके माता पिता के बीच दूरियां बढ़ जाती हैं। अगर आप उनके बदलते व्यवहार को पहचान नहीं पाते, तो ये आगे चलकर आपके लिए बड़ी परेशानियां खड़ी कर सकता है। आइए इन अहम इशारों को समझें।
मूड का बार बार बदलना
किशोर बच्चों का मूड बदलना आम बात है, लेकिन अगर बच्चा बार बार गुस्सा हो, छोटी बातों पर रोने लगे, या हर समय चिड़चिड़ा रहे, तो यह चिंता की बात है। यह उनकी अंदरूनी परेशानी या तनाव का संकेत हो सकता है। इस पर तुरंत ध्यान दें।
अकेले रहना पसंद करना
अगर बच्चा दोस्तों से मिलना जुलना छोड़ दे या हर समय अकेला रहना चाहे, तो इसे हल्के में न लें। हो सकता है वह अंदरूनी संघर्ष से गुजर रहा हो या उसे किसी चीज का डर हो। ऐसे में उसे प्रोत्साहित करें कि वह अपनी बात आपके साथ शेयर करे।
नींद में गड़बड़ी
किशोरावस्था में नींद पर असर पड़ सकता है, लेकिन अगर बच्चा सोने में दिक्कत महसूस करे, देर रात तक जागे या बार बार डरावने सपने देखे, तो यह मानसिक तनाव का संकेत हो सकता है। इसे नजरअंदाज न करें, बल्कि इस समस्या के सही समाधान की ओर बढ़ें।
खुद को कम आंकना
अगर आपका बच्चा बार बार खुद को दूसरों से कम समझे, अपने लुक्स या काबिलियत पर सवाल उठाए, तो उसे आत्मविश्वास बढ़ाने की जरूरत है। उसकी खूबियों की तारीफ करें और उसे समझाएं कि हर किसी में कुछ खास होता है।
फोन या लैपटॉप पर ज्यादा समय बिताना
अगर बच्चा घंटों तक मोबाइल या लैपटॉप में लगा रहता है और पढ़ाई या दोस्तों से दूर होता जा रहा है, तो यह संकेत है कि उसे तकनीक की लत लग चुकी है। यह आदत आगे चलकर उसकी पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है।
खाने-पीने की आदतों में बदलाव
कभी बहुत ज्यादा खाना, कभी बिल्कुल न खाना या बार बार खाने का समय छोड़ देना भी चिंता का कारण है। अगर बच्चा लगातार वजन बढ़ा रहा है या घटा रहा है, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
गुमसुम और चुप रहना
अगर बच्चा अचानक से कम बात करने लगे या हर समय चुपचाप रहे, तो इसका मतलब है कि वह किसी समस्या से जूझ रहा है। उससे खुलकर बात करें और जानें कि उसे क्या परेशान कर रहा है।
माता पिता क्या कर सकते हैं
किशोरावस्था बच्चों के लिए एक मुश्किल दौर होता है। आपको चाहिए कि वे उनके साथ ज्यादा समय बिताएं और उन्हें समझने की कोशिश करें। उनकी परेशानियों को सुनें, उनके साथ बातचीत करें और जरूरत पड़ने पर किसी विशेषज्ञ की मदद लें।