Nepal Interim Govt : नेपाल की अंतरिम सरकार में नव निर्वाचित प्रधानमंत्री कार्की ने अपनी सत्ता की बागडोर को और मजबूती प्रदान करने के लिए अब कुछ बड़े फैसले लेने शुरु कर दिए हैं। इसीलिए उन्होंने अपने मंत्रीमंडल का विस्तार करते हुए पीएम सुशीला कार्की ने पांच नए मंत्रियों को नियुक्त किया है। जिन नए मंत्रियों को उन्होंने नियुक्त किया है उनके नाम अनिल कुमार सिन्हा, महावीर पुन, संगीता कौशल मिश्रा, जगदीश खरेल के साथ मदन परियार हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बताया जा रहा है कि, आज ही ये मंत्री शपथ ले सकते हैं। चुने गए नए मंत्रियों में किसको कौन-सा कार्यभार सौंपा जाने वाला है इसकी जानकारी भी सामने आ गई है। इन में अनिल कुमार सिन्हा को उद्धोग और वाणिज्य मंत्रालय, महावीर पुन को शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्दोगिकी मंत्रालय, संगीता मिश्रा को स्वास्थ्य एवं जनसंख्या, खरेल को सूचना एवं संचार र परियार को कृषि मंत्रालय सौंपा जाएगा।
गौरतलब है कि सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस रह चुकी हैं और न्यायिक क्षेत्र में उनके सख्त फैसलों के लिए उन्हें जाना जाता है। देश में बढ़ते असंतोष, विरोध-प्रदर्शनों और विभिन्न हितधारकों के बीच लंबे विमर्श और सहमति के बाद उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया। उनकी नियुक्ति से यह उम्मीद की जा रही है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और प्रशासन में पारदर्शिता के साथ जवाबदेही बढ़ेगी।
कानून व्यवस्था बहाल करना सबसे बड़ी चुनौती
वर्तमान में नेपाल जिस सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है, उसमें सुशीला कार्की की सरकार के सामने सबसे पहला और बड़ा कार्य कानून व्यवस्था को फिर से स्थिर करना है। जेन-जी आंदोलन के दौरान हुए हिंसक प्रदर्शन, सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को हुए भारी नुकसान और कई सरकारी भवनों की तोड़फोड़ जैसी घटनाओं ने शासन-व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। अब यह अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी है कि वह बुनियादी ढांचे की मरम्मत, टूटे सरकारी संस्थानों की पुनर्स्थापना और नागरिकों में विश्वास बहाली के लिए प्रभावी कदम उठाए।
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अस्थिरता से स्थिरता की ओर सफर
नेपाल की इस अंतरिम सरकार से देशवासियों को बहुत उम्मीदें हैं। राजनीतिक अनिश्चितता, सड़क पर जनता का गुस्सा और प्रशासनिक शिथिलता के बीच सुशीला कार्की का नेतृत्व निर्णायक भूमिका निभा सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या उनकी सरकार इन बुनियादी और संस्थागत चुनौतियों से निपटकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती दे पाएगी, या फिर यह अंतरिम काल केवल सत्ता की अस्थायी पुनर्स्थापना बनकर रह जाएगा।