अन्य देशों के मुकाबले नेपाली युवा क्रांति के मामले पर नंबर एक, किस वजह से ‘GEN Z’ ने ‘ओली’ को कुर्सी से किया बेदखल

नेपाल में दो दशकों के राजनीतिक बदलावों के बाद भी जनता निराश है। राजशाही के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन के बाद माओवादियों की सरकार बनी लेकिन जनता की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं।

नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। नेपाली सूरमाओं की रंगबाजी ने कमाल कर दिया। जांबाज युवा बिग्रेड ने बड़े-बड़े किलों को ध्वस्त करते हुए ओली सरकार से नेपाल को आजाद करवा लिया। निडर होकर लड़के-लड़कियां डटे रहे। सीने पर गोली खाई। शरीर पर बारूद को झेला। सिर पर लाठी खाई, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। महज 26 घंटे के अंदर ओली सरकार का सिंहासन हिला दिया। पीएम ओली को आवास से भागने पर मजबूर कर दिया। सरकार को घुटनों पर ला दिया। सोशल मीडिया पर लगा बैन भी हटवा लिया। दो दिन चले रंण में जीत नेपाली यूथ को मिली। सेना ने भी पीट थपथपाई और अहिंसा के मार्ग पर चलने की अपील की। जिसका असर भी नेपाल की सड़कों पर दिखने लगा है। युवा हथियार सरेंडर कर रहे हैं और अपने-अपने घरों को लौट रहे हैं।

नेपाल की कमान राजा के हाथों में हुआ करती थी। तभी नेपाली युवा राजतंत्र के खिलाफ एकजुट होने लगे। ये दौर था 1996 का, तब राजशाही के खिलाफ युवाओं ने माओवादियों के साथ मिलकर सशस्त्र आंदोलन शुरू किया। दस वर्ष तक चले इस गृहयुद्ध में 16,000 से अधिक लोग मारे गए, और 2006 में शांति समझौते के साथ इसका अंत हुआ । नेपाल अब हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा बल्कि एक गणतांत्रिक देश बन गया । नेपाल में 2008 में माओवादियों की जीत के बाद 240 साल पुरानी राजशाही खत्म हुई। नेपाल ने 2015 में नए संविधान के साथ खुद को एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया। फिर भी आज नेपाल अपने अतीत की जंजीरों से पूरी तरह आजाद नहीं हो पाया है। लाल क्रांति का सपना अधूरा रह गया, लोकतंत्र लगातार उलझनों में घिरा रहा। राजशाही समय-समय पर सिर उठाकर अपने लिए अवसर की तलाश करती रही।

लोकतंत्र से निराशा के बीच नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग ने फिर से जोर पकड़ा है। 2025 में काठमांडू और अन्य शहरों में हजारों लोग राजा वापस आओ, के नारे के साथ सड़कों पर उतरे पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह, जिन्हें 2008 में सत्ता से हटाया गया था, एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उनके समर्थकों का मानना है कि राजशाही के दौर में कम से कम स्थिरता तो थी और भ्रष्टाचार आज की तुलना में कम था। ग्रामीण और पारंपरिक इलाकों में एक वर्ग आज भी मानता है कि राजशाही के दौर में सुरक्षा और स्थिरता थी । संवैधानिक राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वकालत करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था से निराश नेपाल का एक वर्ग मुखर होकर राजशाही वापस लाने की मांग कर रहा है। इसी साल राजतंत्र की बहाली को लेकर नेपाल में कई आंदोलन हुए। आंदोलन में पुलिस की गोली से दर्जनभर से ज्यादा लोग मारे गए।

दरअसल, नेपाल की क्रांति के बाद माओवादी नेताओं जैसे पुष्पकमल दहल प्रचंड ने सत्ता हासिल तो की लेकिन नेपाल का संसदीय लोकतंत्र तमाशा बनकर रह गया । नेता सत्ता और भ्रष्टाचार के लिए तिकड़मबाजी में उलझ गए। जनता से किया गया समृद्धि, शिक्षा और स्वास्थ्य का सपना अधूरा ही रहा । आज लोग कहते हैं कि माओवादी क्रांति ने सत्ता का चेहरा बदला, व्यवस्था नहीं । नेपाल में राजनीति कितनी अस्थिर रही इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2006 से 2025 तक नेपाल में 14 बार प्रधानमंत्री बदले हैं। इस दौरान पुष्प कमल दहल प्रचंड, माधव कुमार नेपाल, बाबूराम भट्टराई, सुशील कोइराला, केपी शर्मा ओली और शेर बहादुर देऊबा जैसे कद्दावर नाम हैं, जिन्होंने देश की सत्ता संभाली। 2008 में राजशाही के खात्मे के बाद नेपाल ने लोकतंत्र की राह पकड़ी, लेकिन यह राह स्थिरता से कोसों दूर रही। 17 सालों में 14 सरकारें बदल चुकी हैं, और कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है।

नेपाल दुनिया के सबसे गरीब देशों में आता है। विश्व बैंक और अन्य स्रोतों के अनुसार नेपाल दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान के बाद दूसरा सबसे गरीब देश है। 2024 में नेपाल की प्रति व्यक्ति आय लगभग 1,381 डालर थी। 2025 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,878 डालर है जो नेपाल से दोगुनी से अधिक है। गरीबी और बेरोजगारी के चलते युवा काफी गुस्से में थे। एक रिपोर्ट के अनुसार नेपाल में 19 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। रिपोर्ट का दावा है कि सैकड़ों युवा लड़कों को एक प्राईवेट कंपनी ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए रूस भेजा। सैकड़ों नेपाली जंग में मारे गए। इनसब के बीच ओली सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया, जिसके बाद यूथ सड़क पर उतर आए। यूथ की रंगबाजी के आगे ओली का सम्राज्य धू-धू कर जल गया। नेपाली यूथ ने हर सरकारी इमारत पर कब्जा कर लिया। सरकारी भवनों के अंदर लूटपाट करने के साथ ही आग भी लगाई गई। पूर्व पीएम को पीटा गया। पूर्व पीएम की पत्नी की हत्या भी कर दी गई।

बता दें, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और मशहूर लेखक बीपी कोइराला ने अपनी किताब नरेंद्र डाई में लिखा है कि हमने सालों तक सहा, चुपचाप बैठे रहे, लेकिन अब गुस्से की ज्वाला बाहर आनी चाहिए। इस समाज की जड़ता ने हमें दबाया, अब विद्रोह का समय है। उन्होंने बेशक इन पंक्तियों को राणा शासन के दमन के विरोध में लिखा था, लेकिन नेपाल की मौजूदा स्थिति को देखकर लग रहा है कि मानो जैसे उन्होंने दशकों पहले ही नेपाल की इस बगावत की भविष्यवाणी कर दी थी। कोइराला ने अपनी कलम से विद्रोह की जिस अलख को जगाने की कोशिश की। वह काठमांडू की सड़कों पर सुलगती दिखी। नेपाल की सड़कों पर आज विद्रोह का जो बिगुल बजा है, वह सिर्फ युवाओं की अचानक की गई बगावत नहीं है बल्कि सालों से धधक रहा ज्वालामुखी है, जो अब फट पड़ा है।

इस हिंसा को बेशक जायज ठहराया नहीं जा सकता, लेकिन वर्षों के भ्रष्टाचार से लेकर नेपोटिज्म और ज्यादती का हिसाब चुकता करने के लिए युवा सड़कों पर हैं और हिंसा का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। तभी तो विद्रोही भीड़ मौजूदा हुक्मरानों से लेकर पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार वालों पर हमला करने से भी नहीं चूकी। अब सवाल है कि नेपाल में इतने दशकों से आखिर हो क्या रहा था, जो लोगों का गुस्सा इस कदर भड़का हुआ है। नेपाल के प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ इस गुस्से की वजह तो समझ आती है लेकिन पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार पर हमले हैरान करने वाले रहे। इसका जवाब नेपाल में बरसों से हुए घोटालों की गर्त में छिपा है। नेपाल की सियासत में गहरे तक पैठ कर चुके भ्रष्टाचार ने देश में उद्योग-धंधों को चौपट करना शुरू कर दिया।

निवेशकों ने दूरी बनानी शुरू कर दी। इसका सीधा असर रोजगार पर भी पड़ा। बड़ी संख्या में युवाओं ने काम की तलाश में भारत से लेकर मलेशिया और गल्फ का रुख करना शुरू किया। इससे युवाओं में धीरे-धीरे सियासत के प्रति नफरत पनपने लगी। देश में राजशाही के पतन से लेकर, माओवादी आंदोलन और लोकतंत्र का पायदान चढ़ने तक देश में सत्ता का स्वरूप तो लगातार बदलता रहा लेकिन इस सत्ता को वही चेहरे हथियाते रहे। वही पुराने नेता, उनकी पार्टियां और उनके परिवार। नेपाल में भ्रष्टाचार इस कदर फैला है कि करप्शन के इंडेक्स में 180 देशों में वह 107वें पायदान पर है। देश के 84 फीसदी से ज्यादा लोग डंके की चोट पर बोलते हैं कि उनकी सरकार सिर से लेकर पैर तक करप्शन में डूबी हुई है।

इसी को लेकर इस साल की शुरुआत से ही युवाओं ने सोशल मीडिया पर नेपोटिज्म के खिलाफ खुलकर बोलना शुरू किया। सोशल मीडिया पर नेपोटिज्म के खिलाफ जमकर हैशटैग ट्रेंड होने लगे तो इस बीच सरकार ने कई सोशल मीडिया अकाउंट्स पर बैन लगा दिया। इतिहास गवाह है कि लंबे समय तक शोषण झेल रही जनता जब बगावत पर उतर आती है तो वह अच्छे और बुरे का फर्क भूल जाती है। उसे बस अपने साथ हुआ अन्याय नजर आता है। अब नेपाल में ओली की सरकार नहीं है। नेपाल में सेना का कंट्रोल है। यूथ जल्द से जल्द देश में नई सरकार की मांग कर रहा है। अब भी कुछ आंदोलनकारी सरकार को डटे हुए हैं। तीन नाम पीएम की रेस में आगे बताए जा रहे हैं। तीनों ने इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई है।

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