SriLanka Economic Crisis: श्रीलंका में आर्थिक हालात दिन-ब-दिन खराब होते जा रहे हैं. आसमान छूती सब्जियों की कीमतें श्रीलंका के नागरिकों के खर्चों को और बढ़ाती जा रही हैं. श्रीलंका 1948 में स्वतंत्र हुआ था. उसके बाद से पहली बार ऐसा हो रहा है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है.
आपको बता दे की यहाँ सब्जियों की बढ़ती हुई कीमतें आग में घी का काम कर रही हैं. ज्यादातर सब्जियों की कीमतें दोगुना से ज्यादा बढ़ गई हैं. वहीं, चावल की कीमतें एक साल में 145 रुपये से बढ़कर 230 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई हैं.
वहीं, प्याज की कीमतें श्रीलंका की मुद्रा में 200 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई हैं. आलू के भाव 220 रुपये प्रति किलो हो गए हैं. टमाटर 150 रुपये प्रति किलो पर बिक रहा है. गाजर के दाम 490 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गए हैं.
श्रीलंका ज्यादातर कॉस्ट-पुश मुद्रास्फीति यानी (Cost Push Inflation) तब होती है, जब मजदूरी और कच्चे मालों की लागत में वृद्धि के कारण कुल कीमतें बढ़ जाती (मुद्रास्फीति) हैं. आपको बता दे की श्रीलंका इस समय (Cost Push Inflation) से जूझ रहा है, जिसका कारण ईंधन की उच्च कीमतें हैं. Experts के मुताबिक, पहले यह अनुमान लगाया गया था कि मुद्रास्फीति जुलाई में चरम पर पहुंच सकती है. लेकिन शेष वर्ष की तुलना में यह 50 प्रतिशत के आसपास बनी रहेगी.
मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने और मुद्रा को स्थिर करने के लिए देश के केंद्रीय बैंक ने अप्रैल में दरों में रिकॉर्ड 700 बेसिक प्वॉइंट्स की वृद्धि की थी.
सूत्रों के मुताबिक, जून में श्रीलंका की मुद्रास्फीति दर 54.6 फीसदी पर थी, जो कई दशकों में सबसे खराब वित्तीय संकट के कारण इस स्तर पर पहुंची थी, और अर्थशास्त्रियों ने दावा किया कि नीति निर्माता निकट भविष्य में कीमतों को कम करने के लिए बहुत कम कर सकते हैं.
2.20 करोड लोगों का यह द्वीप देश गंभीर विदेशी मुद्रा की कमी के कारण आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है. जिसे ईंधन, बिजली, भोजन और दवा के आवश्यक आयात के भुगतान के लिए संघर्ष करना छोड़ दिया है. अब इसके विरोध में लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
श्रीलंका में आर्थिक संकट तब आया, जब कोविड -19 ने पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया और विदेशी काम कर रहे श्रमिकों ने पैसे भेजना बंद कर दिया और सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ने लगा, तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और पिछले साल रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध के कारण खेती पूरी तरह से तबाह हो गयी.
सूत्रों के अनुसार, आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि जून में खाद्य मुद्रास्फीति सालाना आधार पर 80.1 फीसदी पर पहुंच गयी, जबकि परिवहन लागत में 128 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.
यूनिसेफ ने कहा कि खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों की वजह से देश में 70 फीसदी परिवार अब भोजन की खपत में कमी की रिपोर्ट कर रहे हैं.