US-Russia talks: यूक्रेन और रूस के बीच चल रही हिंसक लड़ाई के बीच, सऊदी अरब में मंगलवार को होने वाली US-Russia talks पर ध्यान केंद्रित है। इस वार्ता में जहां एक ओर रूस और अमेरिका अपने कूटनीतिक संबंधों को सुधारने और युद्ध को समाप्त करने के उपायों पर चर्चा करेंगे, वहीं यूक्रेन ने इस बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार को इस महत्वपूर्ण वार्ता में शामिल नहीं किया गया है, और यूक्रेन के बिना इस प्रक्रिया के किसी भी परिणाम को वे स्वीकार नहीं करेंगे। इस निर्णय से कूटनीतिक परिदृश्य में नई चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं, क्योंकि US-Russia के बीच शांति की दिशा में यह कदम एक नई राह दिखाने का संकेत है, लेकिन यूक्रेन की अनुपस्थिति से अंतरराष्ट्रीय चिंताएं भी बढ़ गई हैं।
यूक्रेन की स्थिति और जेलेंस्की का बयान
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने सोमवार को कहा कि उनका देश सऊदी अरब में होने वाली अमेरिका-रूस वार्ता में शामिल नहीं होगा। जेलेंस्की ने यह बयान संयुक्त अरब अमीरात से एक कॉन्फ्रेंस कॉल के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक यूक्रेन की उपस्थिति नहीं होगी, तब तक वह इस वार्ता के परिणामों को स्वीकार नहीं करेंगे। जेलेंस्की का कहना था, “यूक्रेन को इस वार्ता में आमंत्रित नहीं किया गया है, और इस कारण कोई भी परिणाम, जो बिना हमारे शामिल हुए निकलेगा, उसे हम मान्यता नहीं देंगे।”
जेलेंस्की ने यह भी कहा कि उनकी तुर्की और सऊदी अरब की यात्रा का अमेरिका-रूस वार्ता से कोई संबंध नहीं है। उनका यह बयान इस तथ्य पर जोर देता है कि यूक्रेन की भागीदारी के बिना शांति की दिशा में कोई ठोस प्रगति संभव नहीं होगी।
US-Russia के बीच वार्ता का उद्देश्य
वार्ता के प्रमुख उद्देश्य रूस और अमेरिका के बीच बढ़ते तनावों को शांत करना और यूक्रेन के युद्ध को समाप्त करने के लिए संभावित समझौते पर चर्चा करना है। क्रेमलिन ने पुष्टि की कि रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और राष्ट्रपति पुतिन के विदेश मामलों के सलाहकार यूरी उशाकोव सऊदी अरब में अमेरिकी समकक्षों से मिलेंगे। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्री मार्को रुबियो और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज शामिल होंगे। यह वार्ता रूस और अमेरिका के बीच टूटे हुए कूटनीतिक संबंधों को पुनः स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।
रूसी अधिकारियों का कहना है कि इस वार्ता का मुख्य उद्देश्य अमेरिका-रूस संबंधों को बहाल करना है, साथ ही साथ दोनों राष्ट्रपतियों के बीच संभावित बैठक की तैयारी करना भी है। इस वार्ता को US-Russia के बीच संबंधों को सुधारने का एक प्रयास माना जा रहा है, जिससे वैश्विक तनाव में कमी लाने की उम्मीद जताई जा रही है।
जेलेंस्की की चिंता और शांति की प्रक्रिया पर सवाल
यूक्रेन के राष्ट्रपति का बयान इस बात को रेखांकित करता है कि यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में किसी भी समझौते में उसकी भागीदारी बेहद जरूरी है। जेलेंस्की का मानना है कि बिना यूक्रेन के, कोई भी शांति समझौता उचित और प्रभावी नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि “हमारे बिना इस तरह की वार्ता से कोई ठोस परिणाम नहीं निकलेंगे।”
इसके अलावा, यूरोपीय नेता भी इस मुद्दे पर चिंता जता रहे हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर और अन्य यूरोपीय नेताओं ने इस घटनाक्रम पर अपनी चिंता व्यक्त की है, खासकर जब यह माना जा रहा है कि अमेरिका और रूस के बीच होने वाली वार्ता में यूरोपीय नेताओं को शामिल नहीं किया गया है। यह चिंता बढ़ रही है कि रूस और अमेरिका के बीच होने वाली इस वार्ता से केवल रूस के हितों को प्राथमिकता मिल सकती है, जबकि यूक्रेन और यूरोप के बाकी हिस्सों के दृष्टिकोण को नजरअंदाज किया जा सकता है।
अमेरिका-रूस के बीच वार्ता के संभावित परिणाम
यह US-Russia वार्ता एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में देखी जा रही है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के बाद यह पहली बार है, जब दोनों देशों के शीर्ष अधिकारी मिल रहे हैं। अमेरिकी दूत स्टीव विटकॉफ और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज सऊदी अरब में रूस के अधिकारियों से वार्ता करेंगे, और यह बातचीत अमेरिका और रूस के बीच संबंधों को सुधारने का एक महत्वपूर्ण प्रयास हो सकता है।
इसके बावजूद, यूक्रेन की अनुपस्थिति को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंताएं बढ़ रही हैं। यूक्रेन का कहना है कि यदि शांति वार्ता में उसे शामिल नहीं किया जाता है, तो इसका कोई वास्तविक प्रभाव नहीं होगा।
यूक्रेन के बिना US-Russia वार्ता के परिणामों को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। रूस और अमेरिका के बीच इस वार्ता का उद्देश्य शांति की ओर बढ़ना है, लेकिन यूक्रेन की अनुपस्थिति इसे कठिन बना सकती है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में यह एक जटिल स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जहां प्रमुख शक्तियां एक तरफ, जबकि प्रभावित देश को दरकिनार किया गया है। यह वार्ता भविष्य में वैश्विक कूटनीतिक परिदृश्य को नया आकार दे सकती है, लेकिन उसके लिए सभी पक्षों की भागीदारी और समावेशन आवश्यक होगा।