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इस मंदिर में राधा नहीं, रुक्मिणी के साथ विराजते हैं भगवान कृष्ण जानिए इस अनोखी परंपरा के पीछे की वजह!

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मानी जाने वाली मथुरा आध्यात्मिकता और भक्ति का अद्वितीय केंद्र है। इसी नगरी में स्थित है उत्तर भारत का सबसे विशाल कृष्ण मंदिर — द्वारकाधीश मंदिर, जिसकी सबसे खास बात यह है कि यहां राधा नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी जी के साथ विराजमान हैं।

Gulshan by Gulshan
August 16, 2025
in Latest News, धर्म
Janmashtmi 2025
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Janmashtmi 2025 : भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मानी जाने वाली मथुरा आध्यात्मिकता और भक्ति का अद्वितीय केंद्र है। इसी नगरी में स्थित है उत्तर भारत का सबसे विशाल कृष्ण मंदिर — द्वारकाधीश मंदिर, जिसकी सबसे खास बात यह है कि यहां राधा नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी जी के साथ विराजमान हैं।

यह मंदिर अपनी अनूठी परंपरा और ऐतिहासिक विरासत के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। आमतौर पर श्रीकृष्ण को राधा जी के साथ पूजने की परंपरा रही है, लेकिन यह मंदिर उस प्रचलन से अलग है।

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ग्वालियर से मिली थी श्रीकृष्ण की प्राचीन मूर्ति

ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व, ग्वालियर में खुदाई के दौरान सिंधिया शासन के समय के कोषाध्यक्ष गोकुलदास पारेख को भगवान श्रीकृष्ण की एक दिव्य प्रतिमा प्राप्त हुई थी। इसी खुदाई में छोटे द्वारकाधीश की मूर्ति भी मिली, और साथ ही प्रकट हुई थी एक दुर्लभ मूर्ति — हरिहर नाथ जी, जिनका आधा स्वरूप भगवान विष्णु जैसा था और आधा स्वरूप शिवजी का प्रतीक था। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलदास जी को स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया था कि चूंकि उनका जन्म ब्रजभूमि में हुआ है, अतः उनकी प्रतिमा भी वहीं स्थापित की जाए। इसी आदेश के अनुसार, मथुरा में इस भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।

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इस मंदिर में श्रीकृष्ण के आठ रूपों की पूजा होती है। पूरे दिन में आठ बार मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले जाते हैं। हर बार की पूजा, आरती, भोग और श्रीकृष्ण के वस्त्र अलग-अलग होते हैं। यही नहीं, दिनभर में आठ झांकियां सजाई जाती हैं, जो श्रीकृष्ण और रुक्मिणी जी के आठ विभिन्न भावों को दर्शाती हैं। मंदिर परिसर में शालिग्राम शिला की भी विशेष पूजा होती है, जिसे श्रीकृष्ण उपासना का अभिन्न अंग माना जाता है। इसके अतिरिक्त, मंदिर के शिखर पर लहराती ध्वजा की पूजा का भी विशेष विधान है। यह ध्वजा पूरे विधिपूर्वक अर्पित की जाती है और इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है।

दर्शनार्थियों का उमड़ता है सैलाब

रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। यहां की आत्मिक शांति, भक्ति रस से सराबोर वातावरण और कृष्ण-रुक्मिणी की अनोखी आराधना भक्तों को एक अलौकिक अनुभव देती है। द्वारकाधीश मंदिर न केवल अपनी भव्यता और ऐतिहासिकता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए परंपरा का कोई बंधन नहीं होता — जहां रुक्मिणी संग श्रीकृष्ण की पूजा भी उतनी ही पवित्र और भावपूर्ण मानी जाती है, जितनी राधा-कृष्ण की।

Tags: Janmashtmi 2025
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