JNU में अब ‘कुलपति’ नहीं, ‘कुलगुरु’ की होगी गूंज, भारतीय परंपरा की वापसी!

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। अब विश्वविद्यालय में कुलपति को 'कुलगुरु' के नाम से संबोधित किया जाएगा। इस प्रस्ताव को बैठक में स्वीकृति भी मिल चुकी है।

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Delhi News : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। अब विश्वविद्यालय में ‘कुलपति’ की जगह ‘कुलगुरु’ शब्द का प्रयोग किया जाएगा। यह बदलाव केवल शब्दों की अदला-बदली नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरी वैचारिक और सांस्कृतिक सोच छिपी है।

विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (Executive Council) की हालिया बैठक में जेएनयू की वर्तमान कुलपति, प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने इस प्रस्ताव को रखा, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकृति मिल गई। यह नया नामकरण वर्ष 2025 से औपचारिक रूप से लागू किया जाएगा।

दस्तावेजों में भी होंगे बदलाव

इस निर्णय के तहत विश्वविद्यालय के सभी आधिकारिक दस्तावेज—जैसे डिग्री प्रमाणपत्र, नियुक्ति पत्र, अधिसूचनाएं आदि—में ‘कुलपति’ शब्द के स्थान पर ‘कुलगुरु’ लिखा जाएगा। प्रो. शांतिश्री जब भी किसी आधिकारिक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करेंगी, उनके नाम के साथ अब ‘कुलगुरु’ का उल्लेख किया जाएगा।

क्या है मुख्य उद्देश्य ? 

इस परिवर्तन के पीछे दो प्रमुख उद्देश्य हैं:

  1. लैंगिक समता (Gender Neutrality)

  2. भारतीय सांस्कृतिक विरासत से जुड़ाव

‘कुलपति’ शब्द पारंपरिक रूप से ‘कुल का पति’ या परिवार का पुरुष प्रमुख दर्शाता है, जो एक पितृसत्तात्मक सोच को परिलक्षित करता है। इसके विपरीत ‘कुलगुरु’ एक ऐसा शब्द है जिसमें लिंगभेद की कोई झलक नहीं है। यह किसी भी लिंग के व्यक्ति के लिए समान रूप से प्रयोग किया जा सकता है, जिससे यह समावेशिता और लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है।

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प्रोफेसर शांतिश्री का मानना है कि हमारी भाषा हमारे सोचने के तरीके को आकार देती है। अगर हम समतामूलक समाज की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो भाषा में भी वह समानता झलकनी चाहिए। ‘कुलगुरु’ शब्द न केवल सम्मानजनक है, बल्कि यह सभी को समावेश करने वाला और संवेदनशील भी है।

भारतीय परंपरा की ओर वापसी

‘कुलगुरु’ शब्द की जड़ें भारत की प्राचीन शैक्षिक परंपरा में गहराई से जुड़ी हैं। गुरुकुल प्रणाली में गुरु न केवल ज्ञानदाता होते थे, बल्कि वे अपने शिष्यों के मार्गदर्शक, संरक्षक और नैतिक शिक्षक भी होते थे। ‘कुलगुरु’ उसी परंपरा का प्रतिनिधि शब्द है, जो शिक्षा को केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन निर्माण की एक समग्र यात्रा मानता है।

प्रो. शांतिश्री का यह कहना कि भारतीय शिक्षा प्रणाली सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि सोच, मूल्य और व्यवहार की शिक्षा देती है, इस कदम के पीछे की मंशा को स्पष्ट करता है।

अन्य राज्यों में भी उठी है यह पहल

यह कदम जेएनयू तक ही सीमित नहीं है। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी विश्वविद्यालयों के स्तर पर ‘कुलपति’ शब्द को बदलकर ‘कुलगुरु’ अपनाने के प्रस्ताव सामने आ चुके हैं। ऐसे में जेएनयू का यह फैसला एक प्रेरक उदाहरण बन सकता है, जो अन्य शिक्षण संस्थानों को भी अपनी परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन साधने की दिशा में प्रेरित करेगा। यह परिवर्तन न केवल भाषा का है, बल्कि सोच का भी — एक ऐसे शैक्षिक माहौल की ओर बढ़ते हुए, जो समावेशी, पारंपरिक मूल्यों से जुड़ा और आधुनिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण हो।

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