पटना। बिहार में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस की गठबंधन वाली सरकार है. यहां पर 2024 लोकसभा चुनाव से पहले सीएम नीतीश कुमार ने बड़ा दावं खेलते हुए जातिगत जनगणना के आंकड़ें को सार्वजनिक कर दिया है. इस कदम के बाद राज्य में पिछड़ा वर्ग के लोगों की राजनीति में एक नई शुरुआत मानी जा रही है. जिसका असर 2024 के आम चुनाव पर और 2025 के विधानसभा पर पड़ते हुए देखा जा सकता है.
बिहार में पिछड़ा वर्ग की आबादी 60 फीसदी से अधिक
बता दें कि राज्य में पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.1 फीसदी, वहीं पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी है. अगर इन दोनों को जोड़ दें तो बिहार में इनकी जनसंख्या 60 फीसदी से ज्यादा 63 प्रतिशत तक हो जा रही है. ये किसी भी सामाजिक समूह के मुकाबले बहुत ज्यादा है. ऐसे में आगामी चुनावों में इस वर्ग के प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा हो सकती है और पिछड़ा वर्ग के राजनीति की एक नई शुरुआत के रूप में देखी जा रही है.
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जाति के आधार पर सबसे ज्यादा यादवों की संख्या
गौरतलब है कि बिहार सरकार की तरफ से विकास आयुक्त विवेक सिंह प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया है कि राज्य में फिलहाल सवर्णों की संख्या पूरी आबादी की करीब 15.52 प्रतिशत है. इसमें यादवों की संख्या 14 फीसदी, ब्राह्मण जाति से 3.66 फीसदी, राजपूत 3.45 फीसदी, मुसहर 3 प्रतिशत, कुर्मी की जनसंख्या 2.87 फीसदी, भूमिहार 2.86 प्रतिशत है.अगर धर्म के आधार पर बात करें तो सबसे ज्यादा हिंदू धर्म के लोग 81.99 प्रतिशतक, उसके बाद 17.70 प्रतिशत इस्लाम धर्म को मानने वाले और बाकी में अन्य धर्म को मानने वाले हैं.
चुनाव से पहले नीतीश का माना जा रहा बड़ा दांव
2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार के नीतीश सरकार ने बड़ा दाव चलते हुए जातिगत जनगणना के डाटा को पेश कर दिया है. जेडीयू नेता और बिहार सीएम का ये दाव काफी अहम माना जा रहा है. बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े को सार्वजनिक करने के बाद राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश में पार्टियों को राजनीतिक रणनीतियों में बदलाव करना पड़ सकता है.