Indian Rupee Fall: भारतीय करेंसी रुपये में गिरावट का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, और इसने बुधवार को एक नया रिकॉर्ड बनाते हुए अमेरिकी डॉलर के मुकाबले $90 के स्तर को भी तोड़ दिया। शुरुआती कारोबार में यह $90.14 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका है। यह तेज गिरावट मुख्य रूप से आयातकों (Importers) द्वारा डॉलर की निरंतर खरीद, घरेलू और विदेशी बाजारों में बिकवाली के दबाव, और भारत-अमेरिका व्यापार सौदे में हो रही देरी के कारण हुई है। रुपये का कमजोर होना देश की आर्थिक सेहत के लिए शुभ संकेत नहीं है और यह विशेष रूप से महंगाई को बढ़ा सकता है, जिससे आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ने की आशंका है।
रुपया टूटने के बड़े नुकसान क्या हैं?
किसी भी देश की करेंसी का तेजी से अवमूल्यन (decline) होना उसकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक माना जाता है। डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई तरह के बड़े नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं:
1. महंगाई में बड़ा इजाफा (Increased Inflation)
यह रुपये के कमजोर होने का सबसे सीधा और गंभीर परिणाम है।
आयातित वस्तुएं महंगी: भारत अपनी जरूरत का एक बड़ा हिस्सा, खासकर कच्चा तेल (Crude Oil), आयात करता है। जब रुपया गिरता है, तो उसी मात्रा का तेल खरीदने के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं (क्योंकि भुगतान डॉलर में करना होता है)।
पेट्रोल-डीजल के दाम: कच्चे तेल के महंगे होने से देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने का खतरा रहता है।
परिवहन लागत: ईंधन महंगा होने से परिवहन (Transportation) और लॉजिस्टिक्स (Logistics) की लागत बढ़ जाती है। यह बढ़ी हुई लागत अंततः सभी वस्तुओं—सब्जियों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक—के खुदरा मूल्य (retail price) में जुड़ जाती है, जिससे देश में महंगाई (Inflation) तेजी से बढ़ती है।
2. व्यापार घाटे में वृद्धि (Widening Trade Deficit)
Indian Rupee के मूल्य में गिरावट से आयात (Imports) महंगे हो जाते हैं और निर्यात (Exports) सस्ते हो जाते हैं।
सैद्धांतिक रूप से, सस्ता निर्यात अच्छा होता है, लेकिन भारत मुख्य रूप से कच्चे माल और मध्यवर्ती वस्तुओं (intermediate goods) का आयात करता है। महंगा आयात होने से देश का आयात बिल बढ़ जाता है।
जब आयात बिल, निर्यात से होने वाली आय से अधिक हो जाता है, तो व्यापार घाटा (Trade Deficit) और अधिक बढ़ जाता है, जिससे देश के चालू खाता घाटे (Current Account Deficit – CAD) पर दबाव पड़ता है।
3. विदेशी कर्ज चुकाना महंगा (Higher Foreign Debt Repayment)
भारत सरकार और भारतीय कंपनियों ने जो कर्ज डॉलर में लिया हुआ है, उसे चुकाने की लागत रुपये के कमजोर होने पर बढ़ जाती है।
$100 का कर्ज चुकाने के लिए पहले $8000 की जरूरत थी, लेकिन अब $9000 या उससे अधिक की जरूरत होगी।
इससे कंपनियों का मुनाफा कम होता है और देश पर वित्तीय दबाव बढ़ता है।
4. पूंजी का बहिर्वाह (Capital Outflow)
जब Indian Rupee लगातार गिरता है, तो विदेशी निवेशक (FIIs) अपने निवेश पर और अधिक नुकसान से बचने के लिए भारतीय शेयर और बॉन्ड बाजार से डॉलर निकालकर अपने देश ले जाने लगते हैं।
इस पूंजी बहिर्वाह से बाजार में और गिरावट आती है, जिससे रुपये पर और भी ज्यादा दबाव पड़ता है, और यह एक दुष्चक्र (vicious cycle) बन जाता है।
अब आगे क्या? और कितना नीचे जा सकता है रुपया?
विशेषज्ञों के अनुसार, फिलहाल रुपये के लिए कोई निश्चित निचला स्तर बताना मुश्किल है।
कुछ डीलरों ने $90.20 के स्तर को टेक्निकल सपोर्ट माना है।
हालांकि, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) रुपये को और अधिक गिरने से रोकने के लिए बाजार में डॉलर बेचकर हस्तक्षेप करता है, ताकि अस्थिरता को कम किया जा सके।
Indian Rupee की आगे की दिशा वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति, और भारत-अमेरिका व्यापार सौदे की प्रगति पर निर्भर करेगी।
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Indian Rupee Fall: भारतीय करेंसी रुपये में गिरावट का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, और इसने बुधवार को एक नया रिकॉर्ड बनाते हुए अमेरिकी डॉलर के मुकाबले $90 के स्तर को भी तोड़ दिया। शुरुआती कारोबार में यह $90.14 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका है। यह तेज गिरावट मुख्य रूप से आयातकों (Importers) द्वारा डॉलर की निरंतर खरीद, घरेलू और विदेशी बाजारों में बिकवाली के दबाव, और भारत-अमेरिका व्यापार सौदे में हो रही देरी के कारण हुई है। रुपये का कमजोर होना देश की आर्थिक सेहत के लिए शुभ संकेत नहीं है और यह विशेष रूप से महंगाई को बढ़ा सकता है, जिससे आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ने की आशंका है।
रुपया टूटने के बड़े नुकसान क्या हैं?
किसी भी देश की करेंसी का तेजी से अवमूल्यन (decline) होना उसकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक माना जाता है। डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई तरह के बड़े नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं:
1. महंगाई में बड़ा इजाफा (Increased Inflation)
यह रुपये के कमजोर होने का सबसे सीधा और गंभीर परिणाम है।
आयातित वस्तुएं महंगी: भारत अपनी जरूरत का एक बड़ा हिस्सा, खासकर कच्चा तेल (Crude Oil), आयात करता है। जब रुपया गिरता है, तो उसी मात्रा का तेल खरीदने के लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं (क्योंकि भुगतान डॉलर में करना होता है)।
पेट्रोल-डीजल के दाम: कच्चे तेल के महंगे होने से देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने का खतरा रहता है।
परिवहन लागत: ईंधन महंगा होने से परिवहन (Transportation) और लॉजिस्टिक्स (Logistics) की लागत बढ़ जाती है। यह बढ़ी हुई लागत अंततः सभी वस्तुओं—सब्जियों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक—के खुदरा मूल्य (retail price) में जुड़ जाती है, जिससे देश में महंगाई (Inflation) तेजी से बढ़ती है।
2. व्यापार घाटे में वृद्धि (Widening Trade Deficit)
Indian Rupee के मूल्य में गिरावट से आयात (Imports) महंगे हो जाते हैं और निर्यात (Exports) सस्ते हो जाते हैं।
सैद्धांतिक रूप से, सस्ता निर्यात अच्छा होता है, लेकिन भारत मुख्य रूप से कच्चे माल और मध्यवर्ती वस्तुओं (intermediate goods) का आयात करता है। महंगा आयात होने से देश का आयात बिल बढ़ जाता है।
जब आयात बिल, निर्यात से होने वाली आय से अधिक हो जाता है, तो व्यापार घाटा (Trade Deficit) और अधिक बढ़ जाता है, जिससे देश के चालू खाता घाटे (Current Account Deficit – CAD) पर दबाव पड़ता है।
3. विदेशी कर्ज चुकाना महंगा (Higher Foreign Debt Repayment)
भारत सरकार और भारतीय कंपनियों ने जो कर्ज डॉलर में लिया हुआ है, उसे चुकाने की लागत रुपये के कमजोर होने पर बढ़ जाती है।
$100 का कर्ज चुकाने के लिए पहले $8000 की जरूरत थी, लेकिन अब $9000 या उससे अधिक की जरूरत होगी।
इससे कंपनियों का मुनाफा कम होता है और देश पर वित्तीय दबाव बढ़ता है।
4. पूंजी का बहिर्वाह (Capital Outflow)
जब Indian Rupee लगातार गिरता है, तो विदेशी निवेशक (FIIs) अपने निवेश पर और अधिक नुकसान से बचने के लिए भारतीय शेयर और बॉन्ड बाजार से डॉलर निकालकर अपने देश ले जाने लगते हैं।
इस पूंजी बहिर्वाह से बाजार में और गिरावट आती है, जिससे रुपये पर और भी ज्यादा दबाव पड़ता है, और यह एक दुष्चक्र (vicious cycle) बन जाता है।
अब आगे क्या? और कितना नीचे जा सकता है रुपया?
विशेषज्ञों के अनुसार, फिलहाल रुपये के लिए कोई निश्चित निचला स्तर बताना मुश्किल है।
कुछ डीलरों ने $90.20 के स्तर को टेक्निकल सपोर्ट माना है।
हालांकि, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) रुपये को और अधिक गिरने से रोकने के लिए बाजार में डॉलर बेचकर हस्तक्षेप करता है, ताकि अस्थिरता को कम किया जा सके।
Indian Rupee की आगे की दिशा वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति, और भारत-अमेरिका व्यापार सौदे की प्रगति पर निर्भर करेगी।

