पूर्व डीआईजी ने इस घटना को याद करते हुए बताया, लंबी और मुश्किल बातचीत के बाद यह सहमति बनाई गई थी कि सिर्फ 3 आतंकवादियों को छोड़ा जाएगा। ये आतंकवादी थे मौलाना मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक जरगर। वैद्य ने बताया कि उस समय मसूद अजहर जम्मू की एक उच्च सुरक्षा वाली जेल में कैद था। जब सरकार ने उसे रिहा करने का निर्णय लिया, तो जम्मू-कश्मीर पुलिस प्रमुख ने वैद्य को जिम्मेदारी दी कि वह मसूद अजहर को जेल से अपनी कस्टडी में लेकर जम्मू के टेक्निकल एयरपोर्ट पर दिल्ली से आए अधिकारियों को सौंप दें। इसके साथ ही उन्हें यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए थे कि मीडिया को इस घटना का कोई पता न चले।
मसूद अजहर की रिहाई को याद करते हुए एसपी वैद्य ने कहा कि जब वह जेल से उसे लेने गए, तो मसूद के चेहरे पर एक नापाक मुस्कान थी, जैसे वह कहना चाह रहा हो, आखिरकार तुम्हारी सरकार को मुझे छोड़ना ही पड़ा। वैद्य को पता था कि यह आतंकी, जब रिहा होगा, तो कई मासूमों की जान लेगा और ठीक ऐसा ही हुआ। पाकिस्तान पहुंचने के बाद मसूद अजहर ने जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया और भारत पर सैकड़ों हमले किए, जिनमें संसद पर हमला, मुंबई हमले और पुलवामा हमला शामिल हैं। पूर्व डीआईजी ने यह भी कहा कि जब मसूद को छोड़ा जा रहा था, तो उनका मन कर रहा था कि इसे जिंदा वापस न जाने दिया जाए।
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बता दें, कि दिसंबर साल 1999 में, नेपाल के काठमांडू से दिल्ली आ रही एक भारतीय विमान को आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया था, जिसमें ज्यादातर यात्री भारतीय थे। आतंकवादियों ने विमान के बदले 36 आतंकवादियों की रिहाई की मांग की थी। यह विमान काठमांडू से अमृतसर, फिर लाहौर और अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया था। वहां, 176 यात्रियों की सुरक्षित रिहाई के बदले, भारत सरकार को तीन आतंकवादियों को मजबूरन रिहा करना पड़ा था। इनमें मौलाना मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक जरगर शामिल थे।