मालदीव (Maldives) ने 28 द्वीपों की व्यवस्था को भारत को सौंपने का फैसला लिया है। अब इन द्वीपों पर पानी की आपूर्ति और सीवर परियोजनाओं की देखरेख की जिम्मेदारी भारत सरकार की होगी। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने इस बात की घोषणा खुद सोशल मीडिया पर की है। एक्स पर पोस्ट करते हुए मुइज्जू ने लिखा, मालदीव के 28 द्वीपों में पानी और नाले से जुड़ी परियोजनाओं को आधिकारिक तौर पर सौंपे जाने के मौके पर डॉक्टर एस जयशंकर से मिलकर खुशी हुई। हमेशा मालदीव की मदद करने के लिए मैं भारत सरकार और खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करता हूं।
बता दें, कि मालदीव (Maldives) लगभग 1190 द्वीपों का समूह है, जिनमें से केवल 200 द्वीपों पर ही आबादी है, और 150 द्वीप टूरिज्म के लिए विकसित किए गए हैं। इस समझौते के तहत, अब इन 200 बसे हुए द्वीपों में से 28 द्वीपों की व्यवस्था भारत के हाथों में होगी।
इसी बीच अब ये सवाल भी उठने लगा है कि राष्ट्रपति मुइज्जू ने सिर्फ पानी और सीवर की देखरेख के लिए ही 28 द्वीपों की व्यवस्था भारत को क्यों सौंपी? इसका कारण मालदीव में होटलों और रिसॉर्ट्स के लिए कचरा निपटान के सख्त नियम हैं। होटलों और रिसॉर्ट्स को अपने कचरे को अलग-अलग करना अनिवार्य है। ठोस कचरा थिलाफुशी द्वीप पर भेजा जाता है, जहां उसे गलाया जाता है। होटलों और रिसॉर्ट्स को यह सुनिश्चित करना होता है कि उनका कचरा सही तरीके से पैक और लेबल किया गया हो, ताकि उसे सुरक्षित रूप से थिलाफुशी भेजा जा सके। थिलाफुशी द्वीप, जिसे आमतौर पर कचरा द्वीप कहा जाता है। मालदीव में कचरा निपटान का मुख्य स्थल है, जो माले से लगभग 7 किलोमीटर दूर है। 1990 के दशक में इसे लैंडफिल के रूप में विकसित किया गया था और तब से मालदीव के अन्य द्वीपों से कचरा इकट्ठा कर यहां फेंका जाता है। कचरा निपटान के लिए भारत मालदीव को तकनीकी और वित्तीय सहायता देता है।
मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख भागीदार है और यह भारत की पड़ोसी प्रथम नीति के केंद्र में है। मालदीव भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है और मालदीव का पर्यटन काफी हद तक भारतीय पर्यटकों पर निर्भर करता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर की तीन दिवसीय मालदीव यात्रा के दौरान चीन इस पर पैनी नज़र रख रहा था। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि चीन मालदीव के साथ विशेष संबंध या सहयोग की इच्छा नहीं रखता है, जबकि भारत क्षेत्र में अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए चीन को एक खतरे के रूप में प्रस्तुत करता है। हालांकि, चीन के निगरानी के बावजूद, वह भारत-मालदीव संबंधों को खराब करने में असफल रहा है।
कूटनीतिक विशेषज्ञ अब इस पर सवाल उठा रहे हैं कि मुइज्जू, जो पहले चीन को भारत पर प्राथमिकता देते थे। अब फिर से भारत की ओर क्यों देख रहे हैं। बता दें, कि मुइज्जू को चीन से उतनी मदद नहीं मिल रही है जितनी उन्होंने उम्मीद की थी। इसलिए मालदीव फिर से भारत की ओर रुख कर रहा है।
आपको बता दें, जब मुइज्जू मालदीव के राष्ट्रपति चुने गए थे, तब वह भारत विरोधी देशों की यात्रा पर गए थे, जिनमें तुर्की और चीन शामिल थे। चीन की यात्रा के दौरान, मुइज्जू ने 36 द्वीपों को चीन को सौंपने की घोषणा की थी और चीन ने 1200 करोड़ रुपये के निवेश का वादा किया था। इस समझौते ने भारत में चिंता बढ़ा दी थी।
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भारत को डर था कि अगर इन द्वीपों पर चीन का प्रभाव बढ़ा तो यह सुरक्षा के लिहाज से एक बड़ी चुनौती बन सकता है। इसका कूटनीति के तहत हल निकालने का भारत ने कई कदम उठाए। जयशंकर की मालदीव यात्रा इसी कूटनीति का हिस्सा है। भारत ने लगातार मालदीव को यह याद दिलाया है कि यदि हम तुम्हारा साथ छोड़ देंगे तो तुम संकट में पड़ जाओगे। भारत की कूटनीतिक जीत इस बात से लगाई जा सकती है, जहां चीन ने 36 द्वीपों को 1200 करोड़ रुपये में हासिल करने की सोची थी, उसे भारत ने 28 द्वीपों को 923 करोड़ रुपये में लिया।