Ayodhya मेडिकल कॉलेज कर्मी प्रभुनाथ मिश्रा की मौत में बड़ा खुलासा: बिसरा सैंपल बदले जाने का आरोप, न्याय की जंग जारी

अयोध्या मेडिकल कॉलेज कर्मी प्रभुनाथ मिश्रा की संदिग्ध मौत के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। DNA जांच में बिसरा सैंपल बदलने की पुष्टि हुई है, जिससे मेडिकल सिस्टम और जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

Ayodhya

Ayodhya Medical College: उत्तर प्रदेश के Ayodhya मेडिकल कॉलेज में संविदा कर्मी प्रभुनाथ मिश्रा की मौत के मामले ने एक चौंकाने वाला मोड़ ले लिया है। हैदराबाद की केंद्रीय फॉरेंसिक लैब CDFD की DNA जांच में खुलासा हुआ है कि बिसरा सैंपल प्रभुनाथ का नहीं था। इस सनसनीखेज खुलासे ने न केवल अयोध्या मेडिकल कॉलेज बल्कि लखनऊ के KGMU की मोर्चरी और फॉरेंसिक प्रक्रियाओं पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। परिजनों का आरोप है कि बिसरा बदलने की यह साजिश प्रभुनाथ को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वालों को बचाने के लिए रची गई थी। परिवार एक साल से इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है।

प्रभुनाथ मिश्रा की मौत का स्याह सच

Ayodhya मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्सिंग कर्मी प्रभुनाथ मिश्रा की 2023 में संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी। परिवार का आरोप है कि प्रभुनाथ को मानसिक प्रताड़ना दी जा रही थी और SC/ST एक्ट में झूठे मुकदमे की धमकी दी जा रही थी। इसी दबाव में उन्होंने आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाया। लेकिन बिसरा जांच की रिपोर्ट ने इस पूरे मामले को उलझा दिया।

DNA जांच में सामने आया कि KGMU मोर्चरी में संरक्षित किया गया बिसरा प्रभुनाथ का नहीं था। परिवार का आरोप है कि बिसरा सैंपल जानबूझकर बदला गया ताकि प्रभुनाथ को प्रताड़ित करने वालों को बचाया जा सके। परिजनों ने तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार और अन्य अधिकारियों पर साजिश रचने का आरोप लगाया है। FIR दर्ज होने के बावजूद गिरफ्तारी नहीं हुई है।

बिसरा रिपोर्ट में विरोधाभास और संस्थानों की भूमिका पर सवाल

बिसरा सैंपल और स्टेट मेडिको लीगल रिपोर्ट में गंभीर विरोधाभास सामने आए हैं। स्टेट रिपोर्ट में जहर देने की संभावना से इनकार नहीं किया गया था, लेकिन बिसरा जांच में आत्महत्या की पुष्टि नहीं हुई। परिजनों का दावा है कि बिसरा में किसी और का अंग मिला दिया गया। यह लापरवाही नहीं, बल्कि सुनियोजित साजिश का हिस्सा हो सकती है।

KGMU मोर्चरी, जो प्रदेश की सबसे बड़ी मेडिकल संस्थाओं में से एक है, उसकी कार्यशैली और सुरक्षा प्रक्रियाओं पर अब सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि बिसरा बदलने जैसी घटना बिना अंदरूनी मिलीभगत के संभव नहीं हो सकती।

पीड़ित परिवार की इंसाफ की जंग और प्रशासन की चुप्पी

परिजनों ने Ayodhya से लखनऊ तक अधिकारियों से लेकर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक तक गुहार लगाई, लेकिन अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई। डिप्टी सीएम के आदेश के बावजूद जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। अयोध्या पुलिस ने एक साल में चार्जशीट तक दाखिल नहीं की।

परिजनों का कहना है, “हमारा बेटा मानसिक उत्पीड़न का शिकार था। उसकी मौत को आत्महत्या का रंग देकर दोषियों को बचाया जा रहा है। अब बिसरा बदलने का खुलासा हो चुका है, फिर भी हमें इंसाफ नहीं मिल रहा।”

सवालों के घेरे में मेडिकल सिस्टम

प्रभुनाथ मिश्रा की मौत का मामला अब केवल आत्महत्या नहीं, बल्कि एक संगठित साजिश का प्रतीक बन गया है। CDFD की DNA रिपोर्ट ने सच्चाई को उजागर कर दिया, लेकिन यह सवाल बरकरार है कि क्या पीड़ित परिवार को इंसाफ मिलेगा? या यह मामला भी अन्य विवादित मामलों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा?

जब तक दोषियों को सख्त सजा नहीं मिलती और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए जाते, तब तक प्रभुनाथ मिश्रा जैसे कई पीड़ित न्याय के लिए भटकते रहेंगे।

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