Maha Kumbh 2024 : महाकुंभ में दिखेगा ‘आस्था का अर्थशास्त्र,’ श्रद्धालुओं के खर्च से देश की अर्थव्यवस्था को मिलेगा 4 लाख करोड़ का बूस्ट

Maha Kumbh Mela : उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, इस महाकुंभ में 40 करोड़ से ज्यादा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के शामिल होने का अनुमान है। यदि हर व्यक्ति औसतन 5,000-10,000 रुपये खर्च करता है, तो...

Maha Kumbh Mela : महाकुंभ मेला जिसे सबसे विशाल सांस्कृतिक समागम माना जाता है, वो न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका आर्थिक प्रभाव भी अत्यधिक व्यापक है। अनुमान के अनुसार 2024 के महाकुंभ से 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक का व्यापार होगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा प्रोत्साहन देगा। इस आयोजन से भारत की जीडीपी में 1% से अधिक की वृद्धि होने और सरकारी राजस्व में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की उम्मीद है।

उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, इस महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के शामिल होने का अनुमान है। यदि हर व्यक्ति औसतन 5,000-10,000 रुपये खर्च करता है, तो कुल आर्थिक गतिविधियां 4.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकती हैं। इन खर्चों से आवास, परिवहन, खानपान, हस्तशिल्प, और पर्यटन जैसे कई क्षेत्रों को लाभ होगा। यह जनवरी और फरवरी के दौरान अनियोजित आर्थिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

GDP 

महाकुंभ के कारण देश की जीडीपी में 1% से अधिक की वृद्धि का अनुमान है। 2023-24 में भारत की जीडीपी 295.36 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2024-25 में 324.11 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है। इस वृद्धि में महाकुंभ का अहम योगदान होगा। इसके अतिरिक्त, सरकार का राजस्व, जिसमें जीएसटी, आयकर और अन्य अप्रत्यक्ष कर शामिल हैं, 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। केवल जीएसटी संग्रह ही 50,000 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर सकता है।

राज्य सरकार का निवेश

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस महाकुंभ के लिए 16,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है। यह निवेश न केवल सांस्कृतिक, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक साबित हो रहा है।

सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व का मेल

महाकुंभ जैसे आयोजनों से भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत को नया आयाम मिलता है। ये आयोजन न केवल पर्यटन और व्यापार को प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को भी बढ़ावा देते हैं। महाकुंभ केवल आर्थिक उन्नति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक भी है।

इस आयोजन से स्पष्ट होता है कि भारत की संस्कृति और अर्थव्यवस्था के बीच गहरा संबंध है, जो एक-दूसरे को मजबूती प्रदान करते हैं। महाकुंभ, अपने व्यापक प्रभाव के साथ, न केवल आध्यात्मिकता बल्कि आर्थिक समृद्धि का भी प्रतीक बन गया है।

 

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