प्रयागराज के बाद बनारस ही क्यों जाते है नागा साधु? वजह जानकर आप हो जाएंगे हैरान

महाकुंभ प्रयागराज में 26 फरवरी को अंतिम स्नान होगा, महाशिवरात्री पर होने वाले विशेष स्नान को लेकर प्रयागराज में तैयारियां पूरी हो चुकी है जबकि इससे पूर्व में 14 जनवरी, 29 जनवरी और 3 फरवरी को अमृत स्नान हो चुके है जिसके बाद 7 शैव यानि की सन्यासी अखाड़े वाराणसी के लिए कूच कर गए।

Mahakumbh 2025

(मोहसिन खान) नोएडा डेस्क। महाकुंभ (Mahakumbh 2025) प्रयागराज में 26 फरवरी को अंतिम स्नान होगा, महाशिवरात्री पर होने वाले विशेष स्नान को लेकर प्रयागराज में तैयारियां पूरी हो चुकी है जबकि इससे पूर्व में 14 जनवरी, 29 जनवरी और 3 फरवरी को अमृत स्नान हो चुके है जिसके बाद 7 शैव यानि की सन्यासी अखाड़े वाराणसी के लिए कूच कर गए।

अब काशी में घाटों और मठों में नागा सन्यासियों के दर्शन हो रहे है लेकिन वाजिब सा सवाल ये है कि आखिरकार अखाड़ों से जुडें नागा साधु और महामंडलेश्वर अमृत स्नान के बाद ना तो मठ-मंदिरों में लौटते और ना ही अन्य किसी स्थान पर बल्कि वो काशी ही जाते है, वहां जाकर क्या करते है और क्या है महाकुंभ के अमृत स्नान के बाद काशी जाने की परंपरा और क्यों काशी में वैष्णव अखाडे कूच नहीं करते, इसी रहस्य से हम अपनी इस रिपोर्ट में सिलसिलेवार तरीके से पर्दा हटाएंगे।

किसने शुरू की थी काशी जाने की परंपरा

अर्धकुंभ हो या फिर महाकुंभ (Mahakumbh 2025) इन सबके बाद काशी जाने की परंपरा आदिशंकराचार्य के समय से चली आ रही है। दरअसल महाकुंभ में सभी अखाड़े के साधु-संत, संन्यासी, नागा-वैरागी, नर-नारी, देव और किन्नर गंगा-यमुना-सरस्वती के त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाकर मां गंगा को अपना सर्वस्व दान करते हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक जब गंगा पृथ्वी पर आ रही थीं तब त्रिदेव ने मां गंगा को यह वरदान दिया कि हे गंगे! भूलोक पर आपको पुण्य फल की प्राप्ति का सुलभ साधन आपके मानस पुत्र और साधु-संन्यासी होंगे। महाकुंभ में अखाड़ों ने अमृत स्नान किया, बता दें कि अमृत स्नान में सबसे पहले नागा सन्यासी और उनके अखाडे़ के प्रमुख ईष्ट देव को सबसे पहले गंगा जल का स्पर्श कराते है।

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अखाड़े काशी में एक साथ क्यों करते है स्नान

महाकुंभ (Mahakumbh 2025) में अखाड़े अलग अलग समय पर स्नान करते है जबकि काशी में एकसाथ स्नान करते हैं। गंगा में अमृत स्नान के बाद काशी विश्वनाथ पर जलाभिषेक करते हैं। अखाड़े अपने आराध्य देव भगवान शिव को स्पर्श करते हैं। महाकुंभ के बाद ही नागा साधु और अखाड़े काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने जाते हैं। महाकुंभ के बाद वे भोलेनाथ को यह सूचना देने जाते हैं कि प्रभु आपकी कृपा से हमने प्रथम आराधना संपन्न की है।

वहीं जो नए नागा साधु बने होते हैं वे भोलेनाथ का आशीर्वाद लेकर अपनी आगे की तपस्या शुरू करते हैं। वहीं महाकुंभ से काशी प्रवास की परंपरा सिर्फ संन्यासी अखाड़े में ही होती है। संन्यासी अखाड़े भगवान शिव के उपासक हैं, क्योंकि शिव ही गुरु-इष्ट और सब कुछ हैं। शिव के बिना हम अधूरे हैं और शिव भी हमारे बिना अधूरे ही हैं। वहीं वैष्णव अखाड़े भगवान विष्णु को अपना सब कुछ मानते हैं। इसलिए वे महाकुंभ से काशी के आयोजन में शामिल नहीं होते।

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