Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति पर भूलकर भी न करें ये काम, जानिए स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा करना क्यों है जरूरी

हिंदू धर्म में सूर्यदेवता से जुड़े कई प्रमुख त्योहारों को मनाने की परंपरा है। उन्ही में से एक है मकर संक्रांति। आज मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है। शीत ऋतु के पौस मास में जब भगवान भास्कर उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो यूर्य की इस संक्रांति को मकर संक्रांति के रूप में देश भर में मनाया जाता है। वैसे ते मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन पिछले कुछ साल से गणनाओं में आए कुछ परिवर्तन के कारण इसे 15 जनवरी को भी मनाया जाने लगा है। इस साल भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जा रही है।

आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति पर क्या ना करें काम जिससे आप पर पड़ेगा दुषप्रभाव

  1. संक्रांति के दिन रात का बचा हुआ या बासी खाना नहीं खाएं। ऐसा करने से आपके मन पर अधिक गुस्सा और नकारात्मक उर्जा हावी होती है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी और तिल का सेवन ही करें।
  2. इस दिन तामसिक भोजन का सेवन भी नहीं करना चाहिए। तामसिक भोजन यानी लहसुन, प्याज और मांस आदि से दूर रहना है। इसके अलावा इस दिन मसालेदार खाने का भी सेवन नहीं करना चाहिए
  3. इस दिन किसी गरीब या निर्धन व्यक्ति का अपमान करना भी अशुभ माना जाता है। इस दिन ना ही किसी गरीब को खाली हाथ लौटाना चाहिए।
  4. मकर संक्रांति के दिन शराब, सिगरेट, गुटका आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
  5. यह जश्न मनाने का पर्व है इसलिए घर के अंदर या बाहर किसी पेड़ की कटाई-छंटाई भी नही करनी चाहिए।
  6. इस दिन वाणी पर संयम रखने की भी सलाह दी जाती है। इस दिन गुस्सा भी नहीं करना चाहिए। अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  7. मकर संक्रांति के दिन बिना स्नान करें अन्न भी नहीं ग्रहण करना चाहिए। क्योंकि इस दिन का स्नान-दान का खास महत्व होता है।

स्नान करने के बाद सूर्य देव की करें पूजा

आपको बता दें कि नदी के तट पर स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा करते है। ऐसा करने से इंसान की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। साथ ही मकर संक्रांति के दिन सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण होते है और इसी से देवताओं के दिन शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति के साथ ही खरमस्त समाप्त हो जाता है और शादी विवाह जैसे शुभ व मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते है।

मकर संक्रांति के दिन क्यों बनती है खिचड़ी

मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने और इसके दान को लेकर बाबा गोरखनाथ की एक प्रथा प्रचलित है। कहा जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था तो ऐसे में भोजन न मिलने से वो कमज़ोर होते जा रहे थे। वहीं उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ मिलाकर पकाने की सलाह दी। ये आसानी से जल्दी पक जाता था और इससे शरीर को पोषक तत्व भी मिल जाते थे और योगियों का पेट भी भर जाता था। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।

खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रांति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और इस दिन इस खिचड़ी को लोगों के बीच बांटा। उस दिन से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाकर खाने और इसे बांटने की प्रथा शुरू हो गई। मकर संक्रांति के मौके पर गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला भी लगता है। इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और लोगों में इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।

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