medicine price increase: जरूरी दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी, मरीजों पर बढ़ेगा खर्च का बोझ जानिए कब से और कितनी होगी बढ़ोतरी

जरूरी दवाओं की कीमतों में 1.7% तक की बढ़ोतरी होने वाली है। इससे कैंसर, डायबिटीज और हृदय रोग के मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ सकता है। उत्पादन लागत बढ़ने से दवाएं महंगी हो रही हैं

medicine price increase: सरकार द्वारा नियंत्रित कई जरूरी दवाओं की कीमतें जल्द बढ़ने वाली हैं। इनमें कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोग और एंटीबायोटिक्स जैसी दवाएं शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार, इन दवाओं की कीमतों में 1.7% तक की वृद्धि हो सकती है। इस फैसले का असर आम लोगों और फार्मा कंपनियों पर अलग-अलग तरह से देखने को मिलेगा।

कीमतें क्यों बढ़ाई जा रही हैं

दवाओं की कीमतों में इस वृद्धि का मुख्य कारण कच्चे माल और अन्य उत्पादन लागत में बढ़ोतरी बताया जा रहा है। फार्मा इंडस्ट्री से जुड़े लोग लगातार यह मांग कर रहे थे कि बढ़ती उत्पादन लागत को देखते हुए दवाओं के दाम बढ़ाने की अनुमति दी जाए। ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (AIOCD) के महासचिव राजीव सिंघल का कहना है कि फार्मा कंपनियां लगातार बढ़ती उत्पादन लागत से परेशान थीं, इसलिए यह निर्णय उनके लिए राहत भरा हो सकता है।

नई कीमतें कब लागू होंगी

राजीव सिंघल के अनुसार, नई कीमतों को बाजार में लागू होने में 2-3 महीने तक का समय लग सकता है। इसकी वजह यह है कि पहले से स्टोर्स में उपलब्ध पुरानी दवाओं की बिक्री पहले होगी, उसके बाद नई कीमतों वाली दवाएं बाजार में आएंगी। यानी अगर मरीजों को अभी अपनी जरूरी दवाएं खरीदनी हैं, तो वे जल्द से जल्द ले सकते हैं, क्योंकि कुछ समय के लिए पुरानी दरों पर ही दवाएं मिलेंगी।

सरकार की सख्ती के बावजूद बढ़ीं कीमतें

सरकार की राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) दवाओं के दामों को नियंत्रित करने के लिए बनी संस्था है। लेकिन, फार्मा कंपनियां कई बार तय सीमा से अधिक कीमतें बढ़ा चुकी हैं। एक संसदीय रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 307 बार कंपनियों ने दवाओं के दाम तय सीमा से अधिक बढ़ाए।

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मरीजों पर क्या असर पड़ेगा

दवाओं की कीमतें बढ़ने से कैंसर, डायबिटीज और हृदय रोगों से पीड़ित मरीजों को अपनी दवाओं के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं। कई जरूरी एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक दवाओं की कीमतें भी बढ़ने की संभावना है। इससे लाखों मरीजों पर सीधा असर पड़ेगा, खासकर उन लोगों पर जो पहले से ही महंगी दवाओं का खर्च वहन नहीं कर पाते।

हालांकि, सरकार का दावा है कि 2022 की राष्ट्रीय आवश्यक दवा सूची (NLEM) के तहत 3,788 करोड़ रुपये की वार्षिक बचत हुई है, जिससे मरीजों को राहत भी मिली है। सरकार यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि सस्ती जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता बढ़ाई जाए, ताकि मरीजों को ज्यादा आर्थिक बोझ न झेलना पड़े।

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