कानपुर। मायके में दूर-दूर तक कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं था। पिता छोटे से कारोबारी थे और मां गृहणी। पिता से अच्छी तालीम दिलवाई तो मां गंगा जमुनी तहजीब की शिक्षा दी। शादी के बाद जब वह विदा होकर ससुराल आई तो यहां का माहौल कुछ अलग ही था। ससुर विधायक थे। पति भी पिता की पाठशाला में राजनीति की एबीसीडी सीख रहे थे। तभी ससुर का इंतकाल हो जाता है और पति की राजनीति में एंट्री हो जाती है। पहले ही चुनाव में जनता सीधी-साधी युवती के शौहर को एमएलए चुन लेती है। फिर कारवां चल पड़ता है। पति कानपुर की राजनीति के किंग बन जाते हैं। जबकि पत्नी घर की रोशनी। समय बदला और मुकद्दर ने भी धोखा दिया। पति सलाखों के पीछे चले जाते हैं। देवर को भी जेल हो जाती है। घर पर बूढ़ी सासू मां और बच्चे ही बचते हैं। हंसता-खेलता सोलंकी हाउस वीरान हो जाता है और यहीं से एक नई महिला का जन्म होता है।
हां उस महिला का नाम नसीम सोलंकी है। जिन्होंने करीब 34 महिने तक समय का अपने तरीके से मुलाबला किया। नसीम वह लेडी हैं, जिन्होंने अपने पति इरफान सोलंकी को जेल से बाहर निकालने के लिए दिन-रात एक कर दिए। देवर को भी सलाखों से बाहर लाकर सासू मां के चेहरे में मुस्कान ला दी। नसीम सोलंकी का राजनीति से दूर-दूर तक का नाता नहीं था। उन्हें सियासत की एबीसीडी भी नहीं आती। विधायक पति को सजा होती है। इरफान सोलंकी की विधायकी चली जाती है। ऐसे में सीसामऊ में उपचुनाव के लिए मुनादी हो जाती है। जेल में बंद इरफान से मिलने नसीम जाती हैं। इरफान पूछते हैं कि क्या तुम मेरी व मुरे अब्बू की सीट से चुनाव लड़ोगी। जिस पर नसीम खामोस हो जाती है। इरफान भी कहते हैं बेगम इंकार मत करना हैं। हमें लड़ना है। हमें अपने लिए नहीं, बल्कि सीसामऊ की जनता के लिए लड़ना है। कुछ देर के बाद नसीम बोलती हैं, जी हम चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। फिर क्या था अखिलेश यादव उपचुनाव की लिस्ट जारी कर देते हैं। लिस्ट में नसीम का भी नाम होता है। नसीम सियासी पिच पर उतरती हैं और जनता उन्हें ऑन-बान और शान के साथ अपना विधायक चुन लेती है।
नसीम विधायक तो चुन ली जाती हैं, लेकिन उनके पति-देवर अब भी जेल में होते हैं। नसीम दोनों को जेल से बाहर लानें के लिए कोर्ट के चक्कर लगाती हैं। वकीलों के साथ बैठकें कर मंथन करती हैं। आखिरकार नसीम की मुहिम रंग लाती है और इरफान सोलंकी और उनके छोटे भाई करीब 34 माह के बाद सलाखों के बाहर आते हैं। पति की रिहाई के बाद नसीम परिवार और अपने समर्थकों के साथ दीपोत्सव का पर्व हर्षोउल्लास के बनाती हैं और भैया दूज पर वह पति इरफान सोलंकी के साथ विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के घर पहुंच जाती हैं। सबसे पहले दोनों विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से मुलाकात करते हैं। और दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं। बातचीत के दौरान नसीम मुस्कुराते हुए बोलीं भइया, कल भाई दूज है, मैं आपका टीका करना चाहती हूं। उनकी बात पर सतीश महाना ने हंसते हुए कहा, बहन, मैं पंजाबी खत्री हूं, हमारे यहां भाई दूज का चलन नहीं है, लेकिन मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा। इस दौरान उन्होंने नसीम के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद भी दिया।
सतीश महाना से मुलाकात के बाद नसीम अपने पति इरफान के साथ बीजेपी सांसद रमेश अवस्थी और कानपुर की मेयर प्रमिला पांडे से भी भेंट की.। दोनों नेताओं को दीपावली की शुभकामनाएं दीं। मुलाकात के दौरान सांसद अवस्थी ने कहा सीसामऊ विधानसभा से तुम्हारी जीत आसान नहीं थी, लेकिन तुमने इसे कड़ी मेहनत और संघर्ष से हासिल किया है। इसके साथ ही सोलंकी दंपति पूर्व सांसद सत्यदेव पचौरी से भी मिलने पहुंचे और उनकी सेहत के बारे मे भी पूछा। नसीम ने सत्यदेव पचौरी और कानपुर से बीजेपी सांसद रमेश अचस्थी को भैया दूज का टीका लगाया और आर्शीवाद भी लिया। बीजेपी नेताओं ने दिल खोलकर सोलंकी परिवार का स्वागत किया। दरअसल सपा विधायक की बीजेपी नेताओं से इस मुलाकात की सियासी गलियारे में काफी चर्चा है। गौरतलब है कि हाल ही में इरफान सोलंकी जेल से छूटकर आए हैं। इरफान की रिहाई के बाद कानपुर में सियासत गरम है। इरफान ने 2027 में खुद और पत्नी को चुनाव के मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में ये मुलाकात सोशल मीडिया में गर्दा उड़ाए हुए है।