Deepawali Village : कार्तिक पूर्णिमा से पहले आने वाली अमावस्या को दीपावली कहा जाता है। किंतु श्रीकाकुलम जिले के गार मंडल में ‘दीपावली’ नाम का एक गांव भी मौजूद है। इस गांव का नाम सुनकर अक्सर अन्य गांवों के लोग यह सोचने लगते हैं कि यहाँ हर दिन दीपावली जैसा ही माहौल होता होगा। इस गांव का नाम ‘दीपावली’ कैसे पड़ा, इसके इतिहास के बारे में जानने के लिए यह वीडियो देखें।
पांच दिन मनती है दीपावली
उत्तरी आंध्र प्रदेश में संक्रांति का पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन इसी उत्तरी आंध्र में, श्रीकाकुलम जिले के ‘दीपावली’ गांव के निवासी दीपावली का पर्व पांच दिनों तक मनाते हैं। इस गांव के लोगों ने लोकल 18 को बताया कि दीपावली के दिन पितरों की पूजा और अर्चना के बाद ही वे दीपावली पर्व का उत्सव मनाते हैं।
क्यों रखा गया गांव का नाम ?
पुराने समय में श्रीकाकुलम में एक राजा शासन करते थे, जो श्रीकूर्मनाथ जी के दर्शन के लिए उस गांव के पास से गुजरते थे। एक दिन जब राजा ने श्रीकूर्मनाथ जी के दर्शन किए और लौटते समय मार्ग में उनकी चेतना खो गई। गांव के लोगों ने यह देखा और दीपक लेकर राजा के पास गए, उन्हें पानी पिलाकर सेवा की। जब राजा होश में आए, तो उन्होंने गांव का नाम पूछा। गांववालों ने कहा कि उनका गांव बिना नाम का है। इस पर राजा ने कहा, “आपने दीपों की रोशनी में मेरी सेवा की है, इसलिए मैं इस गांव का नाम ‘दीपावली’ रखता हूं।” तभी से यह गांव ‘दीपावली’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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पितरों का होता है विशेष पूजन
संक्रांति के दिन लोग अपने बड़े-बुजुर्गों के लिए पितृ संकल्प लेते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। लेकिन श्रीकाकुलम जिले के दीपावली गांव में ‘सोंडी’ जाति के लोग दीपावली के दिन सुबह उठकर स्थानाधिकार पूजा और पितृकर्म करने की परंपरा निभाते हैं। यहाँ सोंडी समुदाय के लोग दीपावली के दिन अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पितृ पूजा करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। संक्रांति के अवसर पर नए दामाद का स्वागत किया जाता है, लेकिन इस दीपावली गांव में संक्रांति की तरह दीपावली पर भी नए दामाद का सत्कार किया जाता है।