हनागल तालुक स्थित इस मंदिर का निर्माण दो भाइयों ने अपनी मां के निधन के बाद किया। बताया जाता है कि उनकी मां ने अपने पूरे जीवन में परिवार के लिए कई तरह के त्याग किए और निःस्वार्थ सेवा की। मां की मृत्यु के बाद, बेटों ने यह निश्चय किया कि वे उनकी स्मृति को अमर बनाएंगे और ऐसा कुछ करेंगे जो समाज के लिए प्रेरणास्रोत बने। इसी सोच के साथ उन्होंने एक मंदिर का निर्माण कराया, जिसमें उन्होंने अपनी मां की प्रतिमा भी स्थापित की।
यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि मां के प्रति बेटे के गहरे प्रेम, सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक है। मंदिर में प्रतिदिन पूजा-अर्चना होती है, जिसमें आसपास के लोग भी पूरे भाव से शामिल होते हैं। बेटों का कहना है कि यह मंदिर उनकी मां को समर्पित एक विनम्र श्रद्धांजलि है और वे चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी माता-पिता के महत्व को समझें, उन्हें सम्मान दें और उनके प्रति अपने कर्तव्यों को निभाएं।
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इस अनोखे कार्य ने यह साबित कर दिया है कि सच्चा प्रेम और सम्मान सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि कर्मों से व्यक्त होता है। यह मंदिर केवल एक संरचना नहीं, बल्कि एक विचार है — उस विचार का, जो माता-पिता को जीवन में सर्वोच्च स्थान देने की सीख देता है।
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