Ancestral and inherited property : पैतृक संपत्ति और विरासत में अंतर,जानिए कैसे इन संपत्तियों को पहचाने

पैतृक और विरासत में मिली संपत्ति में अंतर को समझना बहुत जरूरी है। सही दस्तावेज़ और कानूनी प्रक्रिया से ही आप संपत्ति पर अपना अधिकार कायम कर सकते हैं। रजिस्ट्री के साथ दाखिल-खारिज भी जरूरी है।

Difference between ancestral and inherited property

Difference between ancestral and inherited property : जब भी बात होती है पारिवारिक संपत्ति की, तो अक्सर लोग विरासत और पैतृक संपत्ति को एक ही समझ लेते हैं। हालांकि दोनों में फर्क होता है। पुरानी पीढ़ी से मिली हर संपत्ति पैतृक नहीं होती। आम तौर पर दादा-दादी या परदादा से मिली जमीन या मकान को पैतृक संपत्ति माना जाता है, लेकिन इसे कानूनी रूप से भी समझना जरूरी है।

क्या होती है पैतृक संपत्ति?

पैतृक संपत्ति वह होती है, जो चार पीढ़ियों से चली आ रही हो – यानी परदादा से शुरू होकर दादा, पिता और फिर संतान तक पहुंचे। इस तरह की संपत्ति में बच्चों का जन्म से ही अधिकार होता है, भले ही उनके नाम पर रजिस्ट्री न हो।

विरासत में मिली संपत्ति से कैसे अलग है पैतृक संपत्ति?

अगर किसी पिता ने अपने जीवन में अर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से वसीयत में बेटे या बेटी के नाम कर दिया, तो वह विरासत में मिली संपत्ति कहलाएगी, पैतृक नहीं। विरासत में मिली संपत्ति में मालिक की इच्छा के अनुसार बंटवारा होता है, जबकि पैतृक संपत्ति में सभी उत्तराधिकारियों का समान अधिकार होता है।

पैतृक संपत्ति अपने नाम कैसे करवाएं?

अगर आपको पैतृक संपत्ति अपने नाम करानी है, तो सिर्फ रजिस्ट्री काफी नहीं होती। आपको दाखिल-खारिज (mutation) करवाना जरूरी होता है। यह प्रक्रिया सरकारी रिकॉर्ड में मालिकाना हक दर्ज करवाने के लिए की जाती है।

जरूरी दस्तावेज़

संपत्ति से संबंधित पुराने दस्तावेज़

मृत्यु प्रमाण पत्र (यदि मालिक का निधन हो चुका है)

वारिसी प्रमाण पत्र या परिवार रजिस्टर

सहमति पत्र (यदि सभी वारिस सहमत हैं)

वसीयत (अगर कोई बनाई गई हो)

क्या करें जब वसीयत न हो

अगर संपत्ति के मालिक ने कोई वसीयत नहीं छोड़ी है, तो सभी कानूनी वारिस मिलकर आपसी सहमति से संपत्ति का बंटवारा कर सकते हैं। इस समझौते को फैमिली सेटलमेंट कहा जाता है, जिसे उप-निबंधक कार्यालय में पंजीकृत करवाना होता है। अगर सहमति से बंटवारा नहीं हो रहा है, तो कोर्ट का रास्ता भी अपनाया जा सकता है।

ध्यान रखने वाली बाते

सभी कानूनी वारिसों की सहमति जरूरी होती है।

अगर किसी वारिस को नकद राशि देकर अलग किया गया हो, तो उसका ज़िक्र लिखित समझौते में होना चाहिए।

बिना दाखिल-खारिज के संपत्ति पूरी तरह आपके नाम नहीं मानी जाती।

Exit mobile version