Aravalli Hill’s Under Threat: इन दिनों अरावली पहाड़ियों को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि नियम बदले गए हैं, बल्कि यह भी है कि इन बदलावों का असर उत्तर भारत की जिंदगी पर कितना गहरा पड़ेगा। अगर अरावली पहाड़ियों का संरक्षण कमजोर हुआ, तो इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ सकता है।
आखिर क्या है पूरा मामला?
दरअसल, अरावली पर्वत श्रृंखला की पहचान को लेकर एक नई परिभाषा सामने आई है। इसके मुताबिक, अब सिर्फ वही पहाड़ियां अरावली मानी जाएंगी, जो जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंची हों। पर्यावरण विशेषज्ञों और जानकारों का कहना है कि इस परिभाषा के लागू होते ही करीब 90 फीसदी पहाड़ियां संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी।
इसका सीधा मतलब है कि इन इलाकों में खनन, निर्माण कार्य, जंगलों की कटाई और दूसरी गतिविधियों पर कोई खास रोक नहीं रहेगी। इससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच सकता है और अरावली धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर पहुंच सकती है।
उत्तर भारत की सांस और सुरक्षा कवच
अरावली पर्वत श्रृंखला दुनिया की सबसे पुरानी पहाड़ियों में से एक मानी जाती है। यह गुजरात से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है। अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं है, बल्कि उत्तर भारत की सांस, रीढ़ और प्राकृतिक सुरक्षा कवच है।
ये पहाड़ियां पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। अगर अरावली कमजोर हुई, तो असर सिर्फ एक-दो राज्यों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि करोड़ों लोगों, जानवरों और पौधों की जिंदगी पर खतरा मंडराने लगेगा।
क्यों जरूरी है अरावली? पांच आसान वजहें
रेगिस्तान को रोकती हैं
अरावली थार रेगिस्तान को उत्तर और पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती हैं। अगर ये ढाल टूट गई, तो उत्तर भारत के कई हिस्से बंजर हो सकते हैं और खेती मुश्किल हो जाएगी।
बारिश के संतुलन में मदद
अरावली हवाओं की दिशा तय करती हैं, जिससे राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में बारिश होती है। इनके कमजोर होने से कभी सूखा तो कभी बेमौसम बारिश बढ़ सकती है।
पानी का बड़ा सहारा
अरावली की चट्टानें प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करती हैं। ये बारिश का पानी जमीन में उतारती हैं, जिससे भूजल रिचार्ज होता है। इनके बिना पानी का संकट और गहरा जाएगा।
प्रदूषण पर लगाम
दिल्ली और आसपास के इलाकों में आने वाली धूल और प्रदूषण को अरावली काफी हद तक रोकती हैं। अगर ये नहीं रहीं, तो हवा और ज्यादा जहरीली हो जाएगी।
जैव विविधता का खजाना
अरावली में हजारों किस्म के पेड़-पौधे, पक्षी और जानवर पाए जाते हैं। इनके खत्म होने से पूरा इकोसिस्टम बिगड़ जाएगा और कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं।
अब आगे क्या हो सकता है
अगर अरावली पहाड़ियों पर खनन, निर्माण और जंगलों की कटाई बिना रोक-टोक शुरू हुई, तो उत्तर भारत को सूखा, पानी की कमी, प्रदूषण और जलवायु असंतुलन जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसलिए अरावली को बचाना सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि जीवन बचाने की जरूरत है।
