BSF soldier पूर्णम कुमार की स्वदेश वापसी: 20 दिन बाद लौटा बेटा, वाघा बॉर्डर पर हुआ स्वागत

बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार को 20 दिन की पाकिस्तानी हिरासत के बाद 14 मई को वाघा बॉर्डर पर भारत को सौंपा गया। उनकी सुरक्षित वापसी से परिवार ही नहीं, पूरा देश गर्व और राहत से भर उठा।

BSF soldier

BSF soldier return: 14 मई 2025 को अटारी-वाघा बॉर्डर से भारत के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई। बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार (पीके शॉ), जो 23 अप्रैल को गलती से पाकिस्तान की सीमा में चले गए थे, उन्हें 20 दिन बाद पाकिस्तान ने भारत को सौंप दिया। पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में ड्यूटी के दौरान सीमा पार हुई इस चूक के बाद पाक रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। इस घटना ने पूरे देश की चिंता बढ़ा दी थी, लेकिन लगातार कूटनीतिक बातचीत और फ्लैग मीटिंग्स के चलते उनकी सकुशल वापसी संभव हो पाई। जवान की वापसी पर न केवल परिवार ने राहत की सांस ली, बल्कि पूरा देश इस खबर से भावुक हो उठा। सोशल मीडिया पर भी इस खबर ने देशभक्ति की भावना को और प्रबल कर दिया।

गलती से सीमा पार, फिर पाकिस्तानी हिरासत

23 अप्रैल को BSF soldier पूर्णम कुमार फिरोजपुर बॉर्डर पर तैनात थे, जहां वे नो मेंस लैंड में फसल काट रहे किसानों की निगरानी कर रहे थे। इसी दौरान गलती से वे अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर गए और पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया। जैसे ही यह सूचना भारतीय सुरक्षा एजेंसियों तक पहुंची, जवान की वापसी सुनिश्चित करने के लिए बीएसएफ और प्रशासन ने प्रयास शुरू कर दिए।

कूटनीतिक प्रयासों से हुई वापसी

भारतीय अधिकारियों और पाकिस्तानी रेंजर्स के बीच कई दौर की बातचीत हुई। फ्लैग मीटिंग्स और उच्च स्तर पर संपर्क के जरिए भारत ने जवान की सुरक्षित वापसी पर ज़ोर दिया। हालात ऐसे समय में और भी संवेदनशील थे, क्योंकि पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने भारत-पाक संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया था। इसके बावजूद, संयम और संवाद से 20 दिन बाद सफलता मिली और पूर्णम कुमार को 14 मई को अटारी-वाघा बॉर्डर पर भारत को सौंपा गया।

सोशल मीडिया पर खुशी की लहर

BSF soldier की वापसी की खबर आते ही सोशल मीडिया पर बधाइयों का तांता लग गया। ट्विटर पर लोगों ने इसे ‘देश के लिए शुभ संकेत’ बताया। यूजर्स ने लिखा, “पूर्णम शॉ की वापसी बहादुरी और धैर्य की मिसाल है।” तस्वीरों में उनकी हालत देख अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उन्होंने कठिन समय का सामना किया, लेकिन उनका जज़्बा सलाम करने लायक है।

पूर्णम कुमार की वापसी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि भारतीय सेना अपने हर जवान को घर लाने के लिए हर संभव कोशिश करती है। यह घटना उनके बलिदान और साहस का प्रतीक बन गई है।

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