मुगलों का वंशज बताकर सुल्ताना बेगम ने मांगा लाल किला, CJI ने पूछा – फतेहपुर सीकरी और ताजमहल क्यों नहीं?

सुल्ताना बेगम नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उनका कहना है कि वह बहादुर शाह जफर द्वितीय के परपोते की पत्नी हैं।

CJI Sanjiv Khanna

CJI Sanjiv Khanna : सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक महिला ने खुद को मुगलों के वंशज बताते हुए दिल्ली के लाल किले पर कब्जे की मांग की थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह सवाल किया कि केवल लाल किला क्यों, जबकि ताजमहल और फतेहपुर सीकरी भी मुगलों द्वारा बनवाए गए थे, क्या उन पर भी कब्जा नहीं चाहिए?

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संयज कुमार(CJI Sanjiv Khanna) की बेंच ने सुल्ताना बेगम की याचिका को खारिज करते हुए इसे पूरी तरह से आधारहीन करार दिया। सुल्ताना बेगम का दावा था कि वह बहादुर शाह जफर II की परपोती की विधवा हैं। अदालत ने कहा, “अगर आप लाल किला का दावा करती हैं, तो ताजमहल और फतेहपुर सीकरी पर क्यों नहीं? आपकी याचिका पूरी तरह गलत है और इसे खारिज किया जाता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को किया खारिज 

सुल्ताना बेगम के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की कि उच्च न्यायालय ने इस याचिका को देरी के आधार पर खारिज किया था, न कि उसके merits पर। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि सुप्रीम कोर्ट भी इसे देरी के कारण खारिज करे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।

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सुल्ताना बेगम ने 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की थी, जिसे एकल न्यायाधीश की बेंच ने खारिज कर दिया था। इसके बाद, उन्होंने उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच में अपील की, लेकिन यहां भी करीब ढाई साल की देरी के कारण उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया।

सुल्ताना बेगम का क्या है कहना ?

सुल्ताना बेगम का कहना था कि 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगलों से उनके अधिकार छीनकर लाल किले पर कब्जा कर लिया था। उनका दावा है कि इसके बाद से यह किला मुगलों के परिवार से गैरकानूनी तरीके से छीन लिया गया, और अब भारत सरकार का वहां कब्जा भी अवैध है। उन्होंने सरकार से मुआवजे और किले पर अपना कब्जा फिर से प्राप्त करने की मांग की थी।

हाईकोर्ट ने अपने 2021 के फैसले में यह कहा था कि भले ही मान लिया जाए कि ब्रिटिशों ने मुगलों से किले का कब्जा छीन लिया, लेकिन इतने लंबे समय बाद, यानी 164 साल से ज्यादा समय के बाद इस मामले में याचिका कैसे सुनवाई योग्य हो सकती है, जब याचिकाकर्ता के पूर्वज इस घटनाक्रम से पहले से ही अवगत थे।

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