Bihar News : भारत में परंपराएं अनोखी और विविधता से भरपूर हैं। इसमें शवयात्रा में बैंड-बाजे का चलन पुराना है, लेकिन बिहार के कुछ इलाकों में मातम के बीच डांस और हर्ष फायरिंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इसे बिहार में ‘बाईजी का नाच’ कहा जाता है, जो पहले शादियों या खुशी के मौकों पर होता था। अब यह मृत्यु और श्राद्ध जैसे गमगीन मौकों का हिस्सा बन चुका है। भोजपुर, औरंगाबाद, और रोहतास जैसे जिलों में यह परंपरा तेजी से फैल रही है।
शवयात्रा में नाच और हर्ष फायरिंग
शवयात्रा के दौरान महिला डांसरों को बुलाकर डांस करवाया जाता है। साथ ही, हर्ष फायरिंग भी होती है। पहले बैंड-बाजे के साथ शवयात्रा निकालने का रिवाज था, लेकिन अब मौत या श्राद्ध पर नाच का नया चलन शुरू हुआ है। शादी समारोह की तरह, डांसरों को लहंगा-चोली जैसे कपड़े पहनने की मांग की जाती है। कई बार पैसों के बहाने उन्हें छेड़छाड़ (bad touch) का सामना भी करना पड़ता है।
जातीय पहचान और गानों का चयन
डांसरों के अनुसार, चाहे शादी हो या श्राद्ध, गाने और नृत्य जातीय पहचान के आधार पर तय किए जाते हैं। जाति विशेष के लोग अपने समुदाय के ही कलाकारों को प्रायरटी देते हैं। यह परंपरा उनकी सामाजिक पहचान और पसंद को दर्शाती है।
रुतबे और ताकत का प्रदर्शन
श्राद्ध में हर्ष फायरिंग अब सामाजिक ताकत और रुतबे का प्रतीक बन गई है। हाल ही में नालंदा में श्राद्ध के दौरान फायरिंग से एक युवक की मौत भी हो गई थी। यह परंपरा समाज में अपनी स्थिति दिखाने का नया तरीका बन गई है।
नृत्य और लोक परंपराएं
कल्चरल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मृत्यु पर नृत्य भारतीय लोक परंपराओं का हिस्सा नहीं है। मृत्यु गीत और रुदन गीत जैसे पारंपरिक तरीके शोक और सम्मान का प्रतीक हैं। आजकल मृत्यु से जुड़े कार्यक्रमों में भोडा नाच गाना और बहुत ही बेशर्मी से अपने पैसों और अपनी ताकत का प्रदर्शन मात्रा बन गया है। यह लोग ऐसे प्रोग्राम में नृत्य और अश्लीलता का प्रदर्शन करते हैं।
दुगोला गायन और नई परंपराएं
पिछले कुछ दशकों में दुगोला गायन जैसे कार्यक्रम भी श्राद्ध में होने लगे हैं। इन कार्यक्रमों में अक्सर जातीय तंज और अश्लीलता का कॉकटेल होता है। यह परंपरा सोशल इक्वलिटी को तोड़कर पैसा और ताकत के प्रदर्शन को बढ़ावा दे रही है।
बिहार की यह परंपरा लोक संस्कृति और सामाजिक मूल्यों के बदलते स्वरूप को दर्शाती है, लेकिन इसे लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है।