Chandrashekhar Azad: 14 अक्टूबर जैसा एक बार फिर… क्या हुआ था 1956 को जिसे लेकर चंद्रशेखर ने दी खुली धमकी

Chandrashekhar Azad : न्यूज1इंडिया के मंच माहाकुंभ मंथन के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर कोई बाबा साहब आंबेडकर का अपमान करेगा तो हमारे पास 14 अक्टूबर 1956 वाला भी रास्ता खुला है।

Chandrashekhar Azad: न्यूज1इंडिया के मंच माहाकुंभ मंथन के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर कोई बाबा साहब आंबेडकर का अपमान करेगा तो हमारे पास 14 अक्टूबर 1956 वाला भी रास्ता खुला है। इस दौरान उन्होंने जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन आंदोलन करने की बी बात कही। चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि या तो सरकार झुक जाएगी या हम खत्म हो जाएंगे। आइए आपको बताते हैं कि 14अ क्टूबर 1956 को ऐसा क्या हुआ था, जिसे लेकर चंद्रशेखर आजाद सरकार को खुली धमका दे रहे हैं।

14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षाभूमि पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपने 3 लाख 65 हजार अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। यह कदम उन्होंने लंबे समय तक अध्ययन, लेखन और विचार-विमर्श के बाद उठाया। अंबेडकर ने अपने लेखों और किताबों में बार-बार तर्क दिया था कि अछूतों के लिए समानता पाने का एकमात्र रास्ता बौद्ध धर्म अपनाना है।

इस निर्णय के पीछे अंबेडकर का उद्देश्य सामाजिक असमानता और छुआछूत को खत्म करना था। 1935 के एक प्रसिद्ध भाषण में उन्होंने पहली बार जोर देकर कहा था कि यदि शोषित वर्ग को समानता, ताकत और सत्ता चाहिए, तो उन्हें धर्म बदलना होगा। इस भाषण में उन्होंने साफ कहा, “मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ, लेकिन हिंदू रहते हुए मरूंगा नहीं।” यह घोषणा उनके हिंदू धर्म छोड़ने की ओर पहला बड़ा कदम थी।

हालांकि, अंबेडकर ने तुरंत कोई अन्य धर्म नहीं अपनाया। उन्होंने विभिन्न धर्मों का अध्ययन किया और 1940 में अपनी पुस्तक “द अनटचेबल्स” में लिखा कि भारत के अछूत मूल रूप से बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। इसके बाद, 1944 में मद्रास में एक भाषण में उन्होंने बौद्ध धर्म को सबसे वैज्ञानिक और तार्किक धर्म बताया।

स्वतंत्रता के बाद, अंबेडकर ने संविधान निर्माण के दौरान बौद्ध धर्म से जुड़े कई प्रतीक चुने। अंततः, 14 अक्टूबर 1956 को, उन्होंने विधिवत बौद्ध धर्म स्वीकार किया और अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएं दिलाईं, जिनमें हिंदू देवी-देवताओं और कर्मकांडों से दूरी बनाए रखने और समानता व नैतिकता को अपनाने का संदेश था।

यह कदम इतिहास में “दलित बौद्ध आंदोलन” के रूप में दर्ज हुआ। इस आंदोलन ने लाखों दलितों को हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, अंबेडकर के निधन के बाद यह आंदोलन धीमा पड़ गया। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 84 लाख बौद्ध हैं, जिनमें से 60 लाख महाराष्ट्र में हैं।

अंबेडकर का अंतिम संस्कार भी बौद्ध रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया। 6 दिसंबर 1956 को उनके निधन के अगले दिन मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध परंपराओं के अनुसार उनका अंतिम संस्कार हुआ, जिसमें लाखों अनुयायियों ने भाग लिया। अंबेडकर ने अपने जीवन के अंत तक बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का पालन किया और समानता व सामाजिक न्याय के लिए अपना संघर्ष जारी रखा।

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