25 जून 1975 जब भारत की जनता की आवाज़ छीन ली गई थी, क्यों लोकतंत्र पर लगी थी रोक

1975 की इमरजेंसी में भारत की जनता से बोलने, लिखने और विरोध करने का हक छीन लिया गया। इसे आज भी भारत के लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला माना जाता है।

1975 Emergency in India

Emergency in India  50 साल पहले, 25 जून 1975 की रात देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकत जनता की आवाज़ को चुप करवा दिया गया था। उस रात इंदिरा गांधी की सरकार ने पूरे देश में अचानक आपातकाल (Emergency) लागू कर दिया।

इस फैसले के साथ ही आम लोगों के मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए। अखबारों पर सरकार की नजर रखी जाने लगी, हर खबर छापने से पहले सरकार की मंजूरी जरूरी हो गई। जो लोग सरकार का विरोध कर रहे थे, उन्हें बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया।

पहले भी लगे थे आपातकाल

1975 से पहले भारत में दो बार और आपातकाल लगा था।

1962 में पहला आपातकाल चीन से युद्ध के चलते लगाया गया था। तब देश पर बाहरी खतरा था और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे सुरक्षा के लिए जरूरी समझा। यह आपातकाल 1968 तक चला।

1971 में दूसरी बार पाकिस्तान से युद्ध के कारण फिर आपातकाल लागू हुआ। यह युद्ध बांग्लादेश की आज़ादी से जुड़ा था। उस समय देश के राष्ट्रपति वीवी गिरी थे।

इन दोनों मौकों पर आपातकाल का कारण साफ था।देश पर बाहरी हमला। लेकिन 1975 की इमरजेंसी बिल्कुल अलग थी।

1975 की इमरजेंसी सत्ता बचाने की कोशिश

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया। अदालत ने उन्हें छह साल तक चुनाव लड़ने से भी रोक दिया। इसके बाद उनके इस्तीफे की मांग ज़ोर पकड़ने लगी और देश भर में प्रदर्शन शुरू हो गए।

इंदिरा गांधी ने इसे ‘आंतरिक संकट’ बताकर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करवा दी। हकीकत में यह फैसला सत्ता से चिपके रहने के लिए लिया गया था।

यह इमरजेंसी 21 महीने तक यानी 21 मार्च 1977 तक चली।

क्या हुआ था आपातकाल में?

संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत जनता के अधिकार छीन लिए गए।

मीडिया को पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में कर दिया गया।

हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बिना किसी वजह के जेल में बंद कर दिया गया।

जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता जेल भेजे गए।

आज भी उठते हैं सवाल

आज भी 1975 की इमरजेंसी को लोकतंत्र के काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। इसे इंदिरा गांधी की तानाशाही और सत्ता की भूख का उदाहरण माना जाता है। विपक्षी पार्टियां आज भी कांग्रेस को इस फैसले के लिए निशाना बनाती हैं।

यह वो समय था जब जनता की आवाज, अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतंत्र सबको ताले में बंद कर दिया गया था।

Exit mobile version