क्या EVM पर भरोसा कर सकते हैं? एलन मस्क का दावा और भारत की चुनावी प्रणाली पर सवाल

मशहूर उद्यमी एलन मस्क ने भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) पर सवाल उठाया है, कहकर कि इन्हें हैक किया जा सकता है। उनका यह बयान चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता और विश्वसनीयता को लेकर बहस को फिर से जीवंत कर देता है, खासकर जब EVM के निर्माताओं ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाई है।

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EVM- Elon Musk: भविष्य के तकनीकी विकास की दिशा में अग्रसर, मशहूर उद्यमी एलन मस्क ने हाल ही में भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) पर एक विवादास्पद टिप्पणी की है। उनका कहना है कि “EVM से चुनाव में वोटिंग नहीं होनी चाहिए, क्योंकि EVM कंप्यूटर प्रोग्रामिंग से जुड़ा हुआ होता है और इसे हैक करना संभव है।” यह बयान उस समय आया है जब भारत की चुनावी प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। मस्क के इस बयान ने एक बार फिर से EVM के उपयोग पर चर्चा को ताजा कर दिया है, खासकर तब जब EVM के विकास से जुड़े लोग ही इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।

भारत में चुनाव आयोग (ECI) और सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह पुष्टि की है कि EVM को हैक करना असंभव है। लेकिन मस्क का यह तर्क और उसके द्वारा उठाए गए सवाल चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर नई बहस को जन्म देते हैं। चुनावों में निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है, और जब तकनीकी साधनों की बात आती है, तो किसी भी प्रकार की सुरक्षा चूक चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती है।

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EVM के निर्माण में शामिल वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का कहना है कि उनकी तकनीक अत्यंत सुरक्षित है और हर संभव प्रयास किया गया है कि इसे हैक किया न जा सके। लेकिन मस्क के इस बयान ने लोगों के मन में शक पैदा कर दिया है। राजनीतिक दलों और आम नागरिकों के बीच इस विषय पर गंभीर चर्चा चल रही है कि क्या वास्तव में EVM एक सुरक्षित विकल्प है या इसे सुधारने की आवश्यकता है।

कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि Electronic Voting Machine के बजाय बैलेट पेपर से मतदान कराना अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय होगा। उनका कहना है कि बैलेट पेपर के माध्यम से चुनावी प्रक्रिया को अधिक सुरक्षित बनाया जा सकता है। वहीं, चुनाव आयोग का मानना है कि EVM ने चुनावी प्रक्रिया को तेज और सुरक्षित बनाया है।

भले ही चुनाव आयोग EVM के उपयोग का बचाव करे, लेकिन एलन मस्क के बयान ने एक बार फिर से इस तकनीक की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारतीय लोकतंत्र में इस तकनीकी विवाद का कोई समाधान निकलेगा।

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