नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। भारत में ऐसे सैकड़ों ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर हैं, जिनका पुराणों में जिक्र है। इन मंदिरों में हरदिन लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और पूजा-अर्चना कर पुण्ण कमाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर तमिलनाडु के अलनगुड़ी में स्थित है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इसी पावन स्थान पर देवगुरु बृहस्पति ने भगवान शिव की अराधना करके नवग्रहों में प्रथम स्थान का आशीर्वाद पाया था। मंदिर के पुजारी कहते हैं कि बृहस्पतिवार के दिन जो भी भक्त यहां आकर मंदिर की 24 बार परिक्रमा करता है, उसके घर पर धन-दौलत के साथ नौकरी और तरक्की के मार्ग प्रस्सत होते हैं।
बृहस्पति देव की महिमा अपार
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि बृहस्पति देव को सबसे अधिक शुभ और शुभ फलों को देने वाला ग्रह माना जाता है। बृहस्पति देव अत्यंत वंदनीय और पूजनीय हैं। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि बृहस्पति देव के देशभर में कई सिद्ध मंदिर हैं, जहां दर्शन और पूजन मात्र से ही सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है। यूपी के वाराणसी के साथ ही तमिलनाडु के कुम्भकोणम् के निकट अलनगुड़ी में बृहस्पति देव का मंदिर है। जिसका इतिहास सैकड़ों वर्ष प्राचीन है। बताया जाता है इसी पवित्र स्थल पर बृहस्पति देव ने भगवान भोले शंकर की अराधना की थी। भगवान शिव ने बृहस्पति देव को दर्शन देने के साथ ही वरदान भी दिया था। बृहस्पतिवार के दिन मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। देश के कोने-कोने से भक्त आते हैं और बृहस्पति देव की पूजा-अर्चना करते हैं।
भक्त मंदिर की लगाते हैं परिकृमा
बृहस्पति देव के इस मंदिर को दक्षिणाभिमुख अवष्टक के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना सातवीं शताब्दी में पल्लव शासकों के समय की गई थी.। देवगुरु बृहस्पति के इस प्रसिद्ध मंदिर को लेकर एक मान्यता ये है कि मन्दिर की 24 परिक्रमा करने पर व्यक्ति को देवगुरु बृहस्पति का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही, जीवन के सभी दुखों से छुटकारा मिलता है। बृहस्पति देव के अलावा इस मंदिर में भोलेशंकर, सूर्यदेव, सोम और सप्तर्षि के मन्दिर भी शामिल हैं। भक्त मंदिर में आकर अराध्य देवों की वंदना करने के साथ मन्नत मांगते हैं।
बृहस्पतिदेव ने की थी शिव की अराधना
मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि बृहस्पति देव ने इस पावन स्थान पर आकर शिव जी की अराधना की थी। इसके बाद उन्हें नवग्रहों में सबसे श्रेष्ठ ग्रह होने का वर प्राप्त हुआ था। इसी कारण उन्हें यह स्थान अत्यंत प्रिय है। इसके अलावा, एक मान्यता यह भी है कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान भगवान शिव ने यही किया था। मंदिर के आसपास जंगल है और भगवान सूर्य की पहली किरण भी मंदिर के दीदार करती है। मंदिर का आकार विराट है। सुबह मंदिर के पट खुल जाते हैं और शाम को पूजा-अर्चना के बाद कपाड़ बंद कर दिए जाते हैं।
पौराणिक कथाओं में मंदिर का जिक्र
इस मंदिर का जिक्र पौराणिक कथाओं में भी है। कथा के अनुसार एक राजा के सात पुत्रों ने एक बार एक ब्राह्मण का अपमान कर दिया। इस दोष के चलते उनका सारा राजपाट नष्ट हो गया और वे दरिद्र हो गए। इसके बाद राजा के सबसे छोटे बेटे-बहू ने यहीं आकर देवगुरु की उपासना की। ऐसा करने से उनका खोया हुआ सारा साम्राज्य वापस मिल गया। तब से लेकर यह मान्यता चली आ रही है कि इस स्थान पर आकर भक्ति भाव से देवगुरु बृहस्पति की पूजा करने वाला कभी खाली हाथ नहीं लौटता। मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि यहां आने वाला भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। बृहस्वति देव की कृपा से उसके घर मनी, नौकरी और तरक्की आती है।