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यहां पर हैं मां सरस्वती के प्राचीन मंदिर, धरती फाड़ कर प्रकट हुई ‘देवी’ और अनंत काल से जल रही ज्योति

Basant Panchami 2025 : बसंत पंचमी पर्व पर मां सरस्वती के इन पांच मंदिरों के दर्शन कर कमाएं पुण्ण, ज्ञान की देवी के दर पर उमड़ता है आस्था का सैलाब।

by Vinod
February 2, 2025
in Latest News, धर्म, राष्ट्रीय
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Basant Panchami 2025 Special Story नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। तीर्थराज प्रयागराज में 144 साल के बाद दिव्य और भव्य महाकुंभ का आयोजन चल रहा है। देश-दुनिया से करीब 33 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई है। फिलहाल भक्तों के आने का सिलसिला जारी है। 3 फरवरी को बसंत पंचमी पर्व पर अमृत स्नान हैं। ऐसे में संगम के तट पर जनसैलाब उमड़ पड़ा है। भक्त ज्यादा से ज्यादा की संख्या में त्रिवेणी में डुबकी लगाकर बसंत पंचमी पर पुण्ण कमाना चाह रहे हैं। ऐसे में हम मां सरस्वती के पांच प्राचीन के मंदिरों से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।

पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती

हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। आज के दिन को मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप में भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वसंत पंचमी के दिन ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़ककर सरस्वती माता को उत्पन्न किया था, इसलिए इस तिथि पर घर, मंदिर से लेकर सभी शिक्षा संस्थानों में मां शारदा की पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है। संगीत और विद्या की देवी माता सरस्वती के भारत में कई प्राचीन मंदिर हैं। इन मंदिरों में वसंत पंचमी पर भक्त जाते हें और मां सरस्वती की पूजा-अर्चना कर देवी की कृपा प्राप्त करते हैं।

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मूकाम्बिका मंदिर

दक्षिण भारत में मां सरस्वती का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को मूकाम्बिका मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के बारे में अनेक रहस्य हैं, जिनकी गुत्थी किसी ने आज तक सुलझा नहीं पाई। इस मंदिर के बारे में एक बात बहुत प्रसिद्ध है, यहां पर देवी सरस्वती की प्रतिमा के सामने एक दीया हमेशा जलता रहता है। यहां पर देवी सरस्वती की एक प्रतिमा नहीं बल्कि और भी प्रतिमाएं हैं, जो अलग-अलग रूपों में बनाई गईं हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि बसंत पंचमी पर करीब पांच लाख से अधिक भक्त मातारानी के दर पर आकर माथा टेकते हैं। मातारानी अपने भक्तों की हर मन्नत को पूरी करती हैं। मंदिर पूरे वर्ष भक्तों के लिए खुला रहता है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्त आते हैं।

उत्तराखंड में हैं मां सरस्वती का मंदिर

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित माणा गांव में सरस्वती माता का एक प्राचीन मंदिर है। माना जाता है कि देवी सरस्वती सबसे पहले यहीं पर प्रकट हुई थीं। यह वही गांव है, जहां से होकर पांडव स्वर्ग में गए थे। भारत के आखिरी छोर पर होने की वजह से माणा गांव को देश का आखिरी गांव कहा जाता था लेकिन अब इसे देश का प्रथम गांव कहा जाने लगा है। यहां सरस्वती नदी भी बहती है। इसे सरस्वती नदी का उद्गम स्थल भी कहा जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि बसंत पंचमी पर मंदिर में पांच से छह लाख भक्त आते हैं और मातारानी के दर पर आकर पूजा-अर्चना करते हैं। अपने भक्तों की हर मनोकामना मां पूरी करती हैं।

पुष्कर का प्राचीन सरस्वती मंदिर

राजस्थान के पुष्कर में मां सरस्वती का मंदिर है। इसे ब्रह्मा जी का मंदिर भी कहा जाता है। आपको अगर कला और शिल्पकारी में रुचि है, तो आपको इस मंदिर में जरूर जाना चाहिए क्योंकि यह मंदिर अपनी नक्काशी के लिए मशहूर है। हिन्दू मान्यता के अनुसार पांचवा तीर्थ भी पुष्कर को माना जाता है। हरिद्वार की तरह ही पुष्कर भी हिन्दुओं का बड़ा तीर्थस्थल है। तीर्थों में सबसे बड़ा तीर्थ स्थल होने के कारण ही इसे तीर्थराज पुष्कर कहा जाता है। इसी तीर्थ स्थल पर पुष्कर सरोवर है, जिसके चारों ओर कुल 52 घाट बने हुए हैं। ये 52 घाट अलग अलग राजपरिवारों, पंडितों और समाजों द्वारा बनवाये गए हैं, जिसमें सबसे बड़ा घाट गऊघाट कहलाता है।

आंध्रप्रदेश में हैं मां सरस्वती का मंदिर

आंध्रप्रदेश के वारंगल जिले में स्थित श्री विद्या सरस्वती मंदिर में देवी सरस्वती के अलावा लक्ष्मी गणपति मंदिर, भगवान शनीश्वर मंदिर, और भगवान शिव मंदिर भी मौजूद हैं। माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति का दुर्भाग्य उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है, तो वो इस मंदिर में आकर मां सरस्वती और अन्य देवी-देवताओं की आराधना करके सौभाग्य प्राप्त कर सकता है। यह तेलंगाना में सरस्वती के कुछ मंदिरों में से एक है। इसकी देखभाल कांची शंकर मठ द्वारा की जाती है। मंदिर परिसर का निर्माण यायावरम चंद्रशेखर शर्मा के प्रयासों के कारण हुआ था, जो एक विद्वान और देवी सरस्वती के अनुयायी थे। यह मंदिर वारगल गांव के पास एक पहाड़ी पर स्थित है । उसी पहाड़ी पर कई अन्य देवताओं के मंदिर हैं, जैसेः

आंध्रप्रदेश में है दूसरा सरस्वती का मंदिर

आंध्र प्रदेश के अदिलाबाद जिले में स्थित इस मंदिर को बासर या बसरा नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद ऋषि व्यास के मन में बहुत ही अशांति उत्पन्न हो चुकी थी। युद्ध की विभीषिका देखकर उनका मन अति व्याकुल हो गया था। इस वजह से ऋषि व्यास शांति की खोज में निकल गोदावरी नदी की तरफ निकल पड़े। वहां उन्होंने आगे का मार्ग दिखाने के लिए माता सरस्वती की आराधना की, इसके बाद देवी सरस्वती ने उन्हें दर्शन दिए। कहा जाता है कि देवी के कहने पर ऋषि व्यास ने वे गोदावरी नदी के किनारे कुमारचला पहाड़ी पर पहुंचे और देवी की आराधना की। उनसे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें दर्शन दिए। देवी के आदेश पर उन्होंने प्रतिदिन तीन जगह तीन मुट्ठी रेत रखी। चमत्कार स्वरूप रेत के ये तीन ढेर तीन देवियों की प्रतिमा में बदल गए जो सरस्वती, लक्ष्मी और काली कहलाईं।

 

Tags: 2025 Basant PanchamiBasant Panchami 2025Basant Panchami festivalTemple of Goddess SaraswatiTemple of Maa Saraswati
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