नई दिल्ली धर्म डेस्क। बजरंगबली को चिंरजीवी होने का वरदान प्राप्त है इसलिए माना जाता है कि हनुमान जी कलियुग में भी सशरीर निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि रामायण के बाद श्री राम समेत अन्य सभी पृथ्वीलोक से प्रस्थान कर गए थे, लेकिन हनुमान जी को कलयुग की रक्षा का भार सौंपा गया, जिस कारण वह पृथ्वी पर ही रहे। इसलिए उन्हें कलयुग का जागृत देवता भी कहा जाता है। कई पौराणिक कहानियों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कलियुग में हनुमान जी सशरीर गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। यह क्षेत्र वर्तमान में तिब्बत में है। पवनपुत्र हनुमान जी के साक्षात् दर्शन कई लोगों ने किए हैं, जिसके साक्ष्य भी उनके पास मौजूद हैं।
एक देवता ही नहीं बल्कि एक योद्धा भी
पौराणिक कहानियों के अनुसार हनुमान जी को चिंरजीवी का वरदान मां सीता ने दिया था। द्धावर युग से वह इसी धारा पर हैं। बताया जा रहा है कि जब संभल में भगवान कल्कि का अवतार होगा, तब हनुमान जी धर्म की रक्षा के लिए युद्ध लड़ेंगे। पौराणिक कहानियों में बताया गया है कि केवल बलशाली ही नहीं बल्कि दयालु भी हैं। हनुमान जी इतने दयालु हैं कि अपने शत्रुओं पर भी दया करके उन्हें संकट से निकाल देते हैं। इसका अर्थ यह है कि हनुमान जी केवल एक देवता ही नहीं बल्कि एक योद्धा भी हैं। ज्ञान, बल, पराक्रम के साथ एक योद्धा में दयाभाव का होना ही उसे महान बनाता है।
गंधमादन पर्वत पर ही हनुमान जी का निवास
कई पौराणिक कहानियों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि हनुमान जी कलियुग के संकटों को पार करने में हर उस मनुष्य की सहायता करते हैं, जो भी हनुमान जी का स्मरण पूरी श्रद्धा के साथ करता है। श्रीमद् भागवत में मिलता है कि कलयुग में हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। यह पर्वत कैलाश के उत्तर में स्थित है। महाभारत के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान भीम सहस्त्रदल लेने के लिए गंधमादन पर्वत पर पहुंचे थे, तब हनुमान जी ने उनका रास्ता रोका था। इसलिए महाभारत के अनुसार गंधमादन पर्वत पर ही हनुमान जी का निवास है।
साधारण व्यक्ति का इस पर्वत नहीं पहुंच सकता
साथ ही यह भी माना जाता है कि किसी साधारण व्यक्ति का इस पर्वत नहीं पहुंच सकता। किष्किंधा अंजनी पर्वत का उल्लेख रामायण में मिलता है। माना जाता है कि माता अंजनी ने इसी पर्वत पर संतान की प्राप्ति हेतु तपस्या की थी और उन्हें पुत्र के रूप में हनुमान जी की प्राप्ति हुई थी। साथ ही यह भी माना जाता है कि भगवान राम और हनुमान जी की मुलाकात भी इसी पर्वत पर हुई थी। इसलिए कई मान्यताओं के अनुसार आज भी हनुमान जी निवास करते हैं।
यह क्षेत्र तिब्बत क्षेत्र में स्थित
श्रीमद्भावत कथा के अनुसार हनुमान जी त्रेतायुग में भी थे और द्वापर युग में भी कई वर्षों तक इस जगह पर विचरण किया करते थे। वहीं, कलियुग के आगमन के समय हनुमान जी ने गंधमादन पर्वत पर ही निवास कर लिया। प्राचीन काल में सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक पर्वत को गंधमादन पर्वत कहा जाता था। यहां पर महर्षि कश्यप ने तपस्या की थी। यह पर्वत धन के देवता कुबेर के क्षेत्र का हिस्सा था। कभी यह जगह सुंगधित वर्तमान समय में यह क्षेत्र तिब्बत क्षेत्र में स्थित है।
भगवान राम के पैरों के निशान
गंधमादन पर्वत से जुड़ी पौराणिक मान्यता है कि रामायण काल में हनुमान जी अपने वानर मित्रों के साथ यहीं पर बैठकर युद्ध की रणनीति बनाया करते थे। वर्तमान में गंधमादन पर्वत पर हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। जहां पर श्रीराम की प्रतिमा भी हनुमान जी के साथ विराजमान है। मान्यता है कि हनुमान जी अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए इस पर्वत पर रूप बदलकर आते हैं। इस पर्वत पर भगवान राम के पैरों के निशान भी हैं।
हनुमान जी के दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
कलियुग में भी कुछ महान लोगों को हनुमान जी के दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इनमें गोस्वामी तुलसीदास जी, समर्थ रामदास जी, भक्त माधव दास, नीम करोली बाबा, राघवेंद्र स्वामी सहित कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें हनुमान जी के साक्षात् दर्शन हुए हैं। मान्यता है कि हनुमान जी के दर्शन करने के बाद इन लोगों को अद्भुत ज्ञान और आध्यात्मिकता की प्राप्ति भी हुई।
भक्तों को दर्शन देने पहुंच जाते हैं हनुमान जी
कई पौराणिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हनुमान जी अभी भी इस संसार में उपस्थित हैं क्योंकि उन्हें चिरंजीवी यानी अमरता का वरदान प्राप्त है। हनुमान जी आज भी उस जगह पर जरूर आते हैं, जहां पर रामकथा की जाती है। जहां भी प्रभु श्रीराम की स्तुति की जाती है, वहां हनुमान जी किसी न किसी रूप में अपने भक्तों को दर्शन देने पहुंच जाते हैं। हनुमान जी की कृपा पाने के लिए प्रभु श्रीराम का स्मरण जरूर करना चाहिए।