रूस-भारत रक्षा साझेदारी में नया अध्याय: S-500 वायु रक्षा प्रणाली के संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव

रूस ने भारत को S-500 वायु रक्षा प्रणाली के संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव दिया है। यह कदम दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को नई ऊंचाई देगा और भारत को हाइपरसोनिक खतरों से लड़ने की अत्याधुनिक क्षमता प्रदान करेगा।

S-500 proposal: रूस की उन्नत वायु रक्षा प्रणाली S-500 प्रोमेथियस के भारत के साथ संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया रूस यात्रा के दौरान सामने आए इस प्रस्ताव ने भारत की रक्षा क्षमताओं को वैश्विक मानकों तक पहुंचाने की दिशा में एक बड़ा संकेत दिया है। S-500 प्रणाली को हाइपरसोनिक हथियारों और अंतरिक्ष से आने वाले खतरों से निपटने के लिए डिजाइन किया गया है, जो इसे आधुनिक युद्ध के परिदृश्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाता है। यह लेख S-500 की पूरी विशेषताओं, इसकी S-400 से तुलना और अमेरिका, चीन और इज़राइल की अन्य प्रणालियों के साथ तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

S-500

S-500 प्रोमेथियस: क्या है यह प्रणाली?

S-500, जिसे 55R6M “ट्रायम्फेटर-एम” भी कहा जाता है, एक नई पीढ़ी की रूसी सतह से हवा में मार करने वाली और एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली है। इसे अल्माज़-एंटे एयर डिफेंस कंसर्न ने विकसित किया है, और इसका उद्देश्य S-400 और A-235 ABM जैसी प्रणालियों का पूरक बनना है।

मुख्य विशेषताएँ:

तैनाती और परीक्षण:

पहली बार 13 अक्टूबर 2021 को मास्को में युद्ध ड्यूटी पर लगाया गया था। जून 2024 में यूक्रेन ने दावा किया कि S-500 को क्रीमिया में केर्च ब्रिज की रक्षा के लिए तैनात किया गया था। मई 2018 में सबसे लंबी दूरी का परीक्षण सफल रहा।

S-500 बनाम S-400: एक गहन तुलना

विशेषता S-500 प्रोमेथियस S-400 ट्रायम्फ
रेंज (वायु रक्षा) 500 किमी 400 किमी
ABM रेंज 600 किमी सीमित
हाइपरसोनिक रक्षा सक्षम सीमित
लक्ष्य गति 7 किमी/सेकंड 4.8 किमी/सेकंड
लक्ष्य प्रकार सैटेलाइट, स्पेस हथियार, हाइपरसोनिक मिसाइल विमान, क्रूज मिसाइलें
एक साथ लक्ष्य 10 तक 6–8 अनुमानित
लागत $700M–$2.5B लगभग $400M–$600M
तैनाती सीमित (रूस, संभावित भारत) रूस, भारत, चीन, तुर्की आदि

S-400 प्रणाली भारत में पहले ही सेवा में है, और इसकी डिलीवरी 2021 में शुरू हो गई थी। लेकिन S-500 के साथ, भारत को हाइपरसोनिक और स्पेस-आधारित खतरों के खिलाफ उच्च सुरक्षा प्राप्त हो सकती है।

वैश्विक तुलना: अन्य प्रमुख वायु रक्षा प्रणालियाँ

देश प्रणाली रेंज हाइपरसोनिक रक्षा विशेषता
अमेरिका THAAD 200 किमी नहीं टर्मिनल फेज बैलिस्टिक रक्षा
चीन HQ-19 अनुमानित 300–400 किमी सीमित जानकारी ABM पर केंद्रित
इज़राइल Arrow-3 2,400 किमी नहीं एक्सो-एटमॉस्फेरिक इंटरसेप्टर

इनमें से केवल S-500 ही व्यापक हाइपरसोनिक रक्षा, स्पेस-वेपन इंटरसेप्शन और मल्टी-टारगेट एंगेजमेंट जैसी क्षमताएं प्रदान करता है, जो इसे आज की सबसे उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों में शामिल करता है।

भारत-रूस प्रस्ताव: रणनीतिक महत्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के दौरान, रूस ने S-500 के संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव दिया। यह प्रस्ताव ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल परियोजना की सफलता की याद दिलाता है, जो भारत-रूस रक्षा सहयोग की मिसाल बनी।

संभावित लाभ:

चुनौतियाँ:

S-500 प्रोमेथियस एक रणनीतिक “गेम-चेंजर” है, जो हाइपरसोनिक युग के खतरे को रोकने में सक्षम है। रूस द्वारा भारत को इसके संयुक्त उत्पादन का प्रस्ताव, दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के नए आयाम खोल सकता है। यदि यह प्रस्ताव व्यवहार में आता है, तो भारत भविष्य की युद्ध चुनौतियों का सामना और मजबूती से कर सकेगा। अब यह देखना शेष है कि आने वाले महीनों में यह प्रस्ताव किन दिशा में बढ़ता है और कैसे यह वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित करता है।

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