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Indian pregnant prisoners law: गर्भवती महिला कैदी के अधिकार और भारतीय कानून… मुस्कान केस के सन्दर्भ में समझिए पूरा मामला

मेरठ के बहुचर्चित सौरभ हत्याकांड में नया मोड़ आया है। आरोपी मुस्कान, जो अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर चुकी है, अब जेल में गर्भवती पाई गई है, जिससे कानूनी और नैतिक बहस छिड़ गई है।

Mayank Yadav by Mayank Yadav
April 7, 2025
in Latest News, राष्ट्रीय
Indian pregnant prisoners law
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Indian pregnant prisoners law: मेरठ के बहुचर्चित सौरभ हत्याकांड की आरोपी मुस्कान, जो इस समय जेल में बंद है, हाल ही में गर्भवती पाई गई है। यह खबर सामने आने के बाद न सिर्फ कानूनी, बल्कि सामाजिक और नैतिक प्रश्न भी उठ खड़े हुए हैं। मुस्कान पर अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर (Indian pregnant prisoners law) अपने पति की हत्या का आरोप है, और अब जेल में रहते हुए उसकी गर्भावस्था ने जेल व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस संवेदनशील स्थिति में यह जानना जरूरी है कि भारतीय कानून क्या कहता है जब कोई महिला अपराधी जेल में रहते हुए गर्भवती हो जाती है।

भारतीय संविधान और महिला कैदी के अधिकार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह अधिकार (Indian pregnant prisoners law) जेल में बंद कैदियों पर भी समान रूप से लागू होता है। इसका अर्थ यह है कि किसी गर्भवती महिला कैदी को उचित चिकित्सा सुविधा, पोषण, और गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है।

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अनुच्छेद 15(3) के अनुसार, राज्य महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बना सकता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि गर्भवती महिला कैदी की देखभाल करना राज्य की जिम्मेदारी है।

जेल नियम और मॉडल प्रिजन मैनुअल, 2016

मॉडल प्रिजन मैनुअल, 2016 के तहत गर्भवती कैदियों के लिए विशेष दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इसके अनुसार:

  • गर्भवती महिलाओं को पोषणयुक्त भोजन, समय-समय पर मेडिकल जांच और उचित देखभाल दी जानी चाहिए।
  • उन्हें हल्के कार्य दिए जाएं और प्रसव के समय अस्पताल ले जाया जाए।
  • यदि बच्चा जेल में जन्म लेता है, तो उसे छह वर्ष की आयु तक माँ के साथ जेल में रहने की अनुमति होती है।

मुस्कान के केस में अब जेल प्रशासन पर यह जिम्मेदारी है कि वह उसे सुरक्षित चिकित्सा सुविधा दे और गर्भावस्था के दौरान सभी मानकों का पालन करे।

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले

सुप्रीम कोर्ट ने राम मूर्ति बनाम राज्य और R.D. Upadhyay बनाम आंध्र प्रदेश राज्य जैसे मामलों में स्पष्ट किया है कि गर्भवती महिला कैदी को सभी मूलभूत सुविधाएँ और गरिमा से जीवन जीने का अधिकार है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने भी 2018 में एक निर्णय में कहा कि गर्भवती महिला को जमानत या पैरोल दी जा सकती है यदि चिकित्सा स्थिति गंभीर हो।

हालांकि मुस्कान जैसे गंभीर अपराधों में जमानत मिलना मुश्किल होता है, लेकिन कोर्ट मानवीय आधार पर विशेष परिस्थिति को ध्यान में रखकर फैसला ले सकता है।

यदि गर्भधारण जेल में हुआ हो

यह सबसे गंभीर पहलू है। यदि यह साबित होता है कि मुस्कान जेल में गर्भवती (Indian pregnant prisoners law) हुई है, तो यह यौन शोषण, सहमति के बिना संबंध, या जेल कर्मियों की लापरवाही का संकेत हो सकता है। ऐसे मामलों में IPC की धारा 376 (बलात्कार) और अन्य आपराधिक धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है। जेल अधीक्षक को इस मामले की सूचना महिला आयोग और पुलिस को देनी होती है।

जन्म के बाद बच्चे का क्या होता है?

यदि कोई बच्चा जेल में पैदा होता है, तो उसे अधिकतम छह वर्ष की आयु तक माँ के साथ जेल में रहने की अनुमति है। इसके बाद:

  • यदि कोई परिवार उपलब्ध हो, तो बच्चे को उनके पास भेजा जा सकता है।
  • यदि नहीं, तो बाल कल्याण समिति के जरिए बच्चे की देखभाल की जाती है।

कानूनी सहायता और पुनर्वास

गर्भवती महिला कैदियों को नि:शुल्क कानूनी सहायता पाने का (Indian pregnant prisoners law) अधिकार है। अगर वह अच्छे आचरण की पात्र है, तो मानवीय आधार पर उसे पैरोल, बेल या सजा में छूट दी जा सकती है। मुस्कान केस ने भारत में जेल सुधार और महिला कैदियों के अधिकारों पर नई बहस छेड़ दी है। एक ओर वह एक जघन्य अपराध की आरोपी है, तो दूसरी ओर वह एक माँ बनने वाली है, और उसके गर्भ में पल रहा बच्चा निर्दोष है। भारतीय कानून इसी संतुलन को बनाए रखने की कोशिश करता है—जहाँ अपराध के लिए सजा दी जाए, लेकिन मानवता और महिला अधिकारों की भी रक्षा हो। ऐसे मामलों में समाज, न्यायपालिका और जेल प्रशासन को संवेदनशीलता और जिम्मेदारी दोनों के साथ काम करने की आवश्यकता है।

यहां पढ़ें: Petrol Price Hike: तीनों पर वार! पेट्रोल-डीजल के बाद अब LPG भी महंगी, 50 रुपये की छलांग
Tags: Indian pregnant prisoners law
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Mayank Yadav

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