न्यायमूर्ति गवई भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश, जानें क्यों है यह नियुक्ति खास

भारत को नया मुख्य न्यायाधीश मिलने जा रहा है। न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई 14 मई को पदभार संभालेंगे। वे देश के दूसरे दलित CJI होंगे, जिनकी नियुक्ति सामाजिक न्याय और न्यायिक परंपरा दोनों के लिहाज से महत्वपूर्ण है।

Justice Gavai

Justice Gavai Next CJI: भारत की न्यायपालिका एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई (Justice Gavai )के नाम की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति गवई 14 मई 2025 को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे और 23 नवंबर 2025 तक इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। यह नियुक्ति न केवल न्यायिक प्रक्रिया का एक नियमित हिस्सा है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, प्रतिनिधित्व और जातिगत विमर्श के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

एक प्रतिष्ठित विरासत का धनी

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

वकालत से न्यायाधीश तक का सफर

अन्य उल्लेखनीय पद

एक ऐतिहासिक नियुक्ति का सामाजिक सन्दर्भ

Justice Gavai भारत के इतिहास में दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश होंगे, उनसे पहले न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन (2007–2010) ने यह भूमिका निभाई थी। उनकी नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका में सामाजिक प्रतिनिधित्व को एक नई पहचान देती है। हालाँकि, यह निर्णय न्यायपालिका की स्थापित वरिष्ठता प्रणाली के अनुरूप है, जिसमें सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को CJI बनाया जाता है।

मोदी सरकार की भूमिका और राजनीतिक विमर्श

भले ही यह नियुक्ति न्यायिक परंपरा का पालन है, परन्तु भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार के समर्थक इसे सामाजिक समावेशन का उदाहरण बता रहे हैं। इसे दलित प्रतिनिधित्व और समावेश की दिशा में “क्रांतिकारी कदम” के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर कई पोस्ट्स में इसे ऐतिहासिक और बदलाव का प्रतीक बताया गया है।

विपक्षी दल, विशेषकर कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी, इस नियुक्ति को प्रतीकात्मक बताते हैं और आरोप लगाते हैं कि सरकार इसे केवल दलित वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए भुना रही है। वे इस बात की ओर भी इशारा करते हैं कि मोदी सरकार के कार्यकाल में एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम में बदलावों और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर सरकार की नीतियाँ संदेह के घेरे में रही हैं।

न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व का सवाल

भारत के सुप्रीम कोर्ट के 75 वर्षों के इतिहास में बहुत ही कम एससी/एसटी समुदायों के जज रहे हैं। न्यायमूर्ति गवई की नियुक्ति एक प्रेरणादायक संकेत है, लेकिन इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या यह नियुक्ति केवल प्रतीकात्मक है या इससे न्यायपालिका में स्थायी और समावेशी बदलाव की शुरुआत होगी?

कार्यकाल से अपेक्षाएँ

हालांकि Justice Gavai का कार्यकाल सिर्फ छह महीने का होगा, परंतु उनसे अपेक्षा की जा रही है कि वे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए लंबित मामलों की सुनवाई में तेजी लाएँगे। आरक्षण नीतियों, जनहित याचिकाओं और संवैधानिक सवालों से जुड़े मुद्दों पर उनके निर्णय समाज के लिए दिशा निर्धारण कर सकते हैं।

Justice Gavai की मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति भारतीय लोकतंत्र और न्यायिक प्रणाली के लिए गौरव का क्षण है। यह नियुक्ति सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, लेकिन यह न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व के सवालों और जातिगत विभाजन के राजनीतिक उपयोग को भी रेखांकित करती है। आने वाला समय यह तय करेगा कि यह नियुक्ति केवल प्रतीकात्मक है या यह न्यायिक प्रणाली में वास्तविक परिवर्तन की ओर पहला कदम है।

“सरकार बताएगी कौन है मुस्लिम?” – वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में गरमाई बहस

 

Exit mobile version