Kabir Das Jayanti 2025 : हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को संत कबीर दास जी की जयंती मनाई जाती है। यह दिन सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करने और उनके बताए रास्ते पर चलने का मौका होता है।
2025 में कबीर जयंती कब मनाई जाएगी?
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 10 जून 2025 को सुबह 11:35 बजे से शुरू होकर 11 जून को दोपहर 1:13 बजे तक रहेगी। चूंकि पर्व उदया तिथि के अनुसार मनाया जाता है, इसलिए 11 जून 2025, बुधवार को कबीर जयंती मनाई जाएगी।
संत कबीर दास का जीवन और शुरुआत
Kabir Das का जन्म 1398 ईस्वी के आसपास हुआ था। ऐसा माना जाता है कि वे लहरतारा (वाराणसी) के पास जन्मे थे और एक जुलाहा परिवार नीरू और नीमा ने उन्हें पाला। उन्होंने कभी स्कूल की पढ़ाई नहीं की, लेकिन जीवन से गहरा ज्ञान प्राप्त किया। साधु-संतों की संगति और स्वामी रामानंद से दीक्षा ने उन्हें आत्मज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ाया।
कबीर के विचार और जीवन दर्शन
कबीर दास जी ने हमेशा बाहरी दिखावे, जात-पात और धार्मिक अंधविश्वासों का विरोध किया। उनका मानना था कि ईश्वर मंदिर, मस्जिद या मूर्तियों में नहीं, बल्कि इंसान के अंदर है। उन्होंने हमेशा प्रेम, करुणा और समानता को सच्चा धर्म बताया।
कबीर दास जी के अमूल्य दोहे
कबीरदास जी ने अपने दोहों के जरिए गहरी बातें सरल शब्दों में कही, जो आज भी दिल को छू जाती हैं
“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका छोड़ दे, मन का मनका फेर।”
हाथ से माला फेरने से कुछ नहीं होगा, जब तक मन नहीं बदलेगा।
“जहां खोजा तां पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरी डूबन डरी, रही किनारे बैठ।”
जो खोज करेगा वही पाएगा, डरकर किनारे बैठने से कुछ नहीं मिलेगा।
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”
केवल ऊँचा पद या नाम होना काफी नहीं, अगर आप दूसरों के काम नहीं आ रहे।
“कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।”
अर्थ: एक संत सबका भला चाहता है, न किसी से मित्रता में बंधता है, न बैर रखता है।
“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।”
केवल माला फेरने से कुछ नहीं होता, मन को सुधारना ज़रूरी है।
कबीर का समाज में योगदान
कबीर ने हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मों की बुराइयों की आलोचना की। वे मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और बाहरी आडंबरों के खिलाफ थे। उन्होंने ‘राम’ और ‘अल्लाह’ को एक माना और एकता, भक्ति और सच्चाई पर बल दिया। वे ‘निर्गुण भक्ति’ के समर्थक थे, यानी ईश्वर को बिना रूप के मानना।
कबीरदास जी ने हिंदू और मुस्लिम दोनों समाजों की कट्टरता और रुढ़िवाद पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने हमेशा कहा कि ईश्वर एक है, चाहे उसे राम कहो या रहीम। उनके विचारों ने भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी।
मृत्यु और विरासत
1518 ईस्वी में कबीर दास जी ने मगहर (उत्तर प्रदेश) में देह त्याग दी। उनके निधन के बाद हिन्दू और मुस्लिम अनुयायियों में मतभेद हुआ, लेकिन जब कफन हटाया गया तो वहां केवल फूल पाए गए, जिसे दोनों ने आपस में बांटकर अंतिम संस्कार किया।
कबीर जयंती का महत्व
Kabir Das जयंती सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि एक विचारधारा है। इस दिन लोग उनके दोहे पढ़ते हैं, सत्संग और भजन करते हैं और उनकी शिक्षाओं को जीवन में उतारने का संकल्प लेते हैं। यह दिन हमें सिखाता है कि धर्म का असली अर्थ इंसानियत है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और पंचांग आधारित तथ्यों पर आधारित है। न्यूज1इंडिया इसकी पुष्टि नहीं करता है।