Mahashivratri special story 2025 : संगमनगरी प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन चल रहा है। अभी तक करीब 60 करोड़ से अधिक भक्तों ने संगम में स्नान कर पुण्ण कमाया है। भक्तों के आने का सिलसिला जारी है और महाशिवरात्रि पव को शाही स्नान है। ऐसे में अनुमान है कि करीब तीन करोड़ श्रद्धालु त्रिवेड़ी में डुबकी लगाएंगे। साथ ही महाशिवरात्रि को लेकर पूरे देश के शिवालय सजाए गए हैं। लोग पर्व को लेकर खरीदारी करने के साथ ही घरों पर पूजा-अर्चना को लेकर पंडितों की बुकिंग करा रहे हैं। ऐसे में हम आपको एक ऐसे शिवधाम से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसका निर्माण खुद भगवान श्रीराम के पूर्वजों ने करवाया था। ये मंदिर हरियाणा के कैथल में है, जिसे खटवांगेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
टीले पर बना है शिव मंदिर
हरियाणा के कैथल जनपद से करीब 7 किमी की दूरी कलायत गांव हैं और यहीं पर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित हजारों वर्ष पुराना शिवलिंग की काफी मान्यता हैं। शिवरात्रि पर्व पर यहां पर हजारों लोग पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। एक टीले के ऊपर बना मंदिर भी अपने इतिहास की गवाही देता है। ऐसी मान्यता है कि यहां वर्षों पहले विकसित संस्कृति रही है। हालांकि समय के साथ-साथ सभ्यताएं भी लुप्त होती गईं है। परंतु इस पौराणिक शिवलिंग का वजूद नहीं मिटा है। जो हर किसी को हैरान कर देने वाला है। इस गांव की विशेष बात यह भी है यहां रहने वाली आबादी केवल मंदिर में रहने वाले साधु संतों की ही हैं।
भगवान श्रीराम के पूर्वज के तप से प्रकट हुआ शिवलिंग
मंदिर के पुजारी ने बताया कि पुराणों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास भगवान राम के पूर्वज राजा खट्वांग से जुड़ा है। भगवान राम से 10 पीढ़ी पहले हुए उनके पूर्वज राजा खट्वांग ने राजकाज त्याग कर यहां भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रशंस हुए और दर्शन दिए। महाकाल ने इस स्थान पर उन्हें अपने नाम से पूजे जाने का आशीर्वाद भी दिया था। इसके बाद यहां भगवान शिव का शिवलिंग उत्पन्न हुआ। बाद में इस मंदिर का महाराजा पटियाला द्वारा जीर्णोद्धार किया गया। 1987 में महंत पुरुषोत्तम गिरी व बाबा रामगिरी के प्रयासों से मंदिर को भव्य स्वरूप दिया गया।
पातालेश्वर के नाम से भी जाना जाता
इस मंदिर की ऊंचाई करीब 120 फीट है। मंदिर परिसर में भव्य हवन कुंड बना है। इसमें एक समय में सैकड़ों लोग हवन कर सकते हैं। दूर दराज से आने वाले यात्रियों के लिए दर्जनों कमरे मंदिर परिसर में ही बने हैं। परिसर में एक गौशाला भी बनी है जिसमें हजारों गाय मौजूद हैं। खटवांगेश्वर महादेव पर जलाभिषेक के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को गर्भगृह में घुसते ही अलौकिक शक्ति व तरंगों का अहसास होता है जो उनकी आस्था व श्रद्धा में और विश्वास बढ़ाता है। मंदिर के पुजारी ने बताया, शिवलिंग जितना ऊपर दिखता है इसे दोगुना मोटा 18 फीट तक नीचे है फिर उसके बाद अष्टकोण में शुरू हो जाता है इसकी गहराई कोई माप नहीं पाया है इसको पातालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
गांव में सिर्फ संतों की आबादी
खंडालवा में मंदिर के अलावा अन्य कोई आबादी नहीं है। इसलिए यह बे-चिराग नगरी से भी विख्यात है। इस गांव में केवल एक मंदिर और एक राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल ही स्थापित है। यहां पर केवल साधु संत ही रहते हैं। मंदिर की यह भी मान्यता है कि जो कोई श्रद्धालु यहां पर शिवरात्रि के दिन यहां स्थित पेड़ पर धागा बाधते हैं तो उनकी सभी मन्नतें पूरी होती है। मन्नत पूरी होने पर शिवलिंग पर गुड़ की बेली चढ़ाई जाती है। मान्यता अनुसार जो भक्त यहा श्रद्धा भाव से धागा बाधता है शिव शभू निश्चित तौर से उसकी मन्नत पूरी करते है। मंदिर में वैसे तो श्रावण व फाल्गुन की दोनों ही महाशिवरात्रि पर मेले का आयोजन होता है, लेकिन श्रावण मास में हजारों की संख्या में कावड़िये हरिद्वार से कावड़ लाकर यहा जलाभिषेक करते है। मात्र जलाभिषेक से ही भगवान शिव यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं के सभी दुख दूर होते हैं।
ऐसे पहुंचे मंदिर, महाशिवरात्रि की जारी है तैयारी
खंडालवा स्थित शिव मंदिर कलायत से महज सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जबकि कैथल से इसकी दूरी करीब 33 किलोमीटर है। बस के माध्यम से कलायत पहुंचना पड़ता है। इसके बाद यहां से ऑटो के माध्यम से मंदिर पहुंचना पड़ता है। इसी प्रकार से ट्रेन के माध्यम से इसका निकटतम रेलवे स्टेशन कलायत है। इनसब के बीच कलायत क्षेत्र में महाशिवरात्रि पर्व की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जा चुका है। कलायत के निकट गांव खडालवा में स्थित पौराणिक स्वयंभू शिव मंदिर को आकर्षक रूप से सजाये जाने व मेले की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है।