दिल्ली में कुत्तों को लेकर बहस छिड़ी ,महात्मा गांधी और 60 कुत्ते, क्या था कम पाप बनाम बड़ा पाप मामला

1926 में गांधीजी ने 60 पागल कुत्तों को मारने की सहमति दी, इसे कम पाप मानते हुए। उनका मानना था। कभी-कभी बड़े पाप से बचने के लिए छोटे पाप को चुनना जरूरी होता है, साथ ही समाज को पशु-देखभाल करनी चाहिए।

Mahatma Gandhi Stray Dogs Case

Mahatma Gandhi Stray Dogs Case: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में लावारिस कुत्तों को अलग रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे आवारा कुत्ते, जो लोगों के लिए खतरा बन सकते हैं, उन्हें खुले में सड़कों और मोहल्लों में घूमने नहीं दिया जाए। इस फैसले पर समाज में अलग-अलग राय है। कुछ लोग इसे समाजहित में मानते हैं, तो डॉग लवर्स का कहना है कि कुत्तों को इंसानों से अलग करना सही नहीं है क्योंकि वे सदियों से मनुष्य के साथी रहे हैं। कई राजनीतिक नेताओं, जिनमें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी शामिल हैं, ने इस आदेश पर सवाल उठाए।

गांधीजी का 1926 का फैसला

यह विवाद सुनकर महात्मा गांधी से जुड़ा एक पुराना किस्सा याद आता है। 1926 में, टेक्सटाइल व्यापारी अंबालाल साराभाई की मिल में करीब 60 कुत्ते पागल हो गए थे। ये कुत्ते लोगों की जान के लिए खतरा थे। साराभाई ने इन्हें मारने का आदेश दिया, जिस पर समाज में सवाल उठने लगे। विवाद बढ़ा तो साराभाई, गांधीजी से सलाह लेने साबरमती आश्रम पहुंचे। पूरी बात सुनने के बाद गांधीजी ने पूछा”और क्या विकल्प है?”

गांधीजी की कम और ज्यादा पाप की दलील

गांधीजी ने बाद में यंग इंडिया अखबार में लिखा “हिंदू दर्शन में हर जीव की हत्या पाप है, और सभी धर्म इससे सहमत हैं। लेकिन समस्या तब आती है, जब इसे व्यवहार में लागू करना हो। जैसे हम कीटनाशक से कीड़े मारते हैं, यह हिंसा है, पर कर्तव्य भी है।

एक पागल कुत्ते को मारना कम हिंसा है, लेकिन यदि आप शहर में रहते हैं और उसे नहीं मारते, तो इससे बड़ा पाप होगा क्योंकि इससे कई निर्दोष लोगों की जान जा सकती है। इसलिए ऐसी स्थिति में कम पाप चुनना ही सही है।”

लावारिस कुत्तों पर गांधीजी की सोच

गांधीजी का मानना था। किसी समाज की दयालुता इस बात से मापी जाती है कि वह अपने बीच रहने वाले जानवरों के साथ कैसा व्यवहार करता है। उन्होंने कहा “कुत्ता एक वफादार साथी है, उसे यूं ही आवारा घूमने देना समाज की लापरवाही और संवेदनहीनता दिखाता है।”

समाज के लिए नसीहत

गांधीजी ने कहा था कि एक सभ्य व्यक्ति को अपनी आय का कुछ हिस्सा ऐसे संगठनों को देना चाहिए, जो कुत्तों की देखभाल करते हों। अगर यह संभव न हो, तो कम से कम जानवरों के प्रति उदासीनता छोड़कर अन्य पशुओं की सेवा में योगदान देना चाहिए।

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