Sunita Mishra : उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय (MLSU) की कुलपति प्रो. सुनीता मिश्रा इन दिनों अपने एक विवादित बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब को “कुशल प्रशासक” बताया, जिसके बाद राज्यभर में विरोध की लहर दौड़ गई। खासकर उदयपुर जैसे ऐतिहासिक शहर में, जहां महाराणा प्रताप को वीरता और स्वाभिमान का प्रतीक माना जाता है, ऐसे बयान ने जनभावनाओं को आहत किया।
12 सितंबर को शुरू हुआ विवाद
यह विवाद 12 सितंबर को विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित एक सेमिनार के दौरान उठा, जब प्रो. मिश्रा ने औरंगजेब की प्रशासनिक दक्षता की तुलना महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान जैसे वीरों से कर दी। उनके इस बयान के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना समेत कई संगठनों ने विरोध दर्ज कराया। करणी सेना ने इसे “मेवाड़ की अस्मिता पर चोट” बताते हुए उनके इस्तीफे की मांग की और कहा कि एक विदेशी आक्रांता, जिसने हिंदू संस्कृति को नुकसान पहुंचाया, उसकी तुलना महाराणा प्रताप से करना अपमानजनक है।
वीडियो संदेश में मांगी माफी
विवाद के तूल पकड़ने पर प्रो. मिश्रा ने बुधवार को एक वीडियो संदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने अपने बयान पर खेद जताते हुए सार्वजनिक माफी मांगी। उन्होंने कहा, “राजस्थान वीरों की भूमि है और यह महाराणा प्रताप की धरती है। मेरी मंशा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नहीं थी। यदि किसी को दुख पहुंचा है, तो मैं दिल से क्षमा मांगती हूं।”
कौन हैं प्रो. सुनीता मिश्रा?
प्रो. सुनीता मिश्रा वर्तमान में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर की कुलपति हैं। वे ओडिशा राज्य से ताल्लुक रखती हैं और शिक्षा के क्षेत्र में उनका नाम एक प्रतिष्ठित विद्वान के रूप में जाना जाता है। इससे पहले वह लखनऊ के बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में डीन के पद पर कार्यरत थीं।
2023 में उन्हें राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र द्वारा एमएलएसयू का कुलपति नियुक्त किया गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित रमा देवी महिला कॉलेज (अब विश्वविद्यालय) और कटक के शैलबाला महिला महाविद्यालय में हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके पति सत्य नारायण भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारी हैं।
प्रो. मिश्रा का शैक्षणिक सफर
प्रो. सुनीता मिश्रा को शिक्षा क्षेत्र में 32 वर्षों से अधिक का व्यापक अनुभव प्राप्त है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ओडिशा के बरहामपुर और कटक के प्रतिष्ठित महिला महाविद्यालयों में अध्यापन से की। इसके बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (BBAU), लखनऊ में प्रोफेसर और डीन जैसे वरिष्ठ शैक्षणिक पदों पर कार्य किया। वे 15 वर्षों तक विभिन्न उच्च शैक्षणिक पदों पर रही हैं।
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उनके अकादमिक योगदान में 23 पुस्तकों का लेखन, 20 शोधार्थियों का पीएचडी मार्गदर्शन और खाद्य प्रौद्योगिकी में दो पेटेंट शामिल हैं। उन्होंने 400 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं और यूजीसी तथा एनएएसी जैसी राष्ट्रीय संस्थाओं की कई समितियों में नेतृत्व किया है। इसके अलावा, वे संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) से भी जुड़ी रही हैं, जो उनके अंतरराष्ट्रीय योगदान को दर्शाता है। 2008 में अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें एक नोबेल पुरस्कार विजेता द्वारा सम्मानित किया गया था, जो उनके वैश्विक शैक्षणिक योगदान का प्रमाण है।