वीरता और आत्मसम्मान का प्रतीक
Rana Sanga (शासनकाल: 1508-1528) मेवाड़ के एक महान राजपूत योद्धा थे, जो अपनी अदम्य साहस और आत्मसम्मान के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने जीवन में 100 से अधिक युद्ध लड़े और हमेशा युद्धभूमि में डटे रहे। राणा सांगा की वीरता का यह आलम था कि उनके शरीर पर 80 से अधिक गहरे घाव थे। उन्होंने एक आंख और एक हाथ गंवाया और एक पैर भी क्षतिग्रस्त हुआ, लेकिन कभी युद्धभूमि में पीठ नहीं दिखाई। यह उनके चरित्र और साहस का जीवंत प्रमाण है।
उनके प्रमुख युद्धों में दिल्ली सल्तनत के इब्राहिम लोदी, मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी और गुजरात के बहादुर शाह के खिलाफ जीतें शामिल हैं। उनके नेतृत्व में राजपूत संघ एकजुट हुआ और उन्होंने “हिंदूपत” की उपाधि प्राप्त की। उनकी इस उपाधि ने उन्हें समकालीन राजपूत योद्धाओं के बीच आदर्श बना दिया।
बाबर का भारत आगमन-मिथक और सच्चाई
मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर का पूरा नाम ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद था। बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। अक्सर बाबर के भारत आगमन का श्रेय पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी और आलम खान लोदी जैसे असंतुष्ट अफगान सरदारों को दिया जाता है। उन्होंने इब्राहिम लोदी के खिलाफ बाबर से सहायता मांगी थी।
लेकिन बाबरनामा—बाबर की आत्मकथा—में एक दावा है कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी के खिलाफ सहयोग का प्रस्ताव भेजा था। यह दावा पानीपत की लड़ाई के बाद का प्रतीत होता है, न कि बाबर को भारत बुलाने का प्रमाण। यह बाबर की व्यक्तिगत दृष्टि थी, जो उसकी जीत को वैध ठहराने के लिए लिखी गई हो सकती है।
ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर देखा जाए तो राणा सांगा का बाबर को बुलाने का कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिलता। सतीश चंद्रा और आर.सी. मजूमदार जैसे प्रसिद्ध इतिहासकार इस दावे को खारिज करते हैं। वे मानते हैं कि राणा सांगा की सैन्य शक्ति इतनी प्रबल थी कि उन्हें किसी बाहरी सहायता की आवश्यकता नहीं थी।
खानवा का युद्ध- वीरता का प्रतीक
खानवा का युद्ध (1527) Rana Sanga और बाबर के बीच हुआ था, जिसमें राणा को पराजय का सामना करना पड़ा। लेकिन इस युद्ध ने यह सिद्ध किया कि राणा सांगा और बाबर के बीच कभी भी सहयोग नहीं था। राणा सांगा बाबर के कट्टर विरोधी थे, न कि सहयोगी। बाबर ने इस युद्ध में “जिहाद” और “गाज़ी” जैसे शब्दों का प्रयोग कर इसे धार्मिक रंग देने का प्रयास किया।
बाबर की जीत के बावजूद राणा सांगा की वीरता और दृढ़ संकल्प भारतीय इतिहास में अमर हो गई। यह कहना कि राणा सांगा ने बाबर को बुलाया, उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना है और ऐतिहासिक तथ्यों का अपमान है।
राजनीति और इतिहास का टकराव
22 मार्च, 2025 को राज्यसभा में रामजी लाल सुमन ने कहा कि Rana Sanga ने बाबर को भारत बुलाया और उन्हें “गद्दार” कहा। यह बयान बीजेपी के उस दावे के जवाब में था जिसमें भारतीय मुस्लिमों को बाबर का वंशज बताया गया था। सुमन का तर्क था कि अगर मुस्लिम बाबर के वंशज हैं, तो हिंदू राणा सांगा के हैं।
राजनीति में अक्सर इतिहास का उपयोग वोट बैंक के लिए किया जाता है, लेकिन इस बार राणा सांगा जैसे नायक की गरिमा पर आघात हुआ है। यह बयान तुष्टिकरण की राजनीति का उदाहरण है, जिसमें इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया।
सत्य और राजनीति के बीच
इतिहास का पुनर्लेखन कोई नई बात नहीं है, लेकिन यह तभी उचित है जब सत्य और तथ्य को प्राथमिकता दी जाए। Rana Sanga पर आरोप लगाना उस प्रवृत्ति का हिस्सा है जिसमें महान नायकों को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता है।
कुछ लोग औरंगज़ेब जैसे शासकों का महिमामंडन करते हैं, जिन्होंने अपने पिता को कैद किया और भाइयों की हत्या की। वहीं राणा सांगा जैसे नायकों को “गद्दार” कहने की कोशिश की जाती है। यह प्रवृत्ति न केवल ऐतिहासिक तथ्यों के साथ खिलवाड़ है, बल्कि राष्ट्रभक्ति की भावना को भी आहत करती है।
इतिहास के प्रति न्याय
Rana Sanga और बाबर के संबंध एक ऐतिहासिक पहेली हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि राणा ने बाबर को भारत नहीं बुलाया। राणा सांगा का जीवन त्याग और साहस का प्रतीक है, जबकि बाबर एक आक्रमणकारी था जिसने अपनी महत्वाकांक्षा के कारण भारत में साम्राज्य स्थापित किया।
रामजी लाल सुमन का बयान राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, लेकिन यह ऐतिहासिक सत्य को झुठलाता है। इतिहास को निष्पक्षता से देखने की जरूरत है—न तो अंधभक्ति से और न ही तुष्टिकरण से। राणा सांगा देशभक्तों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे, और बाबर अपने समय का एक विजेता।
सत्य को उजागर करने के लिए हमें न केवल बाबरनामा पर निर्भर रहना चाहिए, बल्कि अन्य समकालीन और स्वतंत्र स्रोतों की भी जांच करनी चाहिए। यही इतिहास का सम्मान और न्याय है।