सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला ! साइबर क्राइम के अपराधियों को नहीं मिलेगी जमानत

सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट धोखाधड़ी मामले में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए 72 वर्षीय महिला वकील से 3.29 करोड़ ठगने वाले आरोपितों की जमानत पर रोक लगा दी और पूरे देश के लिए दिशानिर्देश जारी करने के संकेत दिए।

Digital Arrest Fraud Case

Supreme Court:सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट घोटाले पर कड़ा रुख अपनाते हुए 72 वर्षीय महिला वकील से 3.29 करोड़ रुपये ठगने वाले आरोपितों को किसी भी निचली अदालत से जमानत न देने का आदेश जारी किया है। अदालत ने कहा कि यह एक असमान्य मामला है और इससे निपटने के लिए असमान्य हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

डिजिटल अरेस्ट मामले पर स्वत: संज्ञान

यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने डिजिटल अरेस्ट से जुड़े मामलों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई के दौरान पारित किया। कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें बुजुर्ग महिला वकील की जीवनभर की जमा पूंजी ठगे जाने का मुद्दा उठाया गया था।

विधायी जमानत पर रोक और कठोर निर्देश

याचिका में कहा गया कि चार्जशीट समय पर दाखिल न होने की वजह से आरोपितों को विधायी जमानत मिलने की संभावना थी। इस पर कोर्ट ने साफ कहा कि विजय खन्ना सहित कोई भी सहअभियुक्त किसी भी अदालत से जमानत पर रिहा नहीं होगा। यदि आरोपितों को राहत चाहिए, तो वे केवल सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

धन वापस कराने में प्रक्रियागत बाधाएँ

सुनवाई के दौरान SCAORA के अध्यक्ष विपिन नायर ने बताया कि पुलिस आरोपितों से 42 लाख रुपये वसूलने की स्थिति में थी, लेकिन प्रक्रियागत खामियों के कारण यह राशि पीड़िता को नहीं दी जा सकी। बैंक ने मजिस्ट्रेट के स्पष्ट आदेश के बावजूद रकम लौटाने से इनकार कर दिया। इस पर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए जल्द ही देशभर के लिए नए दिशानिर्देश जारी करने का संकेत दिया।

बुजुर्गों को निशाना बना रहे ठग

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के रुख का समर्थन किया और बताया कि ठग तकनीकी रूप से कमज़ोर और बुजुर्ग लोगों को अधिक निशाना बना रहे हैं। वे कोर्ट, पुलिस या एजेंसियों का भय दिखाकर पीड़ितों को डिजिटल रूप से “बंधक” बना देते हैं। कई लोग अपनी एफडी तक तोड़कर अपराधियों को पैसे दे रहे हैं।

जागरूकता अभियान और आगे की कार्यवाही

कोर्ट ने न्यायमित्र एनएस नप्पिनाई को निर्देश दिया कि वे डिजिटल अरेस्ट पीड़ितों के लिए एक जागरूकता विज्ञापन तैयार करें, जिसमें पीड़ितों से संपर्क करने का आह्वान होगा। इससे देशभर में इस अपराध की व्यापकता का पता लगाया जा सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, हरियाणा पुलिस और सीबीआई को भी नोटिस जारी किया है। अब मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी।

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