Muslim Women Rights:सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि तलाकशुदा महिला को वह सभी सामान वापस पाने का पूरा अधिकार है जो वह शादी के बाद अपने साथ लेकर आई थी। इसमें नकद रकम, सोने के गहने और वे सभी उपहार शामिल हैं जो उसके माता-पिता ने शादी के समय उसे या उसके पति को दिए थे। कोर्ट ने इन सभी चीजों को महिला की व्यक्तिगत संपत्ति माना और कहा कि विवाह टूटने पर यह सामान उसे लौटाया जाना अनिवार्य है।
जजों की बेंच ने क्या कहा?
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि 1986 का मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) कानून सिर्फ एक साधारण नागरिक विवाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसकी व्याख्या इस तरह होनी चाहिए जिससे संविधान में दिए गए समानता और स्वतंत्रता के मूल सिद्धांत पूरे हों।
बेंच ने कानून की धारा 3 का उल्लेख करते हुए कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को उन सभी चीजों का अधिकार है जो उसे शादी से पहले, शादी के दौरान और शादी के बाद मिली थीं। यह कानून सुनिश्चित करता है कि महिला आर्थिक रूप से कमजोर न हो और उसे पर्याप्त सुरक्षा मिले।
पुराने केस का हवाला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में डैनियल लतीफी बनाम भारत संघ (2001) मामले का भी जिक्र किया। उस समय एक संवैधानिक बेंच ने इस कानून को पूरी तरह वैध बताया था। अदालत ने उस फैसले में भी यही बात दोहराई थी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता और सुरक्षा देने के लिए उचित प्रावधान बनाए गए हैं।
फैसला किस मामले पर आया?
यह फैसला एक मुस्लिम महिला की याचिका पर आधारित था, जिसमें उसने अपने पूर्व पति से शादी के समय मिला सारा सामान और रकम वापस दिलाने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसके पूर्व पति को आदेश दिया कि वह महिला के बैंक खाते में कुल 17 लाख 67 हजार 980 रुपए जमा करे। यह रकम मेहर, दहेज, 30 तोला सोना, और अन्य घरेलू सामान—जैसे टीवी, फ्रिज, स्टेबलाइजर, शोकेस, डाइनिंग सेट और बॉक्स बेड के कुल मूल्य को जोड़कर तय की गई है।
6 हफ्तों की समयसीमा तय
कोर्ट ने साफ निर्देश दिया कि यह पूरी राशि 6 हफ्तों के भीतर महिला को दी जानी चाहिए। साथ ही, पति को भुगतान का प्रमाण भी जमा करना होगा। यदि वह निर्धारित समय में भुगतान नहीं करता है, तो उसे इस राशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी देना पड़ेगा।
कलकत्ता हाई कोर्ट की आलोचना
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट के 2022 के फैसले को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने महिला को पूरी राशि देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने कानून के सामाजिक न्याय के उद्देश्य को नजरअंदाज किया और शादी के रजिस्टर में दर्ज कुछ अस्पष्ट जानकारियों पर अत्यधिक भरोसा किया।






