नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। आजाद भारत में पहली एक शब्द का जन्म होता है। उस शब्द को नाम दिया जाता है ‘भगवा आतंक’। नाम आया तो पुलिस की खाली चार्जशीट में हिन्दू आतंकवादियों के नाम चाहिए। सरकार का हुक्म आया। हरहाल में ‘भगवा आतंक’ की थ्योरी को फिट करो। जो पुलिस का अफसर इस ऑपरेशन को सक्सेसफुल बनाएगा, उसे प्रोमोशन के साथ आवार्ड मिलेगा। हुक्म था और बदले में इनाम। ऐसे में पुलिसवालों ने हाथ-पांच मारने शुरू किए। तभी महाराष्ट्र के मालेगांव में जबरदस्त बम धमाके होते हैं, जिसकी चपेट में आने से 6 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है और 100 से ज्यादा निर्दोष नागरिक घायल हो जाते हैं। पुलिस को मौका मिला और उसने कलम के जरिए ‘भगवा आतंक’ की थ्योरी को अपनी चार्जशीट में फिट कर दिया। मुकदमे दर्ज किए गए और महिला संत, सेना के कर्नल समेत 11 से ज्यादा लोगों को हिन्दू आतंकी घोषित कर पुलिस उन्हें अरेस्ट कर जेल भेज दिया। 17 साल तक मुकदमा चला और आखिरकार भगवा आतंक की थ्योरी फेल साबित हुई। कोर्ट ने सभी आरोपियों को इस केस से बरी कर दिया।
‘भगवा आतंक’ नाम की थ्योरी का जन्म सन 2008 में हुआ था। उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी। मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन थी। ये वो दौर था जब जम्मू-कश्मीर से लेकर भारत के कई राज्यों में पाकिस्तानी आतंकी जिहाद के नाम आतंकी हमले कर रहे थे। बीजेपी, आरएसएस और शिवसैनिक आतंकी घटनाओं को लेकर केंद्र सरकार को घेर रही थी। तभी महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 में बम ब्लास्ट हुए। 6 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। बीजेपी के पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित समेत 11 लोगों को मालेगांव बम ब्लास्ट के आरोप में गिरफ्तार किया गया। साध्वी समेत सभी आरोपी जेल में भेजे गए। पुलिस ने साध्वी को थर्डडिग्री दी। उनके हाथ-पैर तक तोड़ दिए गए। खुद इस बात का खुलासा साध्वी ने किया। उन्होंने ये भी बताया कि सरकार के इशारे पर चंद पुलिस के अफसर मेरा एनकाउंटर करना चाहते थे। अगर उस वक्त बाला साहेब ने मेरा साथ नहीं दिया होता तो शायद आज मैं जिंदा नहीं होती।
17 साल तक कोर्ट में मुकदमा चला। गवाहों की गवाही हुई। पुलिसवालों के बयान दर्ज हुए। आखिरकार 31 जूलाई को इस मामले में एनआईए स्पेशल कोर्ट की तरफ से फैसला सुनाया गया। कोर्ट ने सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है। केस की मुख्य आरोपी भोपाल की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर थीं। साध्वी के अलावा इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत 7 आरोपी थे, जिन पर आतंकी साजिश, हत्या, धार्मिक उन्माद फैलाने के आरोप थे। ये ब्लास्ट 29 सितंबर 2008 को हुए थे। 30 सितंबर 2008 को मालेगांव के ही आजादनगर थाने में मामला दर्ज किया गया। यहां उस समय 307, 302, 326, 324, 427, 153-ए, 120बी, विस्फोटक अधिनियम और आर्म्स एक्ट में मामला दर्ज किया गया था। शुरुआत में इस मामले की जांच पुलिस की तरफ से की गई। बाद में पूरी जांच एनआईए को सौंप दी गई। इसमे सामने आया कि जो धमाका हुआ था वह एलएमएल फ्रीडम बाइक बाइक में हुआ था। इसी बाइक में ही बम को लगाया था। एनआईए की टीम बाइक के मालिक नाम खोज निकाला। यह गाड़ी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम थी। घटना के लगभग एक महीने बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के साथ 2 और लोगों को गिरफ्तार किया गया।
पूरे केस के ट्रायल के दौरान 300 से ज्यादा गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे, जो मुख्य मामले में गवाह थे वे कोर्ट में मुकर गए। इससे पहले 25 अप्रैल, 2017 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रज्ञा ठाकुर को ज़मानत दे दी थी। 21 सितंबर, 2017 को पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिली। केस की सुनवाई के दौरान प्रज्ञा ठाकुर ने कोर्ट में थीं। इस मौके पर उन्होंने कहा, मुझे 13 दिन तक टॉर्चर किया गया। इतना अपमान सहन किया। मेरे हाथ-पैर तोड़ दिए गए। एक सप्हात तक भोजन नहीं दिया गया। ये सब कांग्रेस के नेताओं के इशारे पर पुलिसवालों ने किया। साध्वी ने मैं सन्यासी जीवन जी रही थी, हमें आतंकवादी बना दिया गया। साध्वी ने कोर्ट से कहा, भगवा को कलंकित किया गया। कोर्ट के फैसले से खुशी हुई। कोर्ट ने मेरे दुख दर्द को समझा। ये केस मैंने नहीं जीता, ये भगवा की जीत हुई है। हिंदुत्व की विजय हुई। मेरा जीवन सार्थक हो गया.। उन्होंने कहा, जिन लोगों ने हिंदू आतंकवाद कहा, भगवा आतंकवाद कहा, उनको दंड मिलेगा। साध्वी के अलावा कर्नल पुरोहित भी बोले। उन्होंने कहा कि भगवा आतंक की थ्योरी के चलते सरकार ने मेरा कॅरियर बर्बाद कर दिया। जेल में रहा। अगर केस नहीं हुआ तो आज मैं सेना में बिग्रेडियर के पद पर तैनात होता।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मालेगांव ब्लास्ट मामले का फैसला निराशाजनक है। विस्फोट में छह नमाजी मारे गए और करीब 100 घायल हुए। उन्हें उनके धर्म की वजह से निशाना बनाया गया। जानबूझकर की गई खराब जांच/अभियोजन पक्ष ही बरी होने के लिए ज़िम्मेदार है। उन्होंने कहा कि विस्फोट के 17 साल बाद, अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। क्या मोदी और फडणवीस सरकारें इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगी। जिस तरह उन्होंने मुंबई ट्रेन विस्फोटों में आरोपियों को बरी करने पर रोक लगाने की मांग की थी?। क्या महाराष्ट्र के ‘धर्मनिरपेक्ष’ राजनीतिक दल जवाबदेही की मांग करेंगे?। उन 6 लोगों की हत्या किसने की। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, ‘दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। देश की आम जनभावना है कि जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है उन्हें सजा मिलनी चाहिए। कांग्रेस के नेताओं की तरफ से भी बयान आए। कांगेस के नेताओं का कहना है कि कोर्ट में सही तरकी से पैरवी नहीं की गई, जिसके कारण आरोपी रिहा कर दिए गए। वहीं मुस्लिम संगठनों की तरफ से कहा गया है कि एनआईए कोर्ट के फैसले के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और न्याय की गुहार लगाएंगे।
इस मामले पर शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे ने कहा कि भगवा आतंकवाद का नेरेटिव कांग्रेस ने गढ़ा। देश पर सालों से पाकिस्तान के जरिए हमले होते आए। उनको छिपाने और एक तबके को खुश करने का काम वोट बैंक की और गंदी राजनीति के लिए भगवा आतंकवाद गढ़ने का काम कांग्रेस ने किया। शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे ने कहा, ‘पी. चिदंबरम, जिन्होंने ’भगवा आतंकवाद’ का नैरेटिव गढ़ने का प्रयास किया था। उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी और बीजेपी के राज्यसभा सांसद बृजलाल से कहा, मुझे बहुत खुशी है कि कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा को इस मामले से बरी कर दिया गया है। न्यायालय को साधुवाद. यह सब कांग्रेस की साजिश थी और फर्जी तरीके से उन्हें फंसाया गया था। यह कांग्रेस के भगवा आतंकवाद का हिस्सा था। पूरे देश से सोनिया गांधी और उसे समय के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को माफी मांगनी चाहिए। कल ही गृह मंत्री ने सदन में कहा था कि कोई हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता है।