नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। उत्तर प्रदेश के बांदा की रहने वाली शहजादी के साथ ही यूएई में दो और भारतीयों को सजा-ए-मौत दी गई है। दोनों युवक केरल के रहने वाले हैं। दोनों को 28 फरवरी की सुबह दिल में गोली मारकर मौत की सजा दी गई। इनमें से एक का नाम मोहम्मद रिनाश और दूसरे का मुरलीधरन था। रिनाश पर एक यूएई नागरिक के कत्ल और मुरलीधरन पर एक भारतीय नागरिक के कत्ल का इल्जाम था।
केरल के युवकों को सजा-ए-मौत
यूएई में यूपी के बांदा की रहने वाली शहजादी खान को सजा-ए-मौत दे दी गई। शहजादी का शव 5 मार्च को दफना दिया गया। शहजादी के अलावा संयुक्त अरब अमीरातमें केरल के दो भारतीय नागरिकों को हत्या का दोषी ठहराया गया। जिसके बाद 28 फरवरी को दोनों युवकों को मृत्युदंड दिया गया। फायरिंग स्क्वायड की टीम के 5-5 सदस्यों ने दोनों युवकों के दिल में गोली मारी। इसके बाद मार्च मार्च का शहजादी के साथ एक युवक के शव को दफना दिया गया।
फुटबाल खिलाड़ी थी मुरलीधरन
यूएई में जिन्हें मौत की सजा दी गई है, उनमें से एक 43 वर्षीय पीवी मुरलीधरन कासरगोड चीमानी के रहने वाले थे। जबकि 24 वर्षीय अरंगिलोट्टू मुहम्मद रिनाश कन्नूर का परिवार थालास्सेरी में रहता है। मुरलीधरन के पिता केशवन ने मीडिया को बताया कि 14 फरवरी को बेटे की फोन कॉल आई थी। तब उसने बताया था कि उसे जल्द ही फांसी पर लटका दिया जाएगा। केशवन ने बताया कि मुरलीधरन की शादी नहीं हुई थी। वह यूएई में अल ऐन गए थे। वह वहां पर एक अरब नागरिक के घर में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करने गए थे। वह एक फुटबॉल खिलाड़ी भी थे और अल ऐन में एक स्थानीय फुटबॉल क्लब में सक्रिय थे।
मुरलीधरन को इस आरोपी में मौत की सजा
मुरलीधरन के खिलाफ आरोप था कि उसने केरल के एक अन्य मूल निवासी की हत्या कर दी थी और 2009 में अपने शव को रेगिस्तान में छिपा दिया था। तब से वह जेल में था। केशवन ने कहा, अपराध में अन्य लोग भी शामिल थे, लेकिन मेरे बेटे ने केवल अपराध स्वीकार किया। जब मैं यूएई में था, तो मैं शुक्रवार को जेल में उससे मिलने जाता था। उसे बाहर आने की उम्मीद थी। कई मौकों पर हम मलप्पुरम में पीड़ित परिवार से मिले थे। केशवन ने कहा कि वे उसे माफ करने के लिए तैयार नहीं थे।
मुहम्मद रिनाश को भी सजा-ए-मौत
मुहम्मद रिनाश ने भी अपने परिवार को फोन किया था। वह रो रहा था और मां असहाय थी। मुहम्मद रिनाश की मां ने राज्य सरकार और केंद्र से याचिका दायर की थी और अपने बेटे को बचाने के लिए धार्मिक नेताओं (मौलानाओं) के हस्तक्षेप की मांग की थी। लेकिन लैला के पास संयुक्त अरब अमीरात में वकील की व्यवस्था करने के लिए पैसे नहीं थे। रिनाश 2021 में एक ट्रैवल एजेंसी में नौकरी मिलने के बाद यूएई गए थे। वहां पहुंचने के महीनों बाद, वह एक विकलांग अरब नागरिक की हत्या के आरोप में उन्हें अरेस्ट कर जेल भेजा गया था। रिनाश ने मृतक के परिवार से माफी मांगी प रवह तैयार नहीं हुए।
5 मार्च को दफनाए गए शव
5 मार्च को अबू धाबी के उस कब्रिस्तान में शहजादी के साथ-साथ मोहम्मद रिनाश को भी दफनाया गया। शहजादी की कब्र के ठीक बराबर में एक दूसरी कब्र है। शहजादी के साथ-साथ लगभग ठीक उसी वक्त हिंदुस्तान के मोहम्मद रिनाश को भी उस दूसरी कब्र में दफना दिया गया था। शहजादी और मोहम्मद रिनाश के अलावा एक तीसरे भारतीय मुरलीधरन को भी रिनाश के साथ-साथ 28 फरवरी को मौत की सजा दी गई थी। लेकिन मुरलीधरन के परिवार से कोई भी अबू धाबी नहीं पहुंचा.। इसीलिए अभी तक मुरलीधरन का अंतिम संस्कार नहीं किया जा सका।
तीनों ने एक दिन और एक ही समय पर किया फोन
शहजादी, रिनाश और मुरलीधरन. तीनों के ही परिवारवालों का कहना है कि इनकी सजा-ए-मौत रोकने के लिए भारत सरकार समेत किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। यहां तक की उन्हें सही-सही जानकारी भी नहीं दी गई। शहजादी की मौत की जानकारी तो उसके घरवालों को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली थी। असल में शहजादी, रिनाश और मुरलीधरन. तीनों ने ही एक ही दिन, एक ही तारीख और एक ही वक्त पर, यानि 14 फरवरी को अपने अपने घर आखिरी बार फोन किया था। इसके बाद 15 फरवरी की सुबह शहजादी को और 28 फरवरी की सुबह रिनाश और मुरलीधनर को मौत की सजा दे दी गई थी।
तीनों के दिल में मारी गई गोली
शहजादी को अबू धाबी के अल बाथवा जेल में 15 फरवरी की सुबह ठीक साढ़े पांच बजे फायरिंग स्क्वाय़ड ने दिल पर गोली मारकर सजा-ए-मौत दी थी। फायरिंग स्क्वाय़ड में कुल 5 लोग थे। शहजादी को एक खास किस्म का कपड़ा पहनाकर एक पोल से बांध दिया गया था। उसके दोनों हाथ पीछे की तरफ बंधे थे। दिल के ठीक ऊपर एक कपड़े का टुकड़ा लगाया गया था। ताकि गोली चलाने वाले के लिए दिल का निशाना लेकर गोली चलाना आसान हो। ठीक शहजादी की तरह ही 13 दिन बाद 28 फरवरी की सुबह अल-आइन जेल में रिनाश और मुरलीधरन को भी फायरिंग स्क्वाय़ड ने इसी तरह दिल पर गोली मारकर मौत की सजा दी थी।
54 भारतीय नागरिकों को सजा-ए-मौत
शहजादी के साथ ही केरल के दो युवकों को सजा-ए-मौत तो दे दी गई, लेकिन अभी भी बहुत से भारतीय विदेशी जेलों में मौत की सजा का इंतजार कर रहे हैं। खुद सरकार ने माना कि यूएई और सऊदी अरब, कुवैत, कतर और यमन में कुल मिलाकर 54 भारतीय नागरिकों को सजा-ए-मौत सुनाई जा चुकी। सरकारी डेटा के मुताबिक, फिलहाल दुनियाभर की जेलों में दस हजार से ज्यादा भारतीय कैद हैं। इसमें अपराधी साबित हो चुके लोगों के साथ वे भी हैं, जिनका ट्रायल चल रहा है। वैसे ये संख्या ज्यादा भी हो सकती है क्योंकि कई देश ऐसे भी हैं, जो प्राइवेसी का हवाला देते हुए ये डेटा शेयर नहीं करते।
सऊदी में सबसे ज्यादा 2,633 कैदी
सऊदी में सबसे ज्यादा 2,633 कैदी हैं। इसके बाद 2,518 कैदियों के साथ यूएई आता है। इसके बाद सबसे ज्यादा भारतीय पड़ोसी देशों की जेलों में हैं। वेस्टर्न देशों में भी भारतीय कैदी हैं, लेकिन संख्या काफी कम है। फिलहाल यूएई में 29 और सऊदी में 12 भारतीय डेथ रो में हैं। वहीं 3 कुवैत, और एक-एक कतर और यमन में हैं। भारत के पड़ोसी देश, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश के अलावा अन्य देशों में भी भारतीय यहां की जेलों में बंद हैं। वहीं अमेरिका के अलावा वेस्टर्न कंट्री के नागरिकों को गल्फ कंट्री में मौत की सजा को माफ कर दिया जाता है।
क्या है ब्लड मनी
यूएई में हत्या, आतंकवाद, बलात्कार, ड्रग तस्करी, देशद्रोह, ईश निंदा जैसे अपराधों में मृत्यु दंड देने का प्रावधान है। कोई भी मामला पहले निचली अदालत में जाता है और वहां सबूतों की जांच के बाद दोषी दंड सुनाया जाता है। इसके बाद आरोपी कोर्ट ऑफ कैसेशन में अपील कर सकता है। वहीं इस्लामिक कानून के मुताबिक, पीड़ित परिवार तय कर सकते हैं कि क्रिमिनल को क्या सजा दी जाए। उनके पास हक है कि वे हत्यारे को पैसे लेकर माफ कर सकें। इसे ब्लड मनी भी कहते हैं। लेकिन अगर परिवार मौत ही चाहे तो कोर्ट वही करती है। यहां तक कि अगर पीड़ित फैमिली मामला कोर्ट पर छोड़ दे तो भी फांसी हो सकती है।