Waqf Amendment Bill: वक्फ संशोधन विधेयक पर संसद में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में लंबी चर्चा के बाद केंद्र सरकार ने 2 अप्रैल को इसे लोकसभा में पेश करने का फैसला किया है। हालांकि, विपक्ष ने 12 घंटे की चर्चा की मांग की है, जबकि सरकार ने 8 घंटे का समय निर्धारित किया है। भाजपा ने अपने सांसदों को व्हिप जारी कर दिया है, जिससे सदन में उनकी मौजूदगी सुनिश्चित हो सके। इस Waqf Amendment Bill को लेकर एनडीए के सहयोगी दलों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। टीडीपी ने समर्थन की घोषणा कर दी है, जबकि जेडीयू ने अपनी आपत्तियां जाहिर की हैं। विपक्ष इस विधेयक को लेकर हमलावर है और इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ बता रहा है। अब देखना होगा कि संसद में यह विधेयक पारित होगा या सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
एनडीए सहयोगियों की भूमिका अहम
यह Waqf Amendment Bill 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन विपक्ष के विरोध के चलते इसे JPC को भेज दिया गया था। समिति ने 44 संशोधन सुझाए, जिनमें से 14 को स्वीकार किया गया। कैबिनेट ने पहले ही संशोधित बिल को मंजूरी दे दी है। हालांकि, इसे पास कराने के लिए सरकार को अपने सहयोगी दलों के समर्थन की जरूरत होगी। जेडीयू ने तीन सुझाव दिए हैं, जिनमें वक्फ संपत्तियों की पंजीकरण प्रक्रिया को लेकर प्रमुख बदलाव की मांग की गई है। दूसरी ओर, टीडीपी ने विधेयक के समर्थन की घोषणा कर दी है, जिससे सरकार की स्थिति मजबूत हुई है।
संसद में संख्याबल का गणित
लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है, जबकि एनडीए के पास 293 सांसद हैं। भाजपा के 240 सांसद हैं, जबकि सहयोगी दलों में लोजपा (आर), हिंदुस्तान आवामी मोर्चा (HAM), और आरपीआई (S) ने समर्थन का ऐलान किया है। राज्यसभा में कुल 236 सदस्य हैं और बहुमत के लिए 119 सांसदों की जरूरत है। एनडीए के पास 121 सांसद हैं, जो बहुमत से थोड़ा ही अधिक है। विपक्ष की ओर से विधेयक को लेकर विरोध जारी है, लेकिन संख्याबल के लिहाज से सरकार इसे पारित कराने में सफल हो सकती है।
विधेयक का उद्देश्य और विवाद
यह विधेयक Waqf Amendment Bill संपत्तियों के डिजिटलीकरण, पारदर्शिता बढ़ाने और अवैध कब्जों को रोकने के लिए लाया गया है। 1995 के वक्फ अधिनियम की आलोचना लंबे समय से होती रही है, क्योंकि इसमें प्रबंधन और भ्रष्टाचार से जुड़े कई सवाल खड़े हुए हैं। विपक्ष का तर्क है कि यह विधेयक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सीमित करेगा, जबकि सरकार इसे सुधारात्मक कदम बता रही है। अब देखना होगा कि 2 अप्रैल को जब यह विधेयक लोकसभा में पेश होगा, तो क्या यह आसानी से पारित हो जाएगा या फिर सरकार को और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।