Supreme Court Verdict on Waqf Amendment Act: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की पूरी वैधता पर कोई रोक नहीं लगेगी। इसका मतलब यह है कि कानून लागू रहेगा, लेकिन इसकी कुछ धाराओं पर रोक लगाई गई है और कोर्ट ने शर्तें तय की हैं ताकि उनका पालन हो। कोर्ट ने साफ कहा कि किसी कानून की संवैधानिकता पर तभी सवाल उठ सकता है जब मामला “रेयरेस्ट ऑफ द रेयर” यानी बहुत ही विशेष और गंभीर हो।
दो धाराओं पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने खास तौर पर दो धाराओं पर रोक लगाई। इनमें अनुच्छेद 374 से जुड़ा प्रावधान और राजस्व रिकॉर्ड से संबंधित धारा शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि बोर्ड में तीन से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए और बोर्ड का CEO मुस्लिम होना चाहिए। साथ ही कलेक्टर को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह व्यक्तिगत नागरिकों के अधिकारों पर फैसला करे। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना शक्तियों के पृथक्करण यानी सेपरेशन ऑफ पावर्स के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
कलेक्टर के अधिकारों पर भी रोक
कलेक्टर को दिए गए अधिकारों पर रोक लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि जब तक ट्रिब्यूनल का फैसला नहीं आ जाता, तब तक किसी तीसरे पक्ष के अधिकार किसी पक्ष के खिलाफ नहीं बनाए जा सकते। इससे यह सुनिश्चित होगा कि नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें और कानून का दुरुपयोग न हो।
याचिका में उठाए गए थे कौन से मुद्दे
याचिकाकर्ताओं ने वक्फ कानून में तीन मुख्य मुद्दे उठाकर इसकी वैधता को चुनौती दी थी। उन्होंने स्टेट वक्फ बोर्ड और सेंट्रल वक्फ काउंसिल की संरचना पर सवाल उठाते हुए कहा कि बोर्ड में केवल मुसलमानों को ही शामिल किया जाना चाहिए। सुनवाई तीन दिनों तक चली और 22 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया। जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने अब यह फैसला दिया है।
सरकार का पक्ष और राष्ट्रपति की मंजूरी
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने यह संशोधन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद लागू किया था। सरकार का कहना है कि इससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता आएगी, जबकि याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इससे धार्मिक आधार पर भेदभाव बढ़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल कानून पर रोक नहीं लगाई, लेकिन नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ अहम धाराओं पर रोक लगाकर संतुलन बनाने की कोशिश की है।
सुरक्षा से लेकर संविधान तक की बहस
यह मामला सिर्फ एक कानून का विवाद नहीं है, बल्कि यह संविधान, नागरिक अधिकारों और धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी कानून को चुनौती देने के लिए गंभीर परिस्थितियां होनी चाहिए। ऐसे में इस फैसले से कानून लागू भी रहेगा और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का प्रयास भी होगा।