Nithari Case: नोएडा के बहुचर्चित निठारी हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुरेंद्र कोली की दोषमुक्ति पर मुहर लगा दी। इससे इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को बल मिला जिसमें कोली को बरी कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने CBI, उत्तर प्रदेश सरकार और एक पीड़िता के पिता की ओर से दायर 14 अपीलों को खारिज कर दिया। पीड़ित परिवारों की आंखों में सवाल हैं—अगर कोली दोषी नहीं था तो फिर निठारी में मासूम बच्चों की हत्या किसने की? यह फैसला उन हजारों माता-पिता के लिए गहरा झटका है, जिनकी उम्मीदें न्यायपालिका पर टिकी थीं। अब जब दोषी अदालत से छूट गए हैं, तो सवाल उठता है कि बच्चों का हत्यारा कौन है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हाई कोर्ट के फैसले में कोई गंभीर त्रुटि नहीं
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की गैरमौजूदगी में जस्टिस बीआर गवाई की अध्यक्षता वाली बेंच ने साफ कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में किसी प्रकार की कोई गंभीर कानूनी त्रुटि नहीं है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत आरोपी की निशानदेही के बिना किसी भी वस्तु की बरामदगी को साक्ष्य नहीं माना जा सकता। सुरेंद्र कोली के बयान के बिना जिन खोपड़ियों व अन्य वस्तुओं की बरामदगी खुले नाले से हुई थी, वे कोर्ट में स्वीकार्य नहीं हैं।
पीड़ितों की चीख—”अगर कोली निर्दोष था, तो हमारा कातिल कौन?”
झब्बूलाल, जिनकी 10 साल की बेटी ज्योति इस हत्याकांड की शिकार बनी थी, ने कहा कि अगर कोली निर्दोष है तो फिर पुलिस और CBI पर कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने उन्हें वर्षों तक गुमराह किया। उन्होंने कहा, “अब हमें जमीन के भगवान नहीं, ऊपरवाले से ही उम्मीद है।” यह सिर्फ एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि उन सभी 19 मामलों से जुड़े परिवारों की सामूहिक वेदना है, जो आज भी यह जानना चाहते हैं कि उनके बच्चों का दोषी आखिर कौन था?
हाई कोर्ट ने उठाए थे जांच पर गंभीर सवाल
2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ—जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र और जस्टिस एस. एच. ए. रिजवी—ने सीबीआई जांच की गंभीर खामियों की ओर इशारा करते हुए कहा था कि एजेंसी ने संभावित मानव अंग तस्करी जैसे पहलुओं की जांच ही नहीं की। कोर्ट ने माना था कि आरोप संदेह से परे साबित नहीं हो सके, इसलिए दोनों आरोपियों को बरी किया गया।
Nithari केस का इतिहास और फैसले
Nithari कांड दिसंबर 2006 में सामने आया था, जब नोएडा के सेक्टर-31 स्थित एक कोठी के पीछे नाले से बच्चों की खोपड़ियां और हड्डियां बरामद हुई थीं। कोठी मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसका नौकर सुरेंद्र कोली गिरफ्तार हुए। गाजियाबाद स्थित CBI कोर्ट में कुल 19 मामलों में से 16 में सजा सुनाई गई, जिनमें कोली को 13 बार फांसी की सजा हुई।
कुछ प्रमुख फैसले इस प्रकार रहे:
- 13 फरवरी 2009: रिंपा हलदर हत्याकांड—कोली को फांसी
- 12 मई 2010: आरती केस—कोली को फांसी
- 16 दिसंबर 2016: फिर से फांसी
- 8 दिसंबर 2017: फिर से मौत की सजा
- 26 मार्च 2021: पहली बार बरी
- 22 जनवरी 2022: फिर बरी
- 19 मई 2022: अंतिम बार फिर मौत की सजा
अब अगला कदम क्या?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद CBI के पास अब कोई कानूनी रास्ता नहीं बचा है। सवाल यह भी है कि क्या अब केस दोबारा खोला जाएगा? क्या नए सिरे से जांच होगी? या निठारी हत्याकांड भी उन मामलों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा, जिनमें कभी सच्चाई सामने नहीं आ सकी?
Nithari पीड़ित परिवारों की ओर से अब सरकार से एक नई जांच की मांग की जा रही है, ताकि असली गुनहगार को सजा मिल सके और न्याय की लौ पूरी तरह न बुझे।