संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से 19 दिसंबर 2025 तक चलने जा रहा है, और इससे पहले राजनीतिक गलियारों में चर्चा गहमागहमी का विषय बनी हुई है कि इस सत्र में किन मुद्दों पर सबसे ज्यादा हंगामा मचेगा। संसद सत्र जहां नीतिगत फैसलों और विधेयकों को पारित करने का मंच होता है, वहीं यह विपक्ष द्वारा सरकार की आलोचना, बहस और प्रदर्शन का भी अवसर बन जाता है।
1. चुनाव और मतदाता सूची विवाद
सबसे पहला और प्रमुख मुद्दा इस बार SIR (सर्वेश्वरियन इंडेक्स रेवोल्यूशन) विवाद और मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी है। पिछले कुछ महीनों में विभिन्न राज्यों के चुनावों को लेकर मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर, वोटर्स की मर्जी के खिलाफ नाम काटे जाने और फर्जी नामों के जोड़ने के आरोप लगे हैं। विपक्ष इस पर सरकार और चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाएगा, संभव है कि ये मुद्दा संसद में तीखी बहस और हंगामे का रूप ले।
2. आर्थिक विवाद और बजट समीक्षा
उत्तर भारतीय राज्यों में हाल ही में हुई चुनावी लड़ाईयों के बीच आर्थिक नीतियों और बजट के कार्यान्वयन का भी दुनियाभर में विश्लेषण हो रहा है। विपक्ष सरकार के आर्थिक प्रबंधन, बेरोजगारी, महंगाई और कृषि संकट जैसी समस्याओं को उठाएगा। वित्त मंत्री के पहले के बजट और आगामी बजट को लेकर भी सवाल-जवाब और आरोप-प्रत्यारोप के दौर की संभावना है।
3. सामाजिक और धार्मिक मुद्दे
संसद में समय-समय पर सामाजिक सद्भाव और धार्मिक प्राथमिकताओं को लेकर विवाद होते रहे हैं। इस सत्र में भी देश के धार्मिक मुद्दे, संवैधानिक अधिकारों पर उठने वाले प्रश्न और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे विषय गर्म हो सकते हैं। कोरोना महामारी के प्रभावों, स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और सामाजिक कल्याण योजनाओं को लेकर भी राजनीतिक बहस हो सकती है।
4. राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति
अंतरराष्ट्रीय मसलों पर सरकार की विदेश नीति, सुरक्षा और सीमा विवाद जैसे विषय सदन की चर्चा में रहेंगे। खासतौर पर पड़ोसी देशों के साथ संबंधों और आतंकवाद से निपटने के उपायों को लेकर राजनीतिक बहस जारी रहेगी। सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले सुरक्षा बलों के बजट और नीतियों की समीक्षा भी हंगामा उत्पन्न कर सकती है।
जनता को सार्थक चर्चा की उम्मीद
शीतकालीन सत्र सदन के लिए चुनौतीपूर्ण समय होगा क्योंकि विपक्ष कई आगामी चुनावों में सरकार की छवि को कमजोर करने के लिए इसे एक बड़ा मंच बनाएगा। सरकार को रणनीतिक रूप से अपने अभियानों और नीतियों को प्रस्तुत करना होगा, जबकि विपक्ष को अपनी आलोचनात्मक भूमिका निभानी होगी। जनता की निगाहें इस सत्र पर टिकी हैं कि इसमें लोकतंत्र की परिपाटी का सम्मान कैसे होगा और देश के मुद्दों पर सार्थक चर्चा होगी या नहीं।





