Bihar Elections 2025: बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल, भावुक और ज़मीनी रही है, लेकिन Bihar विधानसभा चुनाव 2025 की दहलीज़ पर खड़ा यह राज्य एक अभूतपूर्व बदलाव का गवाह बन रहा है। सोशल मीडिया के ‘रील्स’ की दुनिया से निकले चमकते सितारे अब सीधे चुनावी रणभूमि में उतर आए हैं, और उन्होंने दशकों पुरानी राजनीतिक संरचनाओं को चुनौती देना शुरू कर दिया है। यह सिर्फ ग्लैमर का समावेश नहीं है; यह राजनीति का पूर्ण डिजिटलीकरण है, जहां वर्चुअल प्रसिद्धि अब वास्तविक वोटों में तब्दील हो रही है।
पवन सिंह, खेसारी लाल यादव, रितेश पांडे और मैथिली ठाकुर जैसे नाम, जो कभी 15-सेकंड की रील में हल्के-फुल्के झगड़ों या रोमांस के लिए जाने जाते थे, आज NDA, RJD और जन सुराज के झंडे तले एक-दूसरे पर राजनीतिक तलवारें भांज रहे हैं। यह बदलाव न केवल पार्टियों की रणनीति बदल रहा है, बल्कि बिहार की राजनीति की रीढ़—ज़मीनी कार्यकर्ता—को भी झकझोर रहा है। यह रिपोर्ट रील्स से रियल पॉलिटिक्स तक की इस यात्रा और इसके पीछे छिपी ग्रासरूट्स कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के दर्द को रेखांकित करती है।
रील्स की नौटंकी से सियासत की जंग: डिजिटल राइवलरी का चुनावी ध्रुवीकरण
भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार्स के बीच की ‘स्टार वॉर’ अब बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर उतर आई है, जिससे राज्य की राजनीति में एक नया ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है।
खेला होबे! PK का बड़ा दांव: पहली लिस्ट में ‘भोजपुरी पावर’ और ‘किन्नर शक्ति’, करगहर से रितेश पांडे मैदान में!
पावरस्टार बनाम हिट मशीन- पुरानी रंजिश, नई रणभूमि
रील्स पर अपनी मसल्स और रोमांटिक गानों से वायरल होने वाले ‘पावरस्टार’ पवन सिंह अब NDA (BJP) के स्टार प्रचारक बन चुके हैं। उनकी राजनीतिक एंट्री ने न सिर्फ उनके राजपूत वोट आधार को NDA की तरफ मजबूत किया है, बल्कि उनके विरोधियों को भी सतर्क कर दिया है। उनकी पुरानी रील्स और व्यक्तिगत विवाद (जैसे उनकी पत्नी ज्योति सिंह से विवाद, जिसने क्षत्रिय समाज का ध्यान खींचा) अब राजनीतिक नैरेटिव बन गए हैं।
दूसरी तरफ, रील्स के ‘हिट मशीन’ खेसारी लाल यादव RJD के साथ हैं। उनकी पत्नी चंदा देवी को छपरा या मांझी सीट से टिकट मिलने की चर्चा है। खेसारी की विशाल फैन फॉलोइंग RJD के यादव वोट बैंक को और मज़बूती देने की क्षमता रखती है। यह पुरानी डिजिटल राइवलरी अब चुनावों में जाति और क्षेत्रीय समीकरणों को साधने का जरिया बन गई है। दोनों के फैंस सोशल मीडिया पर #BiharStarWar ट्रेंड करा रहे हैं, जहां ‘रील्स में लड़ते थे, अब वोटों के लिए लड़ेंगे’ जैसी पोस्ट आम हैं। यह मनोरंजन नहीं है; यह क्षेत्रीय सिनेमाई प्रभाव का सीधा-सीधा चुनावी रूपांतरण है।
मैथिली और मगही की आवाज़: नए चेहरे, नया समीकरण
सिर्फ भोजपुरी ही नहीं, मैथिली लोकगायिका मैथिली ठाकुर (BJP से बेनीपट्टी/अलीनगर की दौड़ में) और जन सुराज के रितेश पांडे व मगही के सुनील छैला बिहारी भी मैदान में हैं। इन कलाकारों ने युवाओं को आकर्षित किया है और अति पिछड़ों व मिथिलांचल में नई पीढ़ी को मोबिलाइज करने में प्रशांत किशोर की जन सुराज और BJP की मदद की है। उनकी भक्ति या लोकल इश्यूज वाली रील्स अब मेनिफेस्टो की तरह काम कर रही हैं। कलाकार अब एक-दूसरे को ‘ट्रोल’ करने के बजाय, राजनीतिक मंचों से ‘डिफेम’ करने पर उतर आए हैं, जिससे चुनावी माहौल और भी तीखा हो गया है।
जमीनी कार्यकर्ता- मेहनत हमारी, क्रेडिट आपका
इस ग्लैमरस बदलाव का सबसे बड़ा शिकार Bihar का ग्रासरूट्स कार्यकर्ता है—वह सिपाही जो दशकों से पार्टी का झंडा थामे, गांव-गांव की धूल फांकता आया है। बिहार के एक चिंतक के रूप में, मैं इसे राज्य की राजनीतिक संस्कृति के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में देखता हूँ।
कार्यकर्ता जो जीवन भर लालू-तेजस्वी या नीतीश-मोदी के लिए जेल गए, सभाओं में भीड़ जुटाई और वोटर लिस्ट बनाई, आज साइडलाइन महसूस कर रहे हैं। वे शिकायत कर रहे हैं कि उनकी मेहनत का फल बड़े नामों के हाथ जा रहा है और वे सिर्फ झंडा लहराने के लिए रह गए हैं।
- उपेक्षा का दर्द: पार्टियां अब डिजिटल इन्फ्लुएंसर्स को प्राथमिकता दे रही हैं, क्योंकि उनकी रील्स की पहुंच और 5-7% वोट शिफ्ट करने की क्षमता कार्यकर्ताओं के बीस साल के संघर्ष पर भारी पड़ रही है।
- उदाहरण: RJD में खेसारी की पत्नी को टिकट मिलने की चर्चा सारण के उन कार्यकर्ताओं को नाराज कर रही है जो लालू परिवार के लिए वफादार रहे हैं। BJP में पवन सिंह को प्रचारक बनाए जाने से आरा के स्थानीय नेता मानते हैं कि उनकी मेहनत का श्रेय एक ‘आउटसाइडर’ स्टार को मिल रहा है।
- बदलती रणनीति: डिजिटल कैंपेनिंग में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं, जहां रील्स स्टार्स की पोस्ट वायरल होती हैं। ग्रासरूट्स मीटिंग्स अब सेकेंडरी हो गई हैं। एक पूर्व RJD कार्यकर्ता का X पर लिखा दर्द बिहार के हर दल के कार्यकर्ता की कहानी है: “हम जीवन भर पसीना बहाते हैं, लेकिन टिकट बड़े स्टार को। हम बस झंडा लहराते रह जाते हैं।” यह उपेक्षा न सिर्फ कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ रही है, बल्कि पार्टी के प्रति उनकी लॉयल्टी को भी कमजोर कर सकती है।
चमक या छाया?
Bihar चुनाव 2025 में रील्स स्टार्स की एंट्री ने राजनीति को एक नई ऊर्जा और ग्लैमर दिया है, लेकिन इसने ज़मीनी हकीकत को धुंधला कर दिया है। पवन-खेसारी की राइवलरी से वोट भले ही पोलराइज हो रहे हों, लेकिन कार्यकर्ताओं का मोरल डाउन हो रहा है।
राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि सेलिब्रिटी प्रचार के लिए हैं, लेकिन शासन और संगठन के लिए ज़मीनी कार्यकर्ता आवश्यक हैं। यदि यह असंतुलन जारी रहा, तो Bihar की राजनीति में स्टार वार तो हम जीत जाएंगे, लेकिन आम आदमी की जंग हार जाएंगे।