नई दिल्ली: भारत के संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता (secularism) और समाजवाद (socialism) शब्द को हटाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. सुप्रीम कोर्ट 23 सितंबर को याचिका पर सुनवाई करेगा. इस मामले में नई याचिका के साथ ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इस संबंध में पहले से दायर अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई करेगी.
दरअसल, BJP नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में यह नई याचिका दायर की गई है. उन्होंने अपनी याचिका में बताया, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में इन दो शब्दों को वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में जोड़ा गया था.
सुब्रमण्यम केशवानंद भारती मामले का जिक्र करते हुए कहा, कि प्रस्तावना संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है, लिहाजा सरकार उसमें बदलाव नहीं कर सकती. सुब्रमण्यम स्वामी से पहले वकील विष्णु शंकर जैन ने भी साल 2020 में इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
वकील विष्णु शंकर जैन ने संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन के माध्यम से जोड़े गए धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटाने के लिए जुलाई, 2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने अपनी याचिका में बताया था कि ‘सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म’ राजनीतिक विचार हैं. ये नागरिकों पर थोपे जा रहे हैं.
याचिकाकर्ता जैन ने तर्क दिया था कि 1976 में किया गया संशोधन संवैधानिक सिद्धांतों के साथ-साथ भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सामग्री के खिलाफ था. यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा और अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन को देखते हुए अवैध था.
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