संजय सरोज, जिन पर आतंकी फंडिंग के आरोप हैं, उन्हें भाजपा(BJP) के मंच पर जगह मिली है। यह घटना उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से संबंधित है। इस खबर के अनुसार, संजय सरोज का भाजपा में शामिल होना राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।
क्या इनको भी मिलेगा टिकट?
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अपनी उम्मीदवार सूची घोषित की है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से और गृह मंत्री अमित शाह गुजरात के गांधीनगर से चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, संजय सरोज के नाम का उल्लेख इस सूची में नहीं है।
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक दलों में विवादित व्यक्तियों का शामिल होना एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर समाज के हर वर्ग में विचार-विमर्श होना चाहिए। यह न केवल राजनीतिक पार्टियों की छवि पर प्रभाव डालता है, बल्कि जनता के बीच उनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है।
क्या कहा विपक्ष ने?
एक और गुंडा भाजपा की वाशिंग मशीन में साफ़ होता हुआ…मेरी समझ में नहीं आता कि जब “मोदी जीत की गारंटी” हैं तो ऐसे गुंडे मवालियों का साथ क्यूँ ज़रूरी है?? प्रदेश का पार्टी नेतृत्व भी चुप बैठा रहता है।
क्यों गए थे जेल?
संजय सरोज को UP ATS ने 26 मार्च 2018 को लश्कर-ए-तैयबा के लिए टेरर फंडिंग के आरोप में 10 लोगों के साथ जेल भेजा था।
तत्कालीन IG ATS और अब भाजपा नेता और मंत्री असीमअरुण ने दावा किया था कि- यह नेटवर्क आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के लिए फाइनेंसिंग का काम कर रहा था।
क्या राजनीती में ऐसा होना चाहिए?
संजय सरोज को भाजपा के मंच पर जगह मिलना चिंताजनक है, खासकर जब उन पर आतंकी फंडिंग के गंभीर आरोप हैं। यह घटना राजनीतिक दलों की नैतिकता और चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाती है। विपक्ष इसे भाजपा की नीतियों और उसके नेतृत्व की विश्वसनीयता पर संदेह के रूप में देख सकता है।¹
इस तरह की घटनाएं जनता के बीच राजनीतिक दलों की छवि को प्रभावित कर सकती हैं और विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बना सकता है। विपक्ष यह भी उठा सकता है कि ऐसे व्यक्तियों का समर्थन करना और उन्हें मंच प्रदान करना देश की सुरक्षा और लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है।