आर्थिक जनक के पुरोधा ने दुनिया को कहा अलविदा, जानें डॉ मनमोहन सिंह ने कैसे बदली देश की दशा-दिशा

Former PM Manmohan Singh Passed Away: डॉ. मनमोहन सिंह का निधन, अर्थशास्त्री से प्रधानमंत्री तक का कुछ ऐसा रहा सफर, डॉ. सिंह ने देश को आर्थिक ताकत बनाने के लिए की जीतोड़ मेहनत।

नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। Former PM Manmohan Singh Passed Away: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। 92 साल की उम्र में उनका नई दिल्ली स्थित एम्स में बीमारी के चलते निधन हो गया। डॉक्टर मनमोहन सिंह के निधन की खबर से देश में शोक की लहर दौड़ गई। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा राजनीति, कारोबार के अलावा दूसरी अन्य हस्तियों ने शोक व्यक्ति किया। एक अर्थशास्त्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होकर उन्होंने देश की सेवा की थी। डॉक्टर मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक के गवर्नर जैसे पद पर रहे। केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने आर्थिक संकट से जूझते देश को नई आर्थिक नीति का उपहार दिया। जब देश के प्रधानमंत्री बने तब उदारवादी आर्थिक नीति को बढ़ावा देकर देश की अर्थव्यवस्था को नई उड़ान दी।

 पाकिस्तान में हुआ था डॉ. सिंह का जन्म

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब प्रांत के चकवाल जिले के गाह गांव में हुआ था। डॉक्टर मनमोहन सिंह के पिता का नाम गुरमुख सिंह और मां मा नाम अमृत कौर था। जब वह बहुत छोटे थे, तब उनकी मां का निधन हो गया था। डॉक्टर मनमोहन सिंह का पालन-पोषण उनकी नानी ने किया। जब देश आजाद हुआ और दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान के देश का जन्म हुआ तब 1947 में डॉक्टर सिंह का परिवार भारत आ गया और हल्द्वानी में बस गया। 1948 में वे अमृतसर चले गए, जहां उन्होंने हिंदू कॉलेज, अमृतसर में अध्ययन किया। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, फिर होशियारपुर में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और 1952 और 1954 में क्रमशः स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की।

बतौर प्रोफेसर अर्थ का दिया ज्ञान

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपना अर्थशास्त्र ट्रिपोस पूरा किया। वो सेंट जॉन्स कॉलेज के सदस्य थे। डी फिल. पूरा करने के बाद सिंह भारत लौट आए। वे 1957 से 1959 तक पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के वरिष्ठ व्याख्याता रहे। साल 1959 और 1963 के दौरान, उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में रीडर के रूप में काम किया और 1963 से 1965 तक वे वहाँ अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे। वे 1966 से 1969 तक व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के लिए काम करने चले गए। बाद में, अर्थशास्त्री के रूप में सिंह की प्रतिभा को मान्यता देते हुए ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें विदेश व्यापार मंत्रालय का सलाहकार नियुक्त किया। 1969 से 1971 तक, सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर रहे।

डॉ. सिंह बनाए गए वित्त सचिव

डॉक्टर मनमोहन सिंह 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने और 1976 में वे वित्त मंत्रालय में सचिव। 1980-1982 में वे योजना आयोग में थे, और 1982 में, उन्हें तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर नियुक्त किया गया और 1985 तक इस पद पर रहे। वे 1985 से 1987 तक योजना आयोग (भारत) के उपाध्यक्ष बने। योजना आयोग में अपने कार्यकाल के बाद, वे 1987 से नवंबर 1990 तक जिनेवा, स्विट्जरलैंड में मुख्यालय वाले एक स्वतंत्र आर्थिक नीति थिंक टैंक, साउथ कमीशन के महासचिव थे। मनमोहन सिंह सिंह नवंबर 1990 में जिनेवा से भारत लौट आए और चंद्रशेखर के कार्यकाल के दौरान आर्थिक मामलों पर भारत के प्रधान मंत्री के सलाहकार के रूप में पद संभाला।

डॉ. सिंह बनाए गए वित्तमंत्री

साल 1991 में, जब भारत एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, नव निर्वाचित प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने गैर-राजनीतिक सिंह को वित्त मंत्री के रूप में अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया। इसके बाद, 1998-2004 की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान सिंह राज्यसभा (भारत की संसद के ऊपरी सदन) में विपक्ष के नेता थे। 2004 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सत्ता में आई, तो इसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अप्रत्याशित रूप से प्रधानमंत्री पद सिंह को सौंप दिया। उनके पहले मंत्रालय ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और सूचना का अधिकार अधिनियम सहित कई प्रमुख कानून और परियोजनाएं क्रियान्वित कीं। उनके कार्यकाल के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी।

डॉ. सिंह दूसरी बार बने देश के प्रधानमंत्री

2009 के आम चुनाव में यूपीए ने बढ़े हुए जनादेश के साथ वापसी की। मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री का पद बरकरार रखा। मनमोहन सिंह कभी भी लोकसभा के सदस्य नहीं रहे, लेकिन उन्होंने 1991 से 2019 तक असम राज्य और 2019 से 2024 तक राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्यसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया। मनमोहन सिंह ने 1958 में गुरशरण कौर से शादी की। उनकी तीन बेटियां हैं, उपिंदर सिंह, दमन सिंह और अमृत सिंह। डॉ मनमोहन सिंह साल 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। वह पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी के बाद चौथे सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहें। डॉ मनमोहन सिंह भारत के पहले सिख प्रधान मंत्री थे। वो जवाहरलाल नेहरू के बाद पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से चुने जाने वाले पहले प्रधान मंत्री भी थे।

डॉ. सिंह लेकर आए मनरेगा

डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार ने 2005 में भारत में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किया गया। इसका नाम बाद में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम किया गया. इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिर और पर्याप्त रोजगार प्रदान करना है, ताकि ग्रामीण इलाकों में गरीबी उन्मूलन और आर्थिक सुधार हो सके। इसके तहत न्यूनतम 100 दिन का रोजगार हर साल राज्य सरकार द्वारा सुनिश्चित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य बुनियादी ढांचे के निर्माण कार्यों (जैसे सड़क निर्माण, जल संरक्षण, वृक्षारोपण आदि) में शामिल करना होता है, ताकि साथ ही ग्रामीण विकास भी हो सके।

डॉ. सिंह ने दिया सूचना का अधिकार

डॉक्टर मनमोहन सरकार ने 2005 में एक एक्ट पारित कर नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी मांगने का अधिकार दिया। इसे सूचना का अधिकार अधिनियम नाम दिया गया। इससे सरकार में बैठे लोगों के काम में पारदर्शिता आई और जवाबदेही भी तय हुई। बता दें कि सूचना का अधिकार अधिनियम भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने, सरकारी कामकाजी तरीके में सुधार और नागरिकों को अपनी सरकार से जानकारी लेने का अधिकार प्रदान करता है। इसके आने के बाद करप्शन कुछ हद तक कम हुआ। लोगों को जानकारी मिलने लगी। जागरूकता बढ़ी।

डॉ सिंह ने दिया आमलोगों को आधार

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही आधार की शुरुआत की गई थी। 2009 में इसे बनाने के लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरणका गठन हुआ था.। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के नागरिकों को एक ऐसे पहचान प्रमाण पत्र की सुविधा देना था, जिसे आसानी से हर जगह इस्तेमाल किया जा सके। आज की तारीख में आधार कार्ड भारत के हर नागरिक के लिए एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज बन गया है। इसे सरकारी और गैर-सरकारी कार्यों में बतौर पहचान पत्र इस्तेमाल किया जाता है।

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